लखीमपुर खीरी : विपक्ष की विभाजक राजनीति या फिर प्रियंका गांधी के लिए लॉन्च-पैड?

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प्रियंका गांधी वाड्रा

ऐसा लग रहा है कि उत्तर प्रदेश के बाहर यह आंदोलन राहुल गांधी के कंधों पर है, तो वहीं उत्तर प्रदेश में यह आंदोलन प्रियंका गांधी को लॉन्च करने के लिए है। मगर इन सबके बीच एक बड़ी रोचक बात हो रही है – वह है वरुण गांधी का भाजपा से दूर जाना।

ऐसा प्रतीत होता है जैसे कांग्रेस के नेता राहुल गांधी की ओर से हार मान बैठे हैं और अब उनका अगला ठिकाना प्रियंका गांधी हैं। ऐसा इसलिए, क्योंकि उत्तर प्रदेश प्रभारी बनने के बाद सारी पार्टी उनके पीछे नजर आ रही है और उसमें पार्टी का अल्पसंख्यक मोर्चा प्रियंका गांधी के लिए बहुत उत्साही है। इतना कि कांग्रेस के अल्पसंख्यक मोर्चा के अध्यक्ष, जो मशहूर शायर हैं और कई प्रगतिशीलों के साथ-साथ, कई राष्ट्रवादी लेखकों-लेखिकाओं के प्रिय हैं, वे भारत माता को विधवा भी कह देते हैं।
इमरान प्रतापगढ़ी ने एक कविता लिखी, कथित रूप से किसान के समर्थन में और भाजपा के विरोध में, मगर उसमें वे भारत माता को विधवा कह गये। इमरान प्रतापगढ़ी ने लिखा :

“माँ के बेटे रौंदे जाएं,
विधवा भारत माता है,
तानाशाही करने वाला,
भारत भाग्य विधाता है!”

अभी बहुत दिन नहीं हुए हैं, जब एक नेता द्वारा भारत माता को डायन भी कहा गया था। हालाँकि उस नेता का दल अलग था, पर मानसिकता यही थी। जो मानसिकता भारत माता को डायन कह सकती है, वही मानसिकता भारत माता को विधवा कह सकती है। हिंदू के लिए उसकी मिट्टी उसकी माँ है। उसकी वह हर मूल्य पर रक्षा करता है। इमरान प्रतापगढ़ी कैसे भारत भूमि के लिए विधवा शब्द का प्रयोग कर सकते हैं? भारत का सौभाग्य कैसे और कहाँ खोया है? यह हद थी।
परंतु उसके साथ हद्द है कि लाशों के ऊपर अब प्रियंका गांधी के लिए “बेलछी मोमेंट” खोजा जाने लगा है!
पहले प्रियंका गांधी की नाक उनकी दादी के साथ मिलायी जाती थी और राहुल गांधी के डिंपल का मिलान राजीव गांधी के डिंपल से किया जाता था। प्रधानमंत्री बनने के लिए ये आवश्यक गुण हुआ करते थे।
फिर राहुल गांधी का डिंपल मिलान राजनीति में नहीं चल पाया तो उसके बाद बारी आयी राहुल गांधी के परिपक्व होने की। बार-बार कहा गया कि राहुल गांधी अब परिपक्व हो रहे हैं, इस चुनाव में मोदी को उखाड़ फेकेंगे, और हर चुनाव के बाद राहुल गांधी को युवा नेता बताया गया। परंतु उनकी लॉन्चिंग बार-बार विफल होती रही।
फिर बारी आयी उनकी बहन की। ऐसा लग रहा है कि उत्तर प्रदेश के बाहर यह आंदोलन राहुल गांधी के कंधों पर है, तो वहीं उत्तर प्रदेश में यह आंदोलन प्रियंका गांधी को लॉन्च करने के लिए है।
मगर इन सबके बीच एक बड़ी रोचक बात हो रही है – वह है वरुण गांधी का भाजपा से दूर जाना। वरुण गांधी कई दिनों से भाजपा के प्रति बागी स्वर अपनाये हुए थे और इस किसान आंदोलन में विषय में यह जानते हुए भी, कि यह आंदोलन केवल और केवल भाजपा सरकार के खिलाफ है, वे शुरू से इस आंदोलन के पक्ष में रहे और किसानों की पीड़ा समझने के लिए बार-बार चिट्ठी लिखते रहे। इतना ही नहीं, इस हिंसा के बाद भी उन्होंने राज्य भाजपा सरकार को ही कठघरे में खड़ा करने की कोशिश की और इसके साथ ही उन्होंने ट्विटर पर अपने परिचय से भाजपा हटा लिया है।
क्या लखीमपुर खीरी कांड गांधी परिवार को एक साथ लायेगा? या फिर यह कुछ समय के लिए ही शिकायत है? यह देखना होगा! परंतु सबसे मजेदार है इसमें कांग्रेस द्वारा की जा रही हर प्रकार की विभाजक राजनीति, और मीडिया द्वारा इसका समर्थन! इस हिंसा में किसने क्या किया और क्या हुआ, यह तो जाँच के बाद ही सामने आयेगा, परंतु इसका राजनीतिक लाभ लेने के लिए जिस प्रकार से कांग्रेस मचल रही है, और अपने अल्पसंख्यक मोर्चा के अध्यक्ष के माध्यम से जो भारत माता को “विधवा” तक लिखवा रही है, वह निंदनीय है। यह भारत का दुर्भाग्य है कि विपक्ष अब सत्ता पाने के लिए इस प्रकार के विभाजक मार्ग पर बहुत आगे बढ़ चुका है।
(देश मंथन, 7 अक्टूबर 2021)

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