Saturday, August 9, 2025
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क्या संभव हैं एक साथ लोस-विस चुनाव ?

संजय द्विवेदी, अध्यक्ष, जनसंचार विभाग, माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय :

देश में इस वक्त यह बहस तेज है कि लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराए जाएं। देखने और सुनने में यह विचार बहुत सराहनीय है और ऐसा संभव हो पाए तो सोने में सुहागा ही होगा।

विकास को नए नजरिए से देखे मीडिया

संजय द्विवेदी, अध्यक्ष, जनसंचार विभाग, माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय :

मीडिया की ताकत आज सर्वव्यापी है और कई मायनों में सर्वग्रासी भी। ऐसे में विकास के सवालों और उसके लोकव्यापीकरण में मीडिया की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण हो उठी है। यह एक ऐसा समय है, जबकि विकास और सुशासन के सवालों पर हमारी राजनीति में बात होने लगी है, तब मीडिया में यह चर्चाएँ न हों यह संभव नहीं है।

बौद्धिक वर्ग से रिश्ते सुधारे मोदी सरकार

संजय द्विवेदी, अध्यक्ष, जनसंचार विभाग, माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय :

अपने कार्यकाल के दो साल पूरे करने के बाद नरेंद्र मोदी आज भी देश के सबसे लोकप्रिय राजनीतिक ब्रांड बने हुए हैं। उनसे नफरत करने वाली टोली को छोड़ दें तो देश के आम लोगों की उम्मीदें अभी टूटी नहीं हैं और वे आज भी मोदी को परिणाम देने वाला नायक मानते हैं।

अपनी भूमिका पर पुर्नविचार करें राष्ट्रीय दल

संजय द्विवेदी, अध्यक्ष, जनसंचार विभाग, माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय :

अब जबकि आधे से ज्यादा भारत क्षेत्रीय दलों के हाथ में आ चुका है तो राष्ट्रीय राजनीतिक दलों को चाहिए कि वे नए सिरे से अपनी भूमिका का विचार करें। भारत की सबसे पुरानी पार्टी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, दोनों प्रमुख कम्युनिस्ट पार्टियाँ और भारतीय जनता पार्टी आम तौर पर पूरे भारत में कम या ज्यादा प्रभाव रखती हैं। उनकी विचारधारा उन्हें अखिल भारतीय बनाती है भले ही भौगोलिक दृष्टि से वे कहीं उपस्थित हों, या न हों।

शराबबंदीः सवाल, नीयत और नैतिकता का

संजय द्विवेदी, अध्यक्ष, जनसंचार विभाग, माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय :

तर्क नहीं है। किंतु वह बिक रही है और सरकारें हर दरवाजे पर शराब की पहुँच के लिए जतन कर रही हैं। शराब का बिकना और मिलना इतना आसान हो गया है कि वह पानी से ज्यादा सस्ती हो गयी है। पानी लाने के लिए यह समाज आज भी कई स्थानों पर मीलों का सफर कर रहा है किंतु शराब तो ‘घर पहुँच सेवा’ के रूप में ही स्थापित हो चुकी है।

ग्रामोदय से भारत उदयः कितना संकल्प, कितनी राजनीति

संजय द्विवेदी, अध्यक्ष, जनसंचार विभाग, माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय : :

क्या नरेंद्र मोदी ने भारत के विकास महामार्ग को पहचान लिया है या वे उन्हीं राजनीतिक नारों में उलझ रहे हैं, जिनमें भारत की राजनीति अरसे से उलझी हुयी है। गाँव, गरीब, किसान इस देश के राजनीतिक विमर्श का मुख्य एजेंडा रहे हैं। इन समूहों को राहत देने के प्रयासों से सात दशकों का राजनीतिक इतिहास भरा पड़ा है। कर्ज माफी से ले कर अनेक उपाय किए गये, किंतु हालात यह हैं कि किसानों की आत्महत्याएँ एक कड़वे सच की तरह सामने हैं।

कुछ बातें ‘भारत माता की जय’ न बोलने वालों से !

संजय द्विवेदी, अध्यक्ष, जनसंचार विभाग, माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय :

देश की आजादी के सात दशक बाद वंदेमातरम् गाएँ या न गाएँ, ‘भारत माता की जय’ बोलें या न बोलें इस पर छिड़ी बहस ने हमारे राजनीतिक विमर्श की नैतिकता और समझदारी दोनों पर सवाल खड़े कर दिये हैं। आजादी के दीवानों ने जिन नारों को लगाते हुए अपना सर्वस्व निछावर किया, आज वही नारे हमारे सामने सवाल की तरह खड़े हैं। देश की आजादी के इतने वर्षों बाद छिड़ी यह निरर्थक बहस कई तरह के प्रश्न खड़े करती है। यह बात बताती है राजनीति का स्तर इन सालों में कितना गिरा है और उसे अपने राष्ट्रीय स्वाभिमान से समझौता करने में भी गुरेज नहीं है। लोकतंत्र इस मामले में हमें इतना दयनीय बना देगा, यह सोच कर दुख होता है।

इतने गुस्से में क्यों हैं लोग?

संजय द्विवेदी, अध्यक्ष, जनसंचार विभाग, माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय :

यह कितना निर्मम समय है कि लोग इतने गुस्से से भरे हुए हैं। दिल्ली में डॉ. पंकज नारंग की जिस तरह पीट-पीट कर हत्या कर दी गयी, वह बात बताती है कि हम कैसा समाज बना रहे हैं। साधारण से वाद-विवाद का ऐसा रूप धारण कर लेना चिंता में डालता है।

हम और हमारा राष्ट्रवाद

संजय द्विवेदी, अध्यक्ष, जनसंचार विभाग, माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय : 

फकीरी यहाँ आदर पाती है और सत्ताएं लांछन पाती हैं।

देश में इन दिनों राष्ट्रवाद चर्चा और बहस के केंद्र में है। ऐसे में यह जरूरी है कि हम भारतीय राष्ट्रवाद पर एक नई दृष्टि से सोचें और जानें कि आखिर भारतीय भावबोध का राष्ट्रवाद क्या है? ‘राष्ट्र’ सामान्य तौर पर सिर्फ भौगोलिक नहीं बल्कि ‘भूगोल-संस्कृति-लोग’ के तीन तत्वों से बनने वाली इकाई है। इन तीन तत्वों से बने राष्ट्र में आखिर सबसे महत्वपूर्ण तत्व कौन सा है? जाहिर तौर पर वह ‘लोग’ ही होगें। इसलिए लोगों की बेहतरी, भलाई, मानवता का स्पंदन ही किसी राष्ट्रवाद का सबसे प्रमुख तत्व होना चाहिए।

शक्ति को सृजन में लगाएँ मोदी

संजय द्विवेदी, अध्यक्ष, जनसंचार विभाग, माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय : :

हाथ में आए ऐतिहासिक अवसर का करें राष्ट्रोत्थान के लिए इस्तेमाल

पिछले कुछ दिनों से सार्वजनिक जीवन में जैसी कड़वाहटें, चीख-चिल्लाहटें, शोर-शराबा और आरोप-प्रत्यारोप अपनी जगह बना रहे हैं, उससे हम देश की ऊर्जा को नष्ट होता हुआ ही देख रहे हैं। भाषा की अभद्रता ने जिस तरह मुख्य धारा की राजनीति में अपनी जगह बनायी है, वह चौंकाने वाली है। सवाल यह उठता है कि नरेंद्र मोदी के सत्तासीन होने से दुखीजन अगर आर्तनाद और विलाप कर रहे हैं तो उनकी रूदाली टीम में मोदी समर्थक और भाजपा के संगठन क्यों शामिल हो रहे हैं?

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