Tag: Sanjay Sinha
मृत्यु महासत्य है

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
अपने 'पिता' की अस्थियों को विसर्जित करने के लिए कल मैं गढ़ मुक्तेश्वर के पास ब्रज घाट गया। दिल्ली में गंगा नहीं, जमुना है। पर हमारे यहाँ मान्यता है कि मरने वाले को मुक्ति ही तब मिलती है, जब उसकी अस्थियाँ गंगा में प्रवाहित की जाती हैं।
हम नुमाइंदे हैं, इस संसार में

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
मेरा मकान बदलना ही कुछ दिनों के लिए टल गया है। इसलिए फिलहाल चंद्रवती की कहानी का टल जाना भी लाजिमी है।
वजह?
अच्छा करते हैं, तो हमारे लिए ही अच्छा होता है

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
जितना आसान मैंने सोचा था, उतना आसान नहीं है चंद्रवती की कहानी लिखना।
मौन की महिमा

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
चंद्रवती हमारी जिन्दगी में जब आयी थी तब उसकी उम्र चालीस साल रही होगी। वो पिछले 25 वर्षों से हमारे साथ है।
साड़ी नहीं पौधे माँगें

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
“माँ, ये लाल वाला लहंगा मेरी शादी के लिए खरीद लो।”
माँ का दर्द दूर किया

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
कहा न कहानियाँ चल कर नहीं, दौड़ कर अब मेरे पास आने लगी हैं और अगर कहानियों में माँ-बेटे के रिश्ते की बात हो, तो फिर कहना ही क्या।
माँ की गोद

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
मुझे मरने से डर नहीं लगता। पर मर जाने में मुझे सबसे बुरी बात जो लगती है, वो ये है कि आप चाह कर भी दुबारा उस व्यक्ति से नहीं मिल सकते, जिससे मिलने की तमन्ना रह जाती है।
गलती को पुचकार कर सुधारें

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
कल रात सोते हुए मैं फूला नहीं समा रहा था कि मैंने कड़वी चाय को दुरुस्त करने की कला के साथ-साथ रिश्तों में प्यार के फूल खिलाने की विद्या भी आपको सिखलायी। मैंने कल जो पोस्ट लिखी थी, उसमें जिन्दगी का निचोड़ डाल दिया था।
कड़वे रिश्तों में मीठे बोल

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
लानत है मुझ पर। पिछले 26 सालों में कल पहला मौका था, जब मुझसे मेरी पत्नी ने कहा कि एक कप चाय बना कर पिला दो और मैं करवट बदल कर सो गया।
राजनीति और महात्वाकांक्षा

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
माँ ने लिखा है
“आज ट्रेन में यात्रा के दौरान मंगनू सिंह जी के बेटे से भेंट हुई। उनके बेटे डॉक्टर वीपी सिंह इस समय एनसीईआरटी, दिल्ली में हैं और आजमगढ़ से जुड़े हैं।



संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :





