संजय कुमार सिंह, संस्थापक, अनुवाद कम्युनिकेशन :
प्लेटफॉर्म टिकट जब 30 पैसे का आता था, तब से ले कर अब, जब यह 10 रुपये में मिलेगा तब तक – बिहार के छोटे-बड़े स्टेशनों से लेकर दिल्ली, मुंबई,कोलकाता,चेन्नई सब जगह देख चुका हूँ।
काउंटर पर इतनी लंबी कतार रहती है कि कभी मौका ही नहीं मिला टिकट लेने का। एकाध बार बिना टिकट, बिना रिजर्वेशन चलना हुआ तो भी प्लेटफॉर्म टिकट किसी से माँग ही लिया है, खरीदा तो कभी नहीं। स्टेशन छोड़ने जाने वाले 10 लोगों में तो रहता ही हूँ, मुझे भी छोड़ने-लेने 10 लोग आते हैं। दिल्ली वाले क्या जानें 10 लोग – यहाँ तो मरने पर चार लोग नहीं जुटते।
वैसे, प्लेटफॉर्म पर ऐसा कुछ नहीं मिलता है कि उसके 10 रुपये लिये जायें। नयी दिल्ली स्टेशन पर एस्केलेटर चलता नहीं है, और लिफ्ट है इसका पता शायद ही किसी को हो। बाकी देश में गिनती के स्टेशनों पर यह सुविधा है। इस बजट में इसकी व्यवस्था करने की बात तो है। व्यवस्था हुई नहीं,टिकट का मूल्य पहले बढ़ गया।
अंग्रेजों की रेल अपने एकाधिकार का फायदा छक कर उठा रही है। स्टेडियम से लेकर मॉल, सिनेमा हॉल से लेकर क्लब तक जहाँ कहीं भी भीड़ जुटती है, वहाँ सुरक्षा उपाय से लेकर अग्निशमन की व्यवस्था कानूनन जरूरी है। पर रेलवे को इससे मुक्ति है। देश भर के किसी भी प्लेटफॉर्म पर शौचालय, मूत्रालय नहीं हैं (बड़े स्टेशनों के एक नंबर प्लेटफॉर्म को छोड़ कर)। रोशनी, बैठने की जगह, उद्घोषणाएँ साफ-साफ सुनाई देना – आखिर ऐसी कौन-सी सुविधा है जिसके पैसे लिये जायें।
अगर प्लेटफॉर्म के उपयोग का खर्च ट्रेन के टिकट में शामिल नहीं है और रेलवे अपने यात्रियों को लूटने पर ही आमादा है तो प्लेटफॉर्म टिकट न्यूनतम 10 रुपये का होना चाहिए और फिर ट्रेन के क्लास के अनुसार इसकी कीमत बढ़ती जानी चाहिए। फर्स्ट क्लास से लेकर फर्स्ट एसी, राजधानी, शताब्दी तक के लिए अलग-अलग। अगर 10 लोगों के जाने पर एतराज है तो एक यात्री पर एक टिकट न्यूनतम 10 रुपये का और छोड़ने वालों की संख्या के अनुसार उसकी भी कीमत बढ़ायी जा सकती है।
अभी संभावनाएँ बहुत हैं। रेलवे को सभी उपाय जल्दी-से-जल्दी अपना लेने चाहिए। सिर्फ ट्रेन समय से चले और व्यक्ति अपनी जरूरत के अनुसार टिकट कटवा कर, आरक्षण ले कर यात्रा कर सके, ऐसी व्यवस्था करने की कोई जरूरत नहीं है!
(देश मंथन, 18 मार्च 2015)