अखिलेश शर्मा, वरिष्ठ पत्रकार
बुधवार को नई दिल्ली के 11 अशोक रोड़ स्थित बीजेपी मुख्यालय पर आम आदमी पार्टी और भारतीय जनता पार्टी के बीच हिंसक मुठभेड़ हुई।
लखनऊ और उत्तर प्रदेश के कुछ दूसरे हिस्सों से भी बीजेपी और आप के कार्यकर्ताओं के बीच हिंसक झड़पों की खबरें आईं। देर रात होते-होते दोनों ही पार्टी के नेताओं ने अपने कार्यकर्ताओं से अपील की कि वे शांति बनाए रखें।
आम आदमी पार्टी की नई किस्म की राजनीति इस क्षेत्र के स्थापित खिलाड़ियों के लिए एक बड़ी चुनौती पेश कर रही है। दिल्ली विधानसभा चुनाव में बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी मगर सरकार कांग्रेस के सहयोग से अरविंद केजरीवाल की पार्टी ने बनाई। धरने और आंदोलन के बूते दिल्ली की राजनीति में अपनी जगह बनाने वाली इस नई पार्टी ने बीजेपी के परंपरागत समर्थक मध्य वर्ग और कांग्रेस के गरीब और दलित वोट में सेंध लगाई। बड़ी संख्या में सरकारी कर्मचारियों ने भी इस पार्टी को वोट दिए। लेकिन 49 दिन की सरकार में केजरीवाल ने जहां एक ओर जनहित में ताबड़तोड़ फैसले किए वहीं उनके स्वयं के और कुछ मंत्रियों के रवैये के कारण सरकार की छवि कुछ इस तरह की बनी कि वो सरकार चलाने के लिए गंभीर नहीं हैं।
विश्लेषकों का मानना है कि आम आदमी पार्टी की प्राथमिकता में लोक सभा चुनाव हैं। इसीलिए जब केजरीवाल को लगा कि दिल्ली में एक आधी-अधूरी सरकार बना कर वो यहां बंध गए हैं तो उन्होंने जनलोकपाल के नाम पर अपनी सरकार को कुर्बान कर दिया। इसके बाद से ही केजरीवाल लोकसभा चुनाव के लिए लगातार अपना एजेंडा स्पष्ट कर रहे हैं। उनका हमला उद्योगपति मुकेश अंबानी पर है और उनका नाम लेकर वो लगातार कांग्रेस और बीजेपी पर हमला कर रहे हैं। केजरीवाल सैकड़ों बार कह चुके हैं कि मुकेश अंबानी से राहुल गांधी और नरेंद्र मोदी मिले हुए हैं।
लेकिन अब धीरे-धीरे उनका हमला राहुल पर कम और नरेंद्र मोदी पर ज्यादा होता जा रहा है। यूपी में केजरीवाल के रोड शो के दौरान ही उनकी पार्टी की ओर से संकेत दिया गया कि अगर नरेंद्र मोदी बनारस से चुनाव लड़ते हैं तो केजरीवाल उनके खिलाफ चुनाव मैदान में उतर सकते हैं। कभी केजरीवाल देश में मोदी की हवा होने की बात कहते हैं तो कभी कहते हैं कि ये हवा टीवी चैनलवालों ने बनाई है। कानपुर में उन्होंने एलान किया कि गुजरात के विकास की हकीकत जानने के लिए वो वहां का दौरा करेंगे। इसी दौरान उन्हें कथित तौर पर हिरासत में लिए जाने की प्रतिक्रिया में आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ताओँ ने दिल्ली समेत कई जगहों पर बीजेपी दफ्तरों पर हिंसक प्रदर्शन किए। बीजेपी की जवाबी प्रतिक्रिया भी ही उतनी ही तीखी और हिंसक रही। पार्टी ने ईंट का जवाब पत्थर से दिया। लखनऊ में तो भारतीय जनता युवा मोर्चे के कार्यकर्ताओं ने आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ताओं को सड़क पर दौड़ा-दौड़ा कर पीटा।
दरअसल, 2009 के लोक सभा चुनाव में देश के उन बड़े शहरों से बीजेपी का सफाया हो गया जहां परंपरागत तौर पर बीजेपी को समर्थन मिलता रहा है। इन शहरों में मध्य वर्ग ने आर्थिक संकट का सफलतापूर्वक मुकाबला करने के लिए यूपीए और मनमोहन सिंह को अपना समर्थन दिया। लाल कृष्ण आडवाणी के नेतृत्व में इस मध्य वर्ग ने अपनी आस्था नहीं जताई। लेकिन पिछले पाँच साल में हालात बदले हैं। महंगाई, भ्रष्टाचार, गिरती विकास दर, बढ़ती बेरोज़गारी जैसे मुद्दों ने इसी मध्य वर्ग के भीतर कांग्रेस के खिलाफ जबर्दस्त गुस्सा पैदा किया है। भ्रष्टाचार से लड़ने के लिए जनलोकपाल को लेकर दिल्ली में हुए अण्णा हजारे और इंडिया अंगेस्ट करप्शन के जनआंदोलनों ने सरकार की चूलें हिला दीं और इसी से आम आदमी पार्टी का जन्म हुआ।
यही वजह थी कि नवंबर-दिसंबर 2013 में जब दिल्ली समेत पाँच राज्यों के विधानसभा चुनाव हुए तो बीजेपी को इनसे भारी उम्मीदें थीं। मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में उसकी ये उम्मीदें पूरी हुईं। मगर दिल्ली में आम आदमी पार्टी ने उसकी उम्मीदों पर पानी फेर दिया। दिल्ली के लोगों ने कांग्रेस के खिलाफ गुस्सा तो दिखाया मगर इसका ज्यादा फायदा बीजेपी के बजाए आम आदमी पार्टी ले गई। बीजेपी को धक्का इसलिए भी लगा क्योंकि उसने विधानसभा चुनाव में अपने प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी का जमकर इस्तेमाल किया था।
अब जबकि लोक सभा के चुनावों की घोषणा हो चुकी है, आम आदमी पार्टी रूपी सिरदर्द फिर बीजेपी को परेशान कर रहा है। ये बात अलग है कि अभी तक के तमाम जनमत सर्वेक्षण मोदी के पक्ष में देश भर में भारी समर्थन की बात कर रहे हैं। लेकिन मीडिया के एक हिस्से में अरविंद केजरीवाल को प्रधानमंत्री पद के दावेदारों में नरेंद्र मोदी और राहुल गांधी के साथ दिखाया जा रहा है। मीडिया में मिल रहे इस समर्थन से केजरीवाल काफी उत्साहित हैं।
बीजेपी को लग रहा है कि कांग्रेस से नाराज वोट दिल्ली की ही तरह देश के दूसरे बड़े शहरों में भी आम आदमी पार्टी के पास न चला जाए। ऐसे में वोट बंटने पर नतीजे प्रभावित हो सकते हैं। बीजेपी और उसकी सहयोगी शिवसेना के साथ ऐसा पिछले लोक सभा चुनाव में मुंबई में हुआ था जहां राज ठाकरे की पार्टी ने उनके वोट काट कर कांग्रेस को फायदा पहुँचाया था। चूंकि केजरीवाल की पार्टी चुनावी खेल की नई खिलाड़ी है इसलिए उसके प्रदर्शन के बारे में कुछ भी अंदाज़ा नहीं लगाया जा सकता है।
बहरहाल, नतीजे जो भी आएं, बुधवार को दोनों पार्टियों के बीच सड़कों पर जो युद्ध हुआ, वो लोकतंत्र के लिए किसी भी तरह से शुभ नहीं है। वोट की लड़ाई सड़कों पर लड़ना उस मध्य वर्ग को तो कतई पसंद नहीं आएगा जिसके वोटों की दरकार बीजेपी और आम आदमी पार्टी दोनों को है।