डॉ वेद प्रताप वैदिक, राजनीतिक विश्लेषक :
कांग्रेस ने इस चुनाव में जैसी मार खाई, क्या पहले कभी खाई? लेकिन कोई भी मुँह क्यों नहीं खोल रहा है? क्योंकि इस पार्टी के बड़े-बड़े नेपोलियन बोनापार्ट पिछले 40-45 साल में बौने हो गये हैं।
वे नेता और कार्यकर्ता नहीं रहे। उनका चरित्र ही बदल गया। वे किसी प्राइवेट लिमिटेड कंपनी के कर्मचारी बन गये हैं। उनकी हालत बंधुआ मजदूरों-जैसी हो गयी है। वे अब भी यह मान रहे हैं कि फिरोज गांधी परिवार की बहू और बच्चे उन्हें बचा लेंगे। भाई ने डुबो दिया तो बहन बचा लेगी।
यह धारणा एक गलत समझ के कारण बन गयी है। वह समझ यह है कि भारत की जनता वंशवाद को सलाम करती है। नेहरू वंश और फिरोज गांधी वंश के उत्तराधिकारी असली तारणहार हैं। उनके बिना कांग्रेस कभी जीत नहीं सकती लेकिन भारत की जनता ने राजवंश को, वंशवाद को, धुप्पल में मिले नेतृत्व को सदा रद्द किया है। 1967 में जब इंदिरा गांधी ने नेहरू की बेटी की तरह पहला चुनाव लड़ा तो क्या हुआ था? आपको कुछ याद है? देश के बड़े-बड़े प्राँतों में पहली बार कांग्रेस लुढ़क गयी थी। केंद्र में स्पष्ट बहुमत भी नहीं मिला था। 1971 का चुनाव इंदिराजी ने अपने दम पर लड़ा था। वे दुर्गा की तरह उभरी थी। उन्हें 352 सीटें मिलीं।
इंदिराजी के उत्तराधिकारी उनके बेटे राजीव गांधी ने जो चुनाव लड़ा, वह शहीद इंदिरा गांधी का चुनाव था लेकिन जब उन्होंने 1989 का चुनाव ‘अपुन भरोसे’ लड़ा तो उनकी सीटें 400 से खिसकर आधी रह गयी। लोगों ने वंशवाद को रद्द किया। जब सोनिया गांधी के नेतृत्व में 1998 में चुनाव लड़ा गया तो सीटें आधी की भी आधी रह गयी। याने लोगों ने फिर वंशवाद को रद्द किया। 2004 में भी भाजपा-गठबंधन अपनी कमजोरियों से हारा लेकिन कांग्रेस को जनता ने स्पष्ट बहुमत नहीं दिया। 2009 में कांग्रेस की सीटें बढ़ी, लेकिन बहुमत तब भी नहीं मिला। तब भी वंशवाद रद्द हुआ। वह जीत सोनिया और राहुल नहीं, मनमोहन के खाते में दर्ज हुई। अब 2014 में तो भारत की जनता ने ऐसी दुर्गति कर दी कि कांग्रेस को बिलकुल माँ-बेटा पार्टी ही बना दिया। इस वंशवाद ने ही पार्टी को नष्ट कर दिया।
वंशवाद के कारण पार्टी का आंतरिक लोकतंत्र नष्ट हुआ। कार्यकर्ताओं में पहल करने की क्षमता नष्ट हुई। प्राँतीय नेताओं को उभरने नहीं दिया गया। मुख्यमंत्री, राज्यपाल, मंत्री, प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति के पद पर बैठे नेताओं की हैसियत दरबारियों और मसखरों जैसी हो गयी। लोकतांत्रिक संस्थाओं का अघःपतन हो गया। यदि कांग्रेस-जैसी महान पार्टी को फिर से जीवित होना है तो माँ और बेटे को इस पर स्वयं कृपा करनी होगी। कांग्रेसी लोगों में इतना दम नहीं कि वे उन्हें दरवाजा दिखा सकें लेकिन माँ-बेटे को इस विनम्र और श्रद्धालु पार्टी का आभारी होना चाहिए कि उनकी अत्यंत कम योग्यता के बावजूद उसने इन्हें अपना नेता मानकर अपने सिर पर बिठाए रखा। पता नहीं, यह फिरोज गांधी परिवार कृतज्ञता-ज्ञापन में विश्वास करता है या नहीं?
(देश मंथन, 19 मई 2014)