अजय अनुराग :
सलमान खान को सजा की खबर ने उनके सभी फैंस को दुःखी कर दिया। पहले संजय और अब सलमान।
जाहिर है हम अपने नायकों का दुःख या पतन नहीं देख सकते। लेकिन पिछले कुछ दशकों में जिस तरह हमारे नायक खलनायक में तब्दील होते गये वह भी किसी त्रासदी से कम नहीं। हमने नतीजों पर तो प्रतिक्रिया की किन्तु उनके कारणों व परिणामों को अक्सर नजरअन्दाज किया।
असल में, हमारे यहाँ धीरोदात्त अथवा उदात्त नायकों की अवधारणा है जो प्रत्येक दृष्टिकोण से महान व उच्च होता है। इस शास्त्रीय अवधारणा को अगर छोड़ भी दें तो नायक वही है जो मानवीय शक्ति व सीमाओं से लैश होकर भी कम-से-कम उन आवश्यक मूल्यों का पालन करता है जो जीवन के लिए जरूरी हैं। हम साधारण लोग अपने नायकों में वस्तुतः अपनी ही क्षुद्रताओं की क्षतिपूर्ति तलाशते हैं और इसीलिए हम उसकी नकल भी करते हैं। लेकिन समय बदला और धीरे-धीरे नायक खुद ही क्षुद्र होता गया।
ठीक है हमारा नायक हमारा आदर्श (रोल मॉडल) न बने। लेकिन यदि उसे हमने पसन्द किया है, सम्मान दिया तो कम-से-कम वह हमारी भावनाओं की कद्र तो करे। आये दिन मारपीट, गाली-गलौज, अन्धविश्वासों को बढ़ावा, गरीबी का मजाक, महिलाओं से छेड़छाड़ व बलात्कार जैसी घटनाओं को अन्जाम देते हमारे नायक मालूम नहीं कब खलनायक बन गये।
फिर दौर शुरू हुआ खलनायकों के महिमामंडन का। नेगेटिव रोल करके तालियाँ व पैसा बटोरने वाले नायकों को हमने सर आँखों पर बिठा लिया। सवाल केवल एक्टिन्ग का नहीं था बल्कि अब हमारी चर्चाओं में अमिताभ बच्चन, आमिर, सलमान व सचिन तेंदुलकर के साथ दाऊद, छोटा राजन, राजा भैया, पप्पू यादव, शहाबुद्दीन व ए. राजा जैसे लोग भी उतनी ही जगह पाने लगे। हम बाते करने लगे कि ये कहाँ रहते हैं, क्या करते हैं, इनके ब्रान्ड्स क्या हैं, इनकी प्रेमिकाएँ कौन और कितनी हैं?
मानसिकता बदली तो इस आधुनिक युग में ‘दबंग’ होना प्रतिष्ठा का विषय बन गया। लोकतान्त्रिक समाज में हम सब दबंग बनने के लिए आये दिन आस्तीन चढ़ाकर किसी से भी लड़ने-भिड़ने को तैयार हो गये। जीवन व समाज में सामन्तवादी प्रवृतियाँ फिर से सम्मान का सूचक बन गयीं। अपने नेताओं को तलवार भेंट करना, सोने-चाँदी से तौलना, प्रेम करने वालों को पंचायतें लगाकर फाँसी पर टाँग देना आदि सब इसी का नतीजा था। और जब हमारे नायक आभासी बनने लगे तब एक आभासी फैंस फोलोवर्स की दुनिया खड़ी हुई और उसी के ‘लाइक्स’ व ‘डिसलाइक्स’ निर्णायक बन गये। ‘लाइक्स’ के बहुमत ने हमारी आलोचनाओं की धार को कुन्द कर किया। हम इस आभासी नायक के समक्ष नतमस्तक हो गये और फिर उसके सभी अवगुण ‘समरथ को नहीं दोष गुसाईं’ की गंगा में धुलकर हमारे लिए आदर्श व उच्च गुण बन गए।
क्या शाहरुख द्वारा किसी गार्ड को पीटा जाना, संजय का गैर-कानूनी तरीके से हथियार रखना, अमिताभ का अभिषेक की शादी से पहले घूम-घूमकर मंगल ठीक करना, अपनी बेटी की उम्र की नायिका को सार्वजानिक रूप से किसी नायक का ‘सेक्सी’ कहना, और अब सलमान का सड़क पर सोये गरीब मजदूरों पर गाड़ी चढ़ा देना फिर उसके बाद अभिजीत जैसे फनकार का उन मजदूरों को कुत्ता कहना आपको बुरा नहीं लगता? क्या इस तरह से नायकों का नीचे गिरना आपको वाकई बुरा नहीं लगता? माफ करें, मुझे तो लगता है!!
(देश मंथन, 07 मई 2015)