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बनारस का विरोध रस

रवीश कुमार, वरिष्ठ टेलीविजन एंकर :
बनारस इस चुनाव का मनोरंजन केंद्र बन गया है। बनारस से ऐसा क्या नतीजा आने वाला है जिसे लेकर कृत्रिम उत्सुकता पैदा की जा रही है।
जोर से बोलो तो जमाना सुनेगा

रवीश कुमार, वरिष्ठ टेलीविजन एंकर :
नफासत का ओढ़ा हुआ पुलिंदा लग रहा था। शख्स की ज़ुबान से नाम ऐसे छलक रहे थे जैसे महल की सीढ़ियों से शख्सियतें उतर रही हों।
मोदी या केजरी, किसे पारस साबित करेगा बनारस?

पुण्य प्रसून बाजपेयी, कार्यकारी संपादक, आजतक :
खाक भी जिस जमी की पारस है, शहर मशहूर यह बनारस है। तो क्या बनारस पहली बार उस राजीनिति को नया जीवन देगा जिस पर से लोकतंत्र के सरमायेदारों का भी भरोसा डिगने लगा है।
ई बनारस हव…

सौमित्र रॉय, स्वतंत्र पत्रकार :
साल 2015 भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र भाई मोदी ‘देश सेवा’ से कुछ पल चुराकर अपने आरामगाह में लेटे थे।
अरविन्द एक बार सोच लो, बनारस कहीं ठग ना ले

दीपक शर्मा, वरिष्ठ पत्रकार :
क्या अजीब इत्तेफाक है! बनारस के तीनों उम्मीदवार मोदी, मुख़्तार और केजरीवाल से जान पहचान है। तीनों से रिपोर्टिंग के रिश्ते आपके लिए अद्भुत, क्रांतिकारी हो सकते हैं। पर दो दशक की पत्रकारिता में ये सामान्य बात है। मैं तो इन रिश्तों का जिक्र सिर्फ इसलिए कर रहा हूँ कि आपको ये ना लगे कि पोस्ट बस यूँ ही लिख दी।