Friday, November 22, 2024
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भाई की आँखों में चमक और बहन की आँखों में प्यार

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :

माँ तीन दिनों के लिए पिताजी के साथ बाहर गई थी। मैं बिना माँ के एक दिन नहीं रह सकता था। माँ ने जाते हुए मुझसे दो साल बड़ी बहन को निर्देश दिया था कि संजू का ख्याल रखना। बहन चुपचाप खड़ी थी। 

जेठानी को जलाना है

आलोक पुराणिक, व्यंग्यकार  :

सरकार चाहती है कि सोने में भारतीय लेडीज की दिलचस्पी कम हो। इसलिए इन दिनों गोल्ड बांड के इश्तिहार आ रहे हैं, आशय यह कि गोल्ड के चक्कर में ना पड़ों कुछ ब्याज कमा लो। सोना सरकार को दे दो, वहाँ ज्यादा काम आयेगा। यह चाहना कुछ इस किस्म का चाहना है कि मानो महाराष्ट्र में शिव सेना के उध्दव ठाकरे चीफ मिनिस्टर कुर्सी की चाह खत्म कर दें। सोने को लेकर सरकार की योजना है कि पुराने सोने को लेकर बांड जारी कर दिये जायें और पब्लिक को प्रोत्साहित किया जाये कि सोना ना खरीदो- सोने के बांड खरीद लो, उस पर ब्याज भी मिलेगा।

अपने कर्म सुधार लें

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :

मेरी दीदी की सास ने दीदी को बहुत तकलीफ दी थी। इतनी कि दीदी बिलख उठती थी। दीदी जब भी अपनी बात किसी को बताने की कोशिश करती, तो कोई यकीन नहीं कर पाता कि सचमुच उसके साथ ऐसा हुआ होगा। हम जब भी दीदी के घर जाते, उसकी सास हमें बहुत विनम्र और समझदार नजर आती। 

खुद को पहचानो

संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :

मेरी पड़ोस की एक दीदी की शादी बहुत कम उम्र में हो गयी थी। 

खाना मन माफिक और पहनना जग माफिक हो

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक : 

दीदी की जब शादी हुई थी, तब उसे ही शादी का मतलब नहीं पता था। अब उनकी शादी हो गयी, तो वो साल भर बाद ही माँ भी बन गयीं। दीदी की शादी में मेरी उम्र उतनी ही थी, जिस उम्र में बच्चे आँगन में लगे हैंडपंप पर खड़े हो कर सार्वजनिक स्नान कर लेते हैं।

भाई दूज : आस्था और विज्ञान

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक : 

मेरे घर काम करने वाली बता रही थी कि वो भाई दूज के दिन काम पर नहीं आएगी।

प्यार, परवाह और भरोसा

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक : 

पिछले हफ्ते हम अपनी बहन के ससुर के श्राद्ध में शामिल होने के लिए पटना गये थे। हम यानी मैं और मेरी पत्नी। 

स्वामिनी

प्रेमचंद :

शिवदास ने भंडारे की कुंजी अपनी बहू रामप्यारी के सामने फेंककर अपनी बूढ़ी आँखों में आँसू भरकर कहा- बहू, आज से गिरस्ती की देखभाल तुम्हारे ऊपर है। मेरा सुख भगवान से नहीं देखा गया, नहीं तो क्या जवान बेटे को यों छीन लेते! उसका काम करने वाला तो कोई चाहिए। एक हल तोड़ दूँ, तो गुजारा न होगा। मेरे ही कुकरम से भगवान का यह कोप आया है, और मैं ही अपने माथे पर उसे लूँगा। बिरजू का हल अब मैं ही संभालूँगा। अब घर की देख-रेख करने वाला, धरने-उठाने वाला तुम्हारे सिवा दूसरा कौन है? रोओ मत बेटा, भगवान की जो इच्छा थी, वह हुआ; और जो इच्छा होगी वह होगा। हमारा-तुम्हारा क्या बस है? मेरे जीते-जी तुम्हें कोई टेढ़ी आँख से देख भी न सकेगा। तुम किसी बात का सोच मत किया करो। बिरजू गया, तो अभी बैठा ही हुआ हूँ।

आगे बढ़ते हम, पीछे छूटते अपने

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक : 

मेरे पड़ोस वाली रेखा दीदी की शादी मेरी जानकारी में सबसे पहले चाँद के पास वाले ग्रह के एक प्राणी से हुई थी।

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