प्रधानमंत्री मोदी की कमला हैरिस के साथ बातचीत ही ज्यादा महत्वपूर्ण

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Narendra Modi meeting with Kamala Harris

बारीकियों वाली बातें कमला हैरिस के साथ हुई हैं। खास तौर से इसलिए, कि कमला हैरिस एक तो अपने देश की पहली महिला उपराष्ट्रपति तो हैं ही, ऐसा लगता है कि संभवत: आगे जाकर कभी वे अमेरिका की पहली महिला राष्ट्रपति भी बन सकती हैं। वे भारतीय मूल की हैं, तो और भी इन बातों का महत्व था।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की इस अमेरिका यात्रा से एक चीज, जो मोटे तौर पर स्थापित होती है, यह है कि भारत की भूमिका वैश्विक मंच पर या वैश्विक राजनीति में दिनों-दिन महत्वपूर्ण होती जा रही है। उसका एक पड़ाव यह यात्रा भी है। पिछले दस साल में जिस स्थिति पर भारत नहीं था, या पिछले पाँच साल में उभर कर आया, उसमें अब और एक कदम आगे हम बढ़े हैं। वह इस पूरी यात्रा के दौरान हमें दिखाई पड़ रहा है। जो अलग-अलग कार्यक्रम हुए, उनसे आप एक निष्कर्ष निकाल सकते हैं। प्रधानमंत्री मोदी का संयुक्त राष्ट्र में दिया गया जो भाषण है, उससे भी अगर आप कुछ बातें निकालें तो ये निष्कर्ष निकाले जा सकते हैं।

लेकिन अमेरिका के राष्ट्रपति या अमेरिकी सरकार के साथ जो भारत का संवाद है, वह इस यात्रा में बहुत महत्वपूर्ण है, जिसमें खास तौर से कमला हैरिस के साथ बातचीत हुई है। दरअसल जो बात हुई है, वह कमला हैरिस के साथ ज्यादा हुई है। दोनों देशों के अधिकारी जिस बैठक में आमने-सामने बैठे हैं, उस बैठक में विमर्श हुआ है, क्योंकि राष्ट्रपति के साथ जो अकेले-अकेले की बैठक हुई, वह बहुत औपचारिक किस्म की थी। उसमें ज्यादा बातें संभव नहीं हो सकतीं।

बारीकियों वाली बातें कमला हैरिस के साथ हुई हैं। खास तौर से इसलिए, कि कमला हैरिस एक तो अपने देश की पहली महिला उपराष्ट्रपति तो हैं ही, ऐसा लगता है कि संभवत: आगे जाकर कभी वे अमेरिका की पहली महिला राष्ट्रपति भी बन सकती हैं। वे भारतीय मूल की हैं, तो और भी इन बातों का महत्व था। ऐसा हो सकता है कि वे अपने अफ्रीकी वोट बैंक का ज्यादा ख्याल रखती हैं, क्योंकि आखिरकार राजनेता अपने मतदाताओं के बारे में ज्यादा ध्यान रखते ही हैं। लेकिन वे भारतीय मूल की भी हैं, वे कभी इस बात का तो खंडन करेंगी नहीं।

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भारत के संबंध में अभी एक साल पहले तक जो उनकी स्थिति थी, वह आज नहीं है। दो साल पहले हमने अनुच्छेद 370 को हटाया था तो वे उसका विरोध करने वालों के साथ खड़ी थीं। उन्होंने नागरिकता कानून (सीएए) पर भारतीय नीतियों का विरोध किया था। यूँ देखें तो बहुत सारी बातें देखी जा सकती हैं। लेकिन इसके बावजूद अमेरिका भारत को कितना महत्वपूर्ण मानता है, वह इस बैठक में भी आप देख सकते हैं।

मेरी समझ से डोनाल्ड ट्रंप के जमाने में हमारे कोई बहुत अच्छे संबंध नहीं थे। हमें ऐसा लगता है, क्योंकि एक नाटकीय व्यक्तित्व था ट्रंप का। वे ऐसी बातें करते थे। लेकिन ट्रंप ने कुछ ऐसी बातें कीं, जो भारत की नीतियों के एकदम विरोध में जाती थीं। उनमें खास तौर से उन्होंने इमरान खान को खुश करने के लिए जो बातें कही थीं, और यह कहा कि मैं हस्तक्षेप करूँगा, बात कराऊँगा और मध्यस्थ बनूँगा, वे बातें उनको नहीं कहनी चाहिए थी। उन्होंने बाद में स्वीकार किया कि गलती की है। ट्रंप की बातों को आप व्यक्तिगत रूप से देखें तो वे कोई बहुत समझदारी की बातें नहीं थीं।

लेकिन दो देशों की सरकारों के रिश्तों के आधार पर देखें तो आज की अमेरिकी सरकार के साथ हमारे कोई खराब रिश्ते नहीं हैं। बल्कि, भारत के अमेरिका से जो बेहतरीन रिश्ते बने हैं, वे डेमोक्रेटिक पार्टी के समय में ही, बराक ओबामा के समय में बने हैं। जिस वक्त 2008 में हमारा परमाणु समझौता हुआ, उसके बाद जो नयी सरकार आयी थी वह क्या करेगी, कैसे करेगी, ये सब बातें बहुत संशय में थी। लेकिन बराक ओबामा सरकार ने उन चीजों को आगे बढ़ाया, बल्कि वे अकेले अमेरिकी राष्ट्रपति हैं जो दो बार भारत के दौरे पर आये थे। वे 26 जनवरी के मौके पर भी आये। उन्हीं के दल के जो बाइडन हैं।

इस वक्त जो परिस्थितियाँ हैं, वे भारत को अमेरिका के ज्यादा करीब ला रही हैं। यह भारत और अमेरिका के बीच की करीबी है। कमला हैरिस के उपराष्ट्रपति बनने के बाद क्या आपने उनका ऐसा कोई वक्तव्य सुना है, जो दो साल पहले सुनाई पड़ता था। नहीं, क्योंकि यह राजनीति है, राजनीति में बयान तो बदलते ही रहते हैं। अमेरिका की उपराष्ट्रपति के रूप में उन्होंने पाकिस्तान का साफ-साफ नाम लिया है आतंकवाद के बारे में, तो यह एक महत्वपूर्ण बयान है। लेकिन आतंकवाद को अगर किनारे छोड़ भी दें, तो भारत की भूमिका और बहुत सारे मसलों पर है, जैसे जलवायु परिवर्तन (क्लाइमेट चेंज), कोविड के खिलाफ लड़ाई और वैक्सीन के वितरण को लेकर है। और सबसे बड़ी बात यह है कि अगर भूराजनीति के संदर्भ में कहें तो चीन के मुकाबले खड़ा होने में अमेरिका हिंद-प्रशांत (इंडो-पैसेफिक) में भारत को एक धुरी के रूप में देखता है। वह रणनीति अमेरिका के दोनों दलों की है, चाहे डेमोक्रेटिक पार्टी हो या जॉर्ज बुश के समय रिपब्लिकन पार्टी हो, इन दोनों दलों की इसके बारे में एक ही रीति-नीति रही है। उसमें कोई राजनीतिक विचारधारा काम नहीं करती है।

एक बात बहुत उछाली गयी कि कमला हैरिस ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ मुलाकात का ट्वीट नहीं किया। लेकिन उन्होंने ट्वीट किया है, पर हाँ बाद में किया। हो सकता है भारत में राजनीतिक दलों ने जब इस बात को कहा तो उन्होंने ट्वीट भी किया। मैंने यह भी देखने का प्रयास किया कि उन्होंने इसके पहले कितने लोगों के बारे में ट्वीट किये थे। उन्होंने केवल एक अफ्रीकी राजनेता से मुलाकात के बारे में ट्वीट किया था। संभव है कि अपने अफ्रीकी मूल के मतदाताओं को संबोधित करते हुए उन्होंने अफ्रीकी राजनेता से अपनी मुलाकात का ट्वीट किया था। अगर आप कमला हैरिस के ट्वीट देखें पिछले एक हफ्ते के, तो उन्होंने कई राजनेताओं से मुलाकात की है, लेकिन सबके बारे में ट्वीट नहीं किया उन्होंने।

(देश मंथन, 28 सितंबर 2021)

इस बारे में प्रमोद जोशी से राजीव रंजन झा की पूरी बातचीत देखें इस लिंक पर : https://www.youtube.com/watch?v=E_HZUVWPut4

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