Tag: Sanjay Sinha
खुशियों का संसार सच और विनम्रता से ही मिलता है

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
ऐसा जिन्दगी में बहुत बार होता है कि हम बदला किसी से लेते हैं, बदला किसी और से हो जाता है।
उस दिन अगर रानी कैकेयी की दासी मन्थरा अगर महल की छत पर नहीं गई होती तो त्रेतायुग का पूरा इतिहास आज अलग होता।
मन्थरा अयोध्या के राजा दशरथ की सबसे छोटी और दुलारी रानी कैकेयी के मायके से उनके साथ आयी थी।
गलती चाहे जिससे हो, सजा मिलती ही है

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
"हे राम! मैं प्रचेता का दसवाँ पुत्र रत्नाकर, जिसने ‘मरा-मरा’ जपने में खुद को भुला दिया और जिसके शरीर को चीटिंयों ने बांबी समझ कर अपना परिवार बसा लिया, जिसे उन बांबियों की बदौलत वाल्मिकी नाम मिला है, वो आपके सामने हाथ जोड़े खड़ा है।
हे राम! मेरे पिता वशिष्ठ, नारद और भृगु के भाई हैं।
अपने कर्म के सिद्धान्त को अमल में लायें

संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :
माँ, कल आपने कहा था कि मैं बहुत सी कहानियाँ सुनाऊँगी।”
“हाँ-हाँ, क्यों नहीं। अपने राजा बेटा को नहीं सुनाऊँगी तो किसे सुनाऊँगी।
भाव महत्वपूर्ण हो तो ‘मरा’ भी ‘राम’ होगा

संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :
मैंने बात सिर्फ अच्छे और बुरे पैसे की थी। मैंने सिर्फ इतना ही कहने की कोशिश की थी कि जिस तरीके से मनुष्य धन अर्जित करता है, वो तरीका ही धन की गुणवत्ता तय करता है। मैं जानता हूँ कि ये एक लंबे विवाद का विषय है। विवाद से भी अधिक ज्ञान और अज्ञान का विषय है।
गलत गलत होता है, न वहाँ देर है, न अन्धेर

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
मैं ऐसे कई लोगों को जानता हूँ जो खूब सिगरेट पीते हैं, शराब पीते हैं, जो दिल में आता है खाते हैं और स्वस्थ रहते हैं।
चोरी का धन मोरी (नाली) में जाता है

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
सुबह से उठ कर फोन पर लगा था। इसी चक्कर में आज जो लिखने का मन था, वो लिख नहीं पाया और जो लिख रहा हूँ उसे लिखने का मन नहीं। पर मैं भी क्या करूँ, पहले ही बता चुका हूँ कि रोज-रोज फेसबुक पर लिखना सिर्फ मेरे मन पर नहीं निर्भर करता। ये कोई और है जो मुझसे लिखवाता है, मैं निमित मात्र बन कर टाइप करता चला जाता हूँ।
आधी छोड़ पूरी धावे, न आधी पावे न पूरी पावे

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
मेरे लिए नानी के घर जाने का मतलब सिर्फ परियों की कहानियाँ सुनना नहीं था।
जीओ और जीने दो

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
मुझे तो सुबह उठ कर अपनी पत्नी को धन्यवाद कहना ही चाहिए।
उसने मुझे कभी देर रात हाथ में कम्प्यूटर की स्क्रीन में झाँकने से नहीं रोका।
भावे की हर बात भली, ना भावे तो हर बात बुरी

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
आज सोच रहा हूँ कि सु़बह-सु़बह आपसे वो बात बता ही दूँ जिसे इतने दिनों से बतान के लिये मैं बेचन हूँ।
हर कर्म का प्रतिफल मिलता है

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
मैंने कल लिखा था कि अगर मुझे किसी ने याद दिलाने की कोशिश की तो मैं हिटलर की उस कहानी का जिक्र जरूर करूंगा, जिसमें एक फौजी अफसर का बेटा कैसे अपने पिता के बनाए नर्क में फंस जाता है और फिल्म खत्म होने के कई महीनों बाद तक मेरी नाक में आदमी के जलने की दुर्गंध छोड़ जाता है।