शपथः कुछ दूसरे पहलू

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डॉ वेद प्रताप वैदिक, राजनीतिक विश्लेषक :

भारतीय लोकतंत्र के इतिहास का यह ऐतिहासिक दिन है, जब नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री पद की शपथ ली और उनके मंत्रिमंडल ने भी। इस मंत्रिमंडल में उनके संसदीय दल का लगभग सही प्रतिनिधित्व हुआ है लेकिन फिर भी मोटी-मोटी कुछ कमियाँ भी दिखायी पड़ती हैं।

जैसे सबसे पहला प्रश्न यही पूछा जा रहा है कि लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, शांताकुमार आदि बुजुर्ग सांसदों को शपथ क्यों नहीं दिलायी गयी? इंदौर की वरिष्ठ सांसद सुमित्रा महाजन को भी कोई स्थान नहीं मिला। हो सकता है कि ये माननीय लोग आगे जाकर लोकसभा अध्यक्ष, उप राष्ट्रपति या राष्ट्रपति बन जायें। जो भी हो, यह तो मानना पड़ेगा कि नरेंद्र मोदी का यह मंत्रिमंडल शायद भारत का सबसे अधिक युवा मंत्रिमंडल सिद्ध होगा। एक दो सदस्यों के अलावा सभी वरिष्ठ मंत्री 60-65 साल के नीचे हैं। आशा है, यह स्थिति नरेंद्र मोदी को एक संकोचरहित प्रधानमंत्री बनने का मौका देगी। उम्र के लिहाज से ध्यान रखकर अब कोई निर्णय करने की मजबूरी का सामना नहीं करना पड़ेगा। खुद मोदी आजादी के बाद पैदा होने वाले पहले प्रधानमंत्री है।

इस मंत्रिमंडल को देखकर हम यह भी कह सकते हैं कि भाजपा का रूपांतर हो रहा है। नयी पीढ़ी का उदय हो रहा है। यह अन्य राजनीतिक पार्टियों में भी पीढ़ी-परिवर्तन को प्रोत्साहित करेगा। यह भारतीय लोकतंत्र के सतत नवीकरण की प्रक्रिया का प्रमाण है। इस मंत्रिमंडल में यों तो नये और पुराने सभी तरह के सांसदों को मौका मिला है लेकिन सात महिला मंत्रियों का होना इस बात का सूचक है कि उन्हें लगभग 15% प्रतिनिधित्व मिला है। यह और भी बढ़ना चाहिए। जहाँ तक अल्पसंख्यकों के कम अनुपात का सवाल हैं, इसके लिए मोदी या भाजपा को दोषी ठहराना मुश्किल है। भाजपा के सातों मुस्लिम उम्मीदवार हार गये लेकिन फिर भी राज्यसभा की सदस्या नजमा हेपतुल्लाह को मौका मिला है। अभी मंत्रियों के विभागों की विधिवत घोषणा नहीं की गयी है लेकिन माना जा रहा है कि विदेश मंत्रालय सुषमा स्वराज को, गृह राजनाथ सिंह को और वित्त अरूण जेटली को दिया गया है। रक्षा मंत्रालय प्रधानमंत्री ने अपने पास ही रखा है। यह विभाग वितरण अत्यंत उपयुक्त है लेकिन जब विस्तार होगा तो यह विभाग वितरण अधिक व्यावहारिक और सार्थक हो सकेगा।

यों तो राष्ट्रपति भवन के प्रांगण में चंद्रशेखरजी और अटलजी भी शपथ ले चुके है। लेकिन इस शपथ समारोह को मैँ जन-शपथ समारोह कहता हूँ, क्योंकि एक तो इसमें हजारों लोग शामिल हुए और छोटे-बड़े सभी शामिल हुए। साधु-संत भी दिखायी दिए। इस जन समारोह की उपस्थिति में मोदी का चुनाव अभियान और देश की विविधता प्रतिबंबित हो रही थी।

इस समारोह की सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि पड़ौसी देशों के शीर्ष नेता उपस्थित थे। मॉरिशस भौगोलिक पड़ोसी नहीं है लेकिन भारतवंशी पड़ोसी है। उसका आना और उससे भी ज्यादा मियां नवाज शरीफ का आना अत्यंत महत्वपूर्ण रहा। वह जन-दक्षेस के मेरे विचार को अमली जामा पहनाने की शुरुआत है। सुषमा स्वराज विदेश मंत्री के तौर पर इस स्वप्न को साकार करने में कोई कसर उठा नहीं रखेंगी, ऐसी आशा है। एक बात और होती तो मैं उसे भी ऐतिहासिक कहता। यदि मोदी के सभी मंत्री हिंदी या अन्य भारतीय भाषाओं में शपथ लेते तो यह घटना भी अपूर्व होती लेकिन आठ लोगों ने अंग्रेजी में शपथ ली। यह वहीं भाषाई गुलामी की भेड़चाल है, जो अभी तक चली आ रही थी क्या मोदी इसे नहीं बदल पायेंगे?

(देश मंथन, 27 मई 2014)

 

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