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छात्र आंदोलन : खो गया है रास्ता
संजय द्विवेदी, अध्यक्ष, जनसंचार विभाग, माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय :
हैदराबाद विश्वविद्यालय के छात्र रोहित वेमूला की आत्महत्या की घटना ने हमारे शिक्षा परिसरों को बेनकाब कर दिया है। सामाजिक-राजनीतिक संगठनों में काम करने वाले छात्र अगर निराशा में मौत चुन रहे हैं, तो हमें सोचना होगा कि हम कैसा समाज बना रहे हैं? किसी राजनीति या विचारधारा से सहमति-असहमति एक अलग बात है, किंतु बात आत्महत्या तक पहुँच जाए तो चिंताएँ स्वाभाविक हैं।
प्यार कैसे पनपे
संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
ये बात ठीक से याद नहीं कि सबसे पहले किसने मुझे ये समझाया था कि हिन्दुस्तान में तीन ही नौकरी ऐसी हैं, जिनमें असली दबदबा है।
पहली नौकरी पीएम की, दूसरी सीएम की और तीसरी डीएम की। हमारे साथी कहा करते थे कि पीएम के पास देश चलाने का पावर होता है, सीएम के पास राज्य चलाने का और डीएम के पास जिला चलाने का। अगर राजाओं वाली जिन्दगी जीनी हो तो आईएएस बन जाओ और जीवन भर मौज करो।
‘सोच’ बनी ‘समस्या’
संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
मेरे आज के लिखे को पढ़ कर प्लीज नाक भौं मत सिकोड़ियेगा। इन दिनों इस विषय को सरकार जोर-शोर से उठा रही है। ये आदमी की नैसर्गिक जरूरत है।