ट्रांसफार्मर, प्लीज कम सून

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आलोक पुराणिक, व्यंग्यकार :

क्षमा करें इन दिनों चिन्तन सिर्फ ट्रांसफार्मर पर हो पा रहा है। और किसी भी तरह के चिन्तन के लिए मोहल्ले के ट्रांसफार्मर को ठीक-ठाक कार्यरत रहना जरूरी है, जिससे आपके घर की बिजली सप्लाई होती हो।

बड़े लोग देश, विदेश, अंतरिक्ष, कविता, उपन्यास, कहानी पर सोचते हैं, मैं आम आदमी इन दिनों ट्रांसफार्मर पर सोच रहा हूँ।

अमेरिका से आया कवि बता रहा था कि जी मैं तो आजकर चिड़िया, गौरेया, कोमल खरगोश पर सोच रहा हूँ। आप किस पर सोच रहे हैं।

मैंने बताया – ट्रांसफार्मर पर। 

अमेरिकन धराशायी हो लिया – ट्रांसफार्मर पर रचना कैसे।

मैंने बताया – हमारे व्यंग्य जिन्दगी के इर्द-गिर्द घूमते हैं। और गरमी में हमारी जिन्दगी ट्रांसफार्मर के इर्द-गिर्द घूमती है। रात में पटाखा सा भड़ाम होता है । पहले डकैती का कन्फ्यूजन होता था। पर अब डकैती तो पड़ती नहीं। हमारी तरफ के सारे डकैत तो विधायक, सांसद हो लिये हैं। सो हम समझ जाते हैं, ट्रांसफार्मर का हो लिया अन्तिम संस्कार। कित्ती जिन्दगी ट्रांसफार्मर की दो-चार दिन, एकाध हफ्ता बहुत खिन्च गया तो पन्द्रह दिन।

फिर अमेरिकन ने गौरेया, चिड़िया की कोमल टाइप बातें नहीं कीं। 

मुझे ट्रांसफार्मर के नीचे जाने कितनी गौरेया, चिड़िया दबी हुई दिखायी दीं।

पिछले दिनों मैं आगरा गया कुछ साहित्यिक चिन्तन करने, राष्ट्रीय-अन्तर्राष्ट्रीय महत्व के मसलों पर विचार-विमर्श करने। एक दिन छोटे भाई से पूछा – बताओ इस शेर के बारे में क्या राय है-

हम ये कह कर दिल को बहला रहे हैं

वह चल दिये हैं, वह आ रहे हैं

छोटा भाई बोला – ये लाइनें तो ट्रांसफार्मर पर लिखी गयी हैं। आगरा में हमारे इलाके का ट्रांसफार्मर फुँक गया है। यहाँ के लिए नया ट्रांसफार्मर चल दिया है मेरठ से। दिल्ली से आगे पहुँच गया है। ये लाइनें हम तो हर घंटे दोहरा रहे हैं, वह चल दिये हैं, वह आ रहे हैं। 

मुझे गालिब, मीर, जफर सब के सब ट्रांसफार्मर के नीचे दबे दिखायी दिये।

अगले दिन भाई के घर के आसपास की महिलाएँ कुछ इस टाइप की बातें कर रही थीं-ले लेट ही होगा, ये कभी टाइम से आता ही नहीं है। 

सम्मान का यह स्तर देखकर मुझे लगा कि जरूर ये अपने पतियों के बारे में बात कर रही हैं।

पर नहीं, वो ट्रांसफार्मर के बारे में बात कर रही थीं। ट्रांसफार्मर को सेल्स टैक्स वालों ने मथुरा – कोसी के पास रोक लिया था। वहाँ भी ट्रांसफार्मर फुँक गया, वहाँ के प्रभावशाली नेता और अफसर जुगाड़बाजी कर रहे हैं कि आगरा के लिए चला ट्रांसफार्मर मथुरा में लगा गये।

घर की स्त्रियाँ नाराज – परेशान हैं, ट्रांसफार्मर के लिए। विरह वेदना अब पतियों के लिए नहीं, ट्रांसफार्मर को लेकर होती है – आन मिलो ट्रांसफार्मर। प्लीज कम ट्रांसफार्मर।

मैंने छोटे भाई से कहा – यार चीन ने अरुणाचल प्रदेश में अपनी जमीन दबा ली है, क्या राय है। 

वह उखड़ गया – बोला जी आप भी जाने कहाँ की चिन्ता करते हैं। हमारे ट्रांसफार्मर को मथुरा-कोसी वालों ने दबा लिया है, इसकी चिन्ता बड़ी है।

चीन को छोड़ो, ट्रांसफार्मर दबाने वालों से निपटा जाये पहले।

सर जी अब मुझे भी समझ में आ गया है – देश की सबसे बड़ी समस्या क्या है-ट्रांसफार्मर और सबसे बड़ा समाधान क्या है – जी समझे नहीं, ट्रांसफार्मर।

(देश मंथन, 07 मई  2015)

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