संजय कुमार सिंह, संस्थापक, अनुवाद कम्युनिकेशन
मुझे लगता है ‘मेक इन इंडिया’ के लिए बाल मजदूरी जरूरी है।
बिजली और आधारभूत संरचना में भारी कमी के बावजूद अगर कोई भारत में निवेश करेगा तो सस्ते श्रम के लिए ही ना। घरों में अपेक्षाकृत आसान और कम खतरनाक काम के लिए बाल मजदूर सुलभ होंगे तभी तो मध्यम वर्गीय भारतीय परिवार समेत श्रम बेच पायेंगे। बाल मजदूरी गैर कानूनी हो या नहीं, अनैतिक तो है ही। पर गरीबों के बच्चों को पैसे देने जैसी उदारता और फुर्सत में उन्हें पढ़ाने (या काम सीखाने) के आदर्श के तहत बच्चों से काम कराना फैशन भी है। जिस देश में चाय बेचने वाले बच्चे का प्रधानमन्त्री बनना गर्व की बात हो वहाँ बच्चे चाय नहीं बेचेंगे तो भविष्य में यह गौरव ना तो किसी बच्चे को मिलेगा और ना हमारे देश-समाज को। बाल मजदूरी के गैर कानूनी होने से एक और समस्या थी। इसकी चर्चा मैंने 22 सितंबर 2013 को अपने एक पोस्ट में की थी।
रोटरी क्लब ऑफ इन्दिरापुरम और फेडरेशन ऑफ अपार्टमेंट्स ओनर्स एसोसिएशन की ओर से ऑरेंज काउंटी क्लब, इन्दिरापुरम में आयोजित पुलिस, निजी सुरक्षा एजेंसियों और अधिवासियों के बीच अन्तर सक्रिय सत्र में कई मुद्दों के साथ एक मुद्दा यह भी उठा था कि घरों में नाबालिग लड़के-लड़कियाँ काम करते हैं और चूँकि कोई शिकायत नहीं है इसलिए सुरक्षा कर्मचारी उनके आने-जाने पर रोक नहीं लगा सकते, जबकि वे जानते हैं कि कौन अधिवासी, उनका बच्चा या नौकर है। ये अवयस्क बच्चे चूँकि नौकरी कर ही नहीं सकते इसलिए जाहिर है कि वे पुलिस से भी प्रमाणित नहीं हैं और अगर कभी ऐसे लोग अपराध करें तो सुरक्षा एजेंसी पर सामत आती है, जबकि वे जानते हुए कुछ कर नहीं सकते हैं। पुलिस की ओर से सत्र को संबोधित कर रहे कुमार रणविजय सिंह, क्षेत्राधिकारी नगर चतुर्थ ने कहा कि यह अधिवासियों के जिम्मेदारी है कि वे ऐसे काम न करें जो गैर कानूनी है और उनके लिए ही खतरनाक साबित हो सकते हैं। यह सही है कि बगैर शिकायत पुलिस भी ऐसे मामले में कार्रवाई नहीं कर सकती है और ऐसी स्थिति में कुमार रणविजय सिंह ने जो कहा वह सही ही था।
उस समय मैंने लिखा था कि इस मामले को यूँ ही नहीं छोड़ा जाना चाहिए और मेरा मानना है कि अवयस्क बच्चों के हित में काम करने वाले संगठनों को आगे आने चाहिए और अपार्टमेंट्स के सुरक्षा गार्डों से पूछकर ऐसे अवयस्क कामगारों को आजाद कराने और उन्हें खेलने – पढ़ने देने की जरूरत है। ऐसे मामलों में अपार्टमेंट में रहने वाले कुछ ज्यादा ही सुरक्षित हैं पर पैसे देकर खरीदी गई इस सुरक्षा के दुरुपयोग की इजाजत किसी को नहीं दी जा सकती। फिर भी, हमारे देश में वही होता है जो मंजूरे ‘खुदा’ है – जिसकी लाठी उसकी भैंस।
(देश मंथन, 16 मई 2015)