Thursday, November 21, 2024
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आदिवासियों में शिक्षा की अलख जगाता रामकृष्ण मिशन आश्रम, चेरापूंजी

विद्युत प्रकाश मौर्य, वरिष्ठ पत्रकार:  

चेरापूंजी शहर का प्रमुख पड़ाव है रामकृष्ण मिशन आश्रम। 4500 फीट की ऊंचाई पर स्थित शहर में बने इस आश्रम परिसर वास्तव में बच्चों का एक स्कूल संचालित होता है।

बीमारी को पहचान लेना ही आधा इलाज है

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक 

उफक एक लड़की का नाम है। वो पढ़ना चाहती थी। तरक्की करना चाहती थी। पर उसकी शादी हो गयी। शादी के बाद पति भी उसे पढ़ाना चाहता था, पर सास ऐसा नहीं चाहती थी। सास ने षडयंत्र करना शुरू किया। बेटे के कान भरने लगी कि तुम्हारी बीवी पागल है। उसे इलाज की जरूरत है। घर में ऐसी परिस्थितियाँ पैदा करने लगी, जिससे धीरे-धीरे उफक और उसके शौहर के बीच कटुता पैदा होने लगी। और आखिर में उसके शौहर को लगने लगा कि उफक सचमुच पागल है। उसने उफक को छोड़ दिया, दूसरी लड़की से शादी कर ली।

प्रेरणा

प्रेमचंद :

मेरी कक्षा में सूर्यप्रकाश से ज्यादा ऊधामी कोई लड़का न था, बल्कि यों कहो कि अध्यापन-काल के दस वर्षों में मुझे ऐसी विषम प्रकृति के शिष्य से साबका न पड़ा था। कपट-क्रीड़ा में उसकी जान बसती थी। अध्यापकों को बनाने और चिढ़ाने, उद्योगी बालकों को छेड़ने और रुलाने में ही उसे आनन्द आता था। ऐसे-ऐसे षडयंत्र रचता, ऐसे-ऐसे फंदे डालता, ऐसे-ऐसे बंधन बाँधता कि देखकर आश्चर्य होता था। गिरोहबंदी में अभ्यस्त था। खुदाई फौजदारों की एक फौज बना ली थी और उसके आतंक से शाला पर शासन करता था।

दिल्ली वालों का अभी कुछ होना बाकी है

संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :

बहुत साल पहले जब मैं स्कूल में पढ़ता था, जय प्रकाश नारायण ने बिहार में स्कूल बंद करा दिये थे। 

झूठ बोल के हा हा हा

आलोक पुराणिक, व्यंग्यकार :

दिल्ली में जल्दी ही नर्सरी स्कूल दाखिले की प्रक्रिया शुरू होने वाली है। 

प्यार

संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :

स्कूल में मास्टर साहब पढ़ा रहे थे। अचानक मास्टर ने क्लास में सभी बच्चों से पूछा, “बच्चों तुम्हें अचानक भगवान मिल जाएँ और तुमसे कहें कि तुम क्या माँगते हो, विद्या या धन, तो तुम क्या माँगोगे?”

98.88% पर फेल

आलोक पुराणिक, व्यंग्यकार :

कभी सोचता हूँ कि सही टाइम पर धरती पर आ गये, और बहुत पहले ही स्कूल की शिक्षा से पार हो गये, इज्जत बच गयी।

कब आयेगा बदलाव

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक : 

कल मुझे मेरी सोसायटी का माली मिल गया। उसके हाथों में ढेरों किताबें थीं। दुआ सलाम के बाद उसने मुझसे बीस हजार रुपये बतौर उधार मांगे। 

जाहिर है मेरी जिज्ञासा ये जानने में थी कि आखिर अचानक इतने रुपयों की उसे क्या जरूरत आ पड़ी।

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