Tag: Secularism
धर्म-निरपेक्ष कि पंथ-निरपेक्ष?

कमर वहीद नकवी, वरिष्ठ पत्रकार :
पिछले हफ्ते बड़ी बहस हुई। सेकुलर मायने क्या? धर्म-निरपेक्ष या पंथ-निरपेक्ष? धर्म क्या है? पंथ क्या है? अँगरेजी में जो 'रिलीजन' है, वह हिन्दी में क्या है—धर्म कि पंथ? हिन्दू धर्म है या हिन्दू पंथ? इस्लाम धर्म है या इस्लाम पंथ? ईसाई धर्म है या ईसाई पंथ? बहस नयी नहीं है। गाहे-बगाहे इस कोने से, उस कोने से उठती रही है। लेकिन वह कभी कोनों से आगे बढ़ नहीं पायी!
तब बहुत बदल चुका होगा देश!

कमर वहीद नकवी , वरिष्ठ पत्रकार :
तीन कहानियाँ हैं! तीनों को एक साथ पढ़ सकें और फिर उन्हें मिला कर समझ सकें तो कहानी पूरी होगी, वरना इनमें से हर कहानी अधूरी है! और एक कहानी इन तीनों के समानान्तर है। ये दोनों एक-दूसरे की कहानियाँ सुनती हैं और एक-दूसरे की कहानियों को आगे बढ़ाती हैं और एक कहानी इन दोनों के बीच है, जिसे अक्सर रास्ता समझ में नहीं आता। और ये सब कहानियाँ बरसों से चल रही हैं, एक-दूसरे के सहारे! विकट पहेली है। समझ कर भी किसी को समझ में नहीं आती!
इतिहास बोल रहा है, आप सुनेंगे क्या?

कमर वहीद नकवी, वरिष्ठ पत्रकार:
कहीं का इतिहास कहीं और का भविष्य बाँचे! बात बिलकुल बेतुकी लगती है न! इतिहास कहीं और घटित हुआ हो या हो रहा हो और भविष्य कहीं और का दिख रहा हो! लेकिन बात बेतुकी है नहीं! समय कभी-कभार ऐसे दुर्लभ संयोग भी प्रस्तुत करता है!
फुटबाल, फतवा और ममता!

कमर वहीद नकवी, वरिष्ठ पत्रकार :
फुटबाल और फतवे का भला क्या रिश्ता? और कहीं हो न हो, लेकिन शासन अगर ममता बनर्जी का हो तो फुटबाल से फतवे का भी रिश्ता निकल आता है!
जब सत्ता ही देश को ठगने लगे तो!

पुण्य प्रसून बाजपेयी, कार्यकारी संपादक, आजतक :
एक तरफ विकास और दूसरी तरफ हिन्दुत्व। एक तरफ नरेन्द्र मोदी दूसरी तरफ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ। एक तरफ संवैधानिक संसदीय राजनीति तो दूसरी तरफ हिंदू राष्ट्र का ऐलान कर खड़ा हुआ संघ परिवार। और इन सबके लिये दाना-पानी बनता हाशिये पर पड़ा वह तबका, जिसकी पूरी जिन्दगी दो जून की रोटी के लिये खप जाती है।
धर्म-परिवर्तन छोड़ो, जाति-परिवर्तन शुरू करो!

अभिरंजन कुमार, पत्रकार एवं लेखक :
आप लोग धर्म-परिवर्तन पर बवाल कीजिए, मेरा सवाल यह है कि हम धर्म-परिवर्तन कर सकते हैं, लेकिन जाति-परिवर्तन क्यों नहीं?
हमें उपनिषदों ने सिखाया है सेक्युलरिज्म का मूल पाठ

राकेश उपाध्याय, पत्रकार :
जिस देश के जनजीवन में, आम लोगों की ज़िंदगी में जब सेक्युलरिज्म का जज्बा रहता है, तभी उस देश में भी सेक्युलरिज्म जिंदा रहता है। राज्य सेक्युलर हो या नहीं, समाज की मानसिकता में सेक्युलरिज्म होना चाहिए।
क्यों जी, आप सेकुलर हो?

क़मर वहीद नक़वी, वरिष्ठ पत्रकार :
क्यों जी, आप सेकुलर हो? तो बन्द करो यह पाखंड! पक गये सेकुलरिज़्म सुन-सुन कर! अब और बेवक़ूफ नहीं बनेंगे! पुणे पर इतना बोले, सहारनपुर पर चुप्पी क्यों? दुर्गाशक्ति नागपाल जो अवैध दीवार ढहाने गयी थी, अब वहाँ मसजिद बन गयी है, सेकुलरवादियो जाओ वहाँ नमाज पढ़ आओ!