Thursday, November 21, 2024
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बंदरगाह को जोड़ती थी बिलीमोरा-वघई नैरोगेज लाइन

विद्युत प्रकाश मौर्य, वरिष्ठ पत्रकार :

गुजरात में एक और नैरोगेज रेल संचालन में है बिलीमोरा जंक्शन और वघई के बीच। ये लाइन इस मायने में ऐतिहासिक है कि ये बड़ौदा रियासत के एकमात्र बंदरगाह बिलीमोरा को शेष गुजरात से जोड़ती थी। दोनों स्टेशनों के बीच एक जोड़ी ट्रेनों का रोज संचालन होता है।

एक और सुस्त ट्रेन – कौसंबा-उमरपाडा नैरोगेज

विद्युत प्रकाश मौर्य :

गुजरात के सूरत जिले में एक और सुस्त नैरोगेज ट्रेन सौ साले से अधिक समय से चल रही है। ये गुजरात में तीसरा नैरोगेज नेटवर्क जो संचालन में है वह है कोसंबा उमरपाडा के बीच। कोसांबा सूरत जिले का एक छोटा व्यापारिक शहर है। वहीं उमरपाडा सूरत जिले का ही एक तालुका है।

साइकिल भी ट्रेन से चलती है तेज

विद्युत प्रकाश मौर्य, वरिष्ठ पत्रकार :

गुजरात में दभोई-मियागाम के अलावा गुजरात में प्रतापनगर (वड़ोदरा) और जांबुसार जंक्शन और कोसांबा उमरपाडा, बिलिमोरा वाघाई के बीच अभी भी नैरोगेज रेल नेटवर्क संचालित हो रहा है। प्रतापनगर से जंबुसार नैरोगेज रेलवे लाइन की कुल लंबाई 51 किलोमीटर है।

बैल खींचते थे रेलगाड़ी

विद्युत प्रकाश मौर्य :

नैरोगेज की बात करें तो इसका मतलब 2 फीट 6 ईंच ( 762 एमएम) पटरियों के बीच की चौड़ाई वाली रेलवे लाइन। हालाँकि कुछ नैरोगेज लाइनों की चौड़ाई दो फीट भी है। भारत में पहली नैरोगेज लाइन गुजरात में 1862 में दभोई से मियागाम के बीच बिछाई गई। ये 762 एमएम की नैरोगेज लाइन गायकवाड बड़ौदा स्टेट रेलवे ने बिछाई।

देश के केंद्र में है बैतूल शहर

विद्युत प्रकाश मौर्य :

सतपुड़ा की वादियों में बैतूल मध्य प्रदेश का एक जिला है। पर इस जिले की खास बात है कि ये देश के बिल्कुल केंद्र में बसा है।

खत्म हुआ शकुंतला एक्सप्रेस का सफर

विद्युत प्रकाश मौर्य :

जुलाई 2014 में देश के मानचित्र से एक नैरो गेज ट्रेन विदा हो गई। महाराष्ट्र के यवतमाल जिले में यवतमाल से मुर्तुजापुर ( अकोला जिला) के बीच 112 किलोमीटर का नैरो गेज रेल नेटवर्क हुआ करता था।

सतपुड़ा एक्सप्रेस का रोमांचक सफर

विद्युत प्रकाश मौर्य :

सतपुड़ा की हरी-भरी वादियों के बीच नैरोगेज की पटरियों पर चलने वाली कई ट्रेनों के बीच सतपुड़ा एक्सप्रेस इस क्षेत्र की सबसे लोकप्रिय ट्रेन है। ये एक्सप्रेस ट्रेन सात घंटे में आपको जबलपुर से बालाघाट पहुंचाती है। 10002 जबलपुर-बालाघाट सुबह 5.30 बजे चलने वाली ट्रेन दोपहर 12 बजे बालाघाट पहुँच जाती है।

पापू यहीं कहीं हैं… क्योंकि शब्द रहते हैं हमेशा जिंदा

विद्युत प्रकाश मौर्य:

पापू नहीं रहे। हाँ, उनके बच्चे और उनसे करीब से जुड़े हुए लोग उन्हें इसी नाम से जानते थे। पापू यानी रॉबिन शॉ पुष्प। उन्होंने 30 अक्तूबर 2014 को अपने तमाम चाहने वालों का साथ छोड़ दिया। लेकिन पापू जैसे शब्द-शिल्पी कभी इस दुनिया से जाते हैं भला? नहीं जाते, क्योंकि शब्द मरा नहीं करते।

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