Thursday, December 4, 2025
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हमें मारोंगे तो हम कुछ नहीं कहेंगे

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :

आइए, आज आपको एक ऐसी कहानी सुनाता हूँ, जिसे याद करके मेरी रूह काँप जाती है।

महिलाओं में ईश्वर का निवास है

संजय सिन्हा, संपादक, आज तक : 

जाती हुई सर्दी बहुत बुरी होती है। जाते-जाते छाती से चिपक गयी है। 

रिश्ते जरूर बनाये, अकेलापन से बड़ी कोई सजा नहीं

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :

मन में हजार कहानियाँ उमड़ती घुमड़ती रहीं। 

कल मुंबई में कुछ फोन चोरों को लोगों ने पकड़ कर चलती ट्रेन में नंगा करके बेल्ट से पीटा, मोबाइल से उनकी तस्वीरें उतारीं, तस्वीरें मीडिया तक पहुँचाई गयीं और इस तरह हमने देखा और दिखाया कि हम किस ओर बढ़ चले हैं। 

खैर, सुबह-सुबह बुरी खबरें मुझे विचलित करती हैं। 

अभिव्यक्ति की आजादी का दुरुपयोग

संजय सिन्हा, संपादक, आज तक : 

मेरे जैसे पत्रकार नहीं होने चाहिए। ऐसे पत्रकार बेकार होते हैं, जो मालदा की घटना पर, सियाचीन के जाबांजों की मौत पर, सुलग रहे जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय पर अपनी कलम नहीं भांजते। ऐसे पत्रकारों पर लानत है। संजय सिन्हा से कई लोगों ने गुहार लगायी है कि आप कुछ ऐसा क्यों नहीं लिखते, जिससे आपकी देशभक्ति जाहिर हो।

रिश्तों का पाठ

संजय सिन्हा, संपादक, आज तक : 

मेरी माँ की तबियत जब बहुत खराब हो गयी थी तब पिताजी ने मुझे पास बिठा कर बता दिया था कि तुम्हारी माँ बीमार है, बहुत बीमार। मैं आठ-दस साल का था। जितना समझ सकता था, मैंने समझ लिया था। पिताजी मुझे अपने साथ अस्पताल भी ले जाते थे। उन्होंने बीमारी के दौरान मेरी माँ की बहुत सेवा की, पर उन्होंने मुझे भी बहुत उकसाया कि मैं भी माँ की सेवा करूं। 

आज की मस्ती कल भारी पड़ेगी

संजय सिन्हा, संपादक, आज तक : 

मेरी आज की कहानी बड़ों से ज्यादा बच्चों के लिए है। अब बच्चे तो मेरे दोस्त हैं नहीं, तो बच्चों के पापाओं और बच्चों की मम्मियों से मैं अनुरोध करूँगा कि मेरी आज की पोस्ट वो अपने बच्चों को जरूर सुनाएँ। 

बुरे काम का बुरा नतीजा

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :

मेरी आज की पोस्ट मेरे लिए है। मुझे बहुत यंत्रणा से गुजरना पड़ा अपनी आज की पोस्ट को लिखते हुए। बहुत बार हाथ रुके, पर हिम्मत करके मैं लिखता चला जा रहा हूँ। आसान नहीं होता, अपने विषय में ऐसा लिखना।

अच्छाई में भी कमियाँ दिखेंगी

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :

बच्चा पार्क में खेलने जा रहा था। 

दादी घर में अकेली थी। दादी ने बच्चे को रोका और कहा कि क्या तू दिन भर खेलता रहता है। कभी अपनी दादी के पास भी बैठा कर। बातें किया कर। 

तरक्की की राह

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :

पता नहीं किसने, लेकिन संजय सिन्हा फेसबुक परिवार के ग्रुप में किसी ने इस कहानी को साझा किया था। कहानी किसने लिखी है, पता नहीं। पर मुझे बहुत जरूरत थी इस कहानी की।

मैंने अपने एक परिजन की बीमारी के बीच लगातार अस्पतालों के चक्कर काटते हुए तीन दिनों से प्राइवेट अस्पताल और डॉक्टरों के भ्रष्टाचार की कहानी आपको सुना रहा हूँ।

चोर मचाये शोर

संजय सिन्हा, संपादक, आज तक : 

विजय और रवि दोनों सगे भाई थे। एक दिन विजय और रवि के पिताजी घर छोड़ कर कहीं चले गये। वो मजदूरों के नेता थे। इस तरह अचानक उनके घर छोड़ कर चले जाने से नाराज कुछ लोगों ने विजय को पकड़ कर उसकी कलाई पर लिख दिया, "मेरा बाप चोर है।" विजय का बाप चोर नहीं था। लेकिन बड़ा होकर विजय चोर बन गया और रवि पुलिस अफसर।

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