Tag: Sanjay Kumar Singh
दूसरे करें तो रासलीला, ‘आप’ करे तो कैरेक्टर ढीला
संजय कुमार सिंह, संस्थापक, अनुवाद कम्युनिकेशन :
दिल्ली में आम आदमी पार्टी के 21 विधायकों को संसदीय सचिव बना कर उनके लाभ की कथित व्यवस्था करने के आरोपी अरविन्द केजरीवाल से उम्मीद की जा रही है कि वे अपने विधायकों का इस्तीफा करवा दें और चुनाव हो जाने दें।
उड़ता पंजाब और उल्टा दाँव
संजय कुमार सिंह, संस्थापक, अनुवाद कम्युनिकेशन :
गुजरात का फार्मूला देश में नहीं चल रहा है। ना विकास का ना चुनाव जीतने का। भाजपा दावा चाहे जो करे। भक्त चाहे जो दिखाएं-बताएं सच यह है कि हिन्दुत्व ब्रिगेड की चालें बुरी तरह मार खा रही हैं।
अजीत जोगी और अखबार की ताकत
संजय कुमार सिंह, संस्थापक, अनुवाद कम्युनिकेशन :
अखबार की ताकत पर याद आया। जनसत्ता में नौकरी शुरू की थी तो पाया कि दिल्ली में भी बिजली जाती थी और तो और दफ्तर की बिजली भी जाती थी पर अखबार छापने के लिए जेनरेटर नहीं था। मुझे याद नहीं है कि बिजली जाने पर एक्सप्रेस बिल्डिंग की लिफ्ट चलती थी कि नहीं और चलती थी तो कैसे? नहीं चलती थी तो कभी उसका कोई विरोध हुआ।
नई पीढ़ी के पेय और बचपन की यादें – पेपर बोट
संजय कुमार सिंह, संस्थापक, अनुवाद कम्युनिकेशन :
आज सुबह के अखबार में अमरूद और लाल मिर्च की इस फोटू ने पुराने दिन याद करा दिये। पिछले कई साल से अमरुद तो आराम से उपलब्ध है ही, लाल मिर्च की भी कोई कमी नहीं रही। पर ऐसे अमरुद नहीं खाया। खाया नहीं क्या किसी ने खिलाया ही नहीं। बचपन में अमरुद बेचने वाला पूछ कर और कई बार बिना पूछे भी अमरुद इस तरह काट कर लाल मिर्च भर देता था। आज यह तस्वीर देख कर वो सब स्वाद याद आ गया। पुराने दिन याद आ गये। खाक अच्छे दिन-पुराने दिन बहुत अच्छे थे।
और बुर्के पर चर्चा पूरी हुई
संजय कुमार सिंह, संस्थापक, अनुवाद कम्युनिकेशन :
तो तय यह हुआ कि बुर्का एकदम जरूरी है। बुर्के को जरूरी मानने वाले धर्म की महिलाएँ कम पढ़ी-लिखी, कम जागरूक हैं इसलिए इसपर किसी महिला को बोलने नहीं दिया जाएगा और चर्चा करने के लिए पुरुष अपने असली रूप में मैदान में डटे रहेंगे।
ऑड-ईवन की माया
संजय कुमार सिंह, संस्थापक, अनुवाद कम्युनिकेशन :
कल मुझे वैशाली से आनंद विहार स्टेशन जाना था। कहने को आनंद विहार वैशाली से करीब है पर जाना कितना मुश्किल यह कल ही समझ में आया। मेरे टैक्सी वाले ने मना कर दिया। उसके पास ईवन (प्राइवेट) नंबर की गाड़ी (जो मैं लेता हूँ) थी ही नहीं, दूसरा विकल्प ओला टैक्सी होता है। मैं नहीं लेता। सो मैंने बेटे से कहा कि बुक करो तो उसने बताया कि ओला ने घोषित कर रखा है कि माँग औऱ पूर्ति में अंतर के कारण वह ज्यादा किराया वसूलेगा।
सेक्स हौव्वा क्यों है?
संजय कुमार सिंह, संस्थापक, अनुवाद कम्युनिकेशन :
आज के समाज में जब लड़कियाँ नौकरी कर रही हैं, बड़े शहरों में परिवार से दूर अकेले रह रही हैं, किराए पर मकान लेने की समस्या है, शादी देर से हो रही है आदि कई कारण है जिनके आलोक में लिव-इन एक जरूरत है। लिव इन वालों के यौन संबंध के मामले में भी मेरी राय वही है - जरूरत है।
मरने वाली लड़की ही क्यों?
संजय कुमार सिंह, संस्थापक, अनुवाद कम्युनिकेशन :
इसका जो कारण मुझे समझ में आता है वह यही है कि अपने यहाँ लड़कियों को भावनात्मक रूप से मजबूत बनाने की अवधारणा ही नहीं है। लड़कियाँ आम तौर पर पिता के करीब होती हैं और पिता से जिन विषयों पर बात होती है उसकी सीमा है। ऐसे में जब वे फँसती हैं तो उनकी परेशानी शेयर करने वाला कोई नहीं होता। खासतौर से जब मामला ब्वायफ्रेंड का हो।
प्रत्यूशा की मौत के बहाने
संजय कुमार सिंह, संस्थापक, अनुवाद कम्युनिकेशन :
मैंने किसानों की आत्महत्या पर नहीं लिखा, डेल्टा मेघवाल की मौत पर भी नहीं लिखा लेकिन प्रत्यूशा बनर्जी की मौत पर लिख रहा हूँ। कारण इसी में है फिर भी ना समझ में आये तो उसपर फिर कभी बात कर लेंगे। फिलहाल प्रत्यूशा और उसके जैसी अभिनेत्रियों की मौत के कारणों को समझने की कोशिश करते हैं। जो छोटे शहरों से निकल कर बड़ा काम करती है। शोहरत और पैसा कमाती हैं, सब ठीक-ठाक चल रहा होता है और अचानक पता चलता है कि उसकी मौत हो गई (आत्महत्या कर ली, हत्या हो गई या शीना बोरा की तरह) या गायब हो गयी।
हिन्दी में नौकरी की संभावना कहाँ है
संजय कुमार सिंह, संस्थापक, अनुवाद कम्युनिकेशन:
हिन्दी में नौकरी की संभावनाएँ लगातार कम हुई हैं। हो रही हैं। एक समय था जब हिन्दी टाइपराइटर पर कोई ऐसा-वैसा बैठ भी नहीं सकता था। टाइपिंग से अनजान व्यक्ति शायद एक शब्द भी टाइप नहीं कर पाता। अगर हिन्दी में काम करना है, कुछ भी, कितना भी तो हिन्दी टाइपिस्ट के बिना काम नहीं हो सकता था। इसलिए ज्यादातर दफ्तरों में बिना काम के भी टाइपिस्ट होते थे या वहाँ काम ही ना हो तो अलग बात है।