दीपक शर्मा, वरिष्ठ पत्रकार :
क्या अजीब इत्तेफाक है! बनारस के तीनों उम्मीदवार मोदी, मुख़्तार और केजरीवाल से जान पहचान है। तीनों से रिपोर्टिंग के रिश्ते आपके लिए अद्भुत, क्रांतिकारी हो सकते हैं। पर दो दशक की पत्रकारिता में ये सामान्य बात है। मैं तो इन रिश्तों का जिक्र सिर्फ इसलिए कर रहा हूँ कि आपको ये ना लगे कि पोस्ट बस यूँ ही लिख दी।
मोदी के साथ गुजरात भूकंप के राहत कार्य में मैंने बीएसएफ के जहाज में बहुत बार सफर किया। मुख़्तार से मैंने जेल में कई इंटरव्यू लिये। एक बार तो जेल में उनके पास बहुत सारे हथियार देख कर मैं चौंक गया। कजरी बाबू से भी रिश्ते हैं। सलमान खुर्शीद की स्टोरी ब्रेक करने के बाद केजरीवाल मुझसे कई बार मिले और मै उनके घर भी कई बार गया। मित्रों, बनारस के इन तीनों उम्मीदवारों का मिजाज़ अलग है, किरदार भी अलग है। पर एक ही समानता है। वो ये कि तीनों बड़े ही दिलेर हैं। आप कह रहे होंगे कि मुख़्तार अंसारी को मै कहाँ बाकी दोनों से मिला रहा हूँ।
ये सच है कि मुख़्तार अंसारी बाहुबली माफिया सरगना है जिसके हाथों पर खून के दाग हैं। लेकिन वो एक बड़े रसूखदार मुस्लिम खानदान से हैं। कश्मीर को बचाने वाले ब्रिगेडियर उस्मान और इस वक़्त देश के उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी माफिया मुख़्तार के परिवार से हैं। एक और बात बताता हूँ। साढ़े छह फुट लंबे मुख़्तार अपने वक्त में देश के सबसे तेज गेंदबाजों में एक थे। वो कानपुर के ग्रीन पार्क स्टेडियम में रणजी ट्राफी कैंप में था जब उस पर क़त्ल का इलज़ाम लगा। उसके बाद पूर्वांचल की सबसे खूनी गैंगवार में मुख्तार अंसारी कूद गया। आज भी मुख़्तार बनारस का असली किंग है जो केजरीवाल के मुस्लिम वोट हर तिकड़म करके छीन लेगा।
मित्रों, केजरीवाल सच में एक मुसीबत में फँस गये हैं। वो ईमानदार हैं, अपराधियों की मुखालफत करने वाले हैं, पर हिंदू-मुस्लिम ध्रुवीकरण में बँटे बनारस में एके के लिए एक तरफ मुख़्तार अंसारी की एके राइफल है और दूसरी तरफ हर हर मोदी के नारे। यही नहीं, केजरीवाल के लिए वक्त भी कम है क्योंकि इतनी सारी सीटों पर लड़ रही पार्टी को उन्हें कई जगह वक्त देना होगा। इसके अलावा केजरीवाल अब पहली जैसी लोकप्रियता और आम आदमी के जुनून पर सवार नही हैं।
मुझे लगता है अरविंद की हालत उनके चापलूस सलाहकारों ने फिल्म गाइड के उस देवानंद जैसी कर दी है जिसे गाँव वालों ने महान बताकर 12 दिन के आमरण अनशन पर बैठा दिया था। अपने फायदे के लिए गाइड को सूली पर चढ़ा दिया गया। यही हालत आज आम आदमी के गाइड की हो गयी है।
मै तटस्थ हूँ, पर फिर भी अरविंद से कहूँगा कि ये सच है कि उन्होंने अपने दम पर देश में राजनीति बदलने की शुरुआत की है, पर आज वो अपने ही जाल में फँसते जा रहे हैं। उन्हें अगर लंबी राजनीति करनी है तो अब हर फैसला चापलूसों की सलाह पर तात्कालिक लाभ के लिए नही करें बल्कि हर फैसला वो अपने आंदोलन और पार्टी के निराश होते कैडर को ध्यान में लेकर करें। अगर बनारस में केजरीवाल की साख दाँव पर लग गयी है तो वो दो जगह से चुनाव लड़ सकते हैं – गाजियाबाद और बनारस दोनों से।
देश को मुख़्तार अंसारी नही चाहिए, पर देश को मोदी के विकास और अरविंद के आंदोलन की अभी दरकार है। अरविंद भाई, अगर आप उर्दू समझते हैं तो एक शेर आपके सलाहकारों को लेकर अर्ज है, ज़रूर सोचियेगा –
मेरे दाग ऐ दिल से है रोशिनी
उसी रोशिनी से है जिंदगी
मुझे डर है ऐ मेरे चारागर
ये चिराग तू ही बुझा ना दे
(चारागर – यहाँ पर मेरा तात्पर्य सलाहकारों से है।)