सुशांत झा, पत्रकार :
करीब दो साल पहले ‘यमुना बचाओ अभियान’ के लोगों से मिलना हुआ तो हथिनीकुंड बराज के बारे में जानकारी मिली। वे लोग मथुरा से दिल्ली तक पदयात्रा करते आ रहे थे और पलवल के पास सड़क के किनारे एक स्कूल के मैदान में टेन्ट में विश्राम कर कर रहे थे।
पता चला कि यमुना की गन्दगी की असली वजह तो ये है कि उसका पानी हरियाणा के यमुना नगर में हथिनीकुंड बराज में रोक लिया गया है। वहाँ से यूपी और हरियाणा के लिए दायें-बायें नहर निकाल ली गयी और यमुना का पानी खेतों में बाँट लिया गया। ऐसे में यमुना सदानीरा नहीं रह पाई और रही-सही कसर दिल्ली के कचड़े (घरेलू और औद्यौगिक दोनों) और उसके कु-प्रबन्धन ने पूरा कर दिया। यानी हथिनीकुंड का बराज यमुना का सारा पानी पी गया और प्रदूषण के लिए सारी गाली दिल्ली के कचड़े (फैलाने वालों) को मिली!
विकीपीडिया कहता है कि बराज 1996 से 1999 के बीच बना, जबकि उससे नीचे भी अंग्रेजी राज का करीब सवा सौ साल तजेवाला बराज पहले से था, लेकिन उसकी जगह हथिनीकुंड बनाया गया ताकि यूपी और हरियाणा की नहरों को पानी मिल सके।
केन्द्र में उस समय देवगौड़ा-गुजराल और वाजपेयी की सरकारें थीं और हरियाणा- यूपी में बीजेपी के ही भाई-बंधु थे। पता नहीं किन महानुभावों ने हथिनीकुंड बराज बनवा कर यमुना का पूरा पानी पी लेने की सहमति दी थी- यह अपने आप में शोध का विषय है। उस समय के कथित NGO क्या कर रहे थे, कोई सुप्रीम कोर्ट में क्यों नहीं गया या अखबारों ने क्या-क्या लिखा इस पर विस्तृत शोध होना चाहिए।
दिक्कत ये है कि मामला नहर-सिंचाई और किसानों से जुड़ा था तो सब ने चुप्पी साध ली। हमारे देश में कुछ मामले अत्यधिक पवित्र होते हैं, कोई उसे नहीं छूता। यमुना का पानी रुक गया, नदी जल-विहीन हो गयी, ऐसे में उसमें गिरने वाला थोड़ा भी कचड़ा उसे नरक बनाने के लिए काफी था। यहाँ तो उसे दिल्ली जैसे भीमकाय शहर का कचड़ा झेलना था, फरीदाबाद-बल्लभगढ, पलवल, मथुरा और आगरा को झेलना था। ऐसे में उसकी क्या गत हुई, इसे समझने के लिए किसी IIT में पढ़ने की जरूरत कहाँ है?
ऐसा नहीं है कि इन शहरों के कचड़ों के प्रबन्धन के लिए धन खर्च नहीं किये गये, लेकिन अरबों रुपये कहाँ गये किसी को पता नहीं है।
इधर मोदी सरकार ने नदियों को साफ करने को लेकर कुछ रुचि दिखाई है- लेकिन मुझे शक है कि किसानों की आड़ में हरियाणा और यूपी की सरकारें नहरों में पानी की कटौती होने देंगी। दीर्घकालीन हित तो कोई सोचता नहीं, ऐसे में यमुना भले ही बर्बाद हो जाये या उसके किनारे की दसियों करोड़ की आबादी भले ही विनाश के कगार पर पहुँच जाए- हमारी राजनीति को कोई फर्क नहीं पड़ता।
परिवहन मन्त्री नितिन गडकरी तो और भी कमाल के हैं! उन्हें लगा कि चूँकि यमुना में सिल्टिंग है- इसलिए पानी नहीं है। मन्त्री जी ने कहा कि नदी की ड्रेजिंग करवाएंगे- यानी भीमकाय मशीन लाकर मिट्टी निकाल दो और नदी को गहरा कर दो। बिना इस बात की चिन्ता किये हुए कि हजारों सालों में एक प्रक्रिया के तहत बनी नदी और उसके मिट्टी के लेयर को ऐसे ड्रेंजिंग करके नहीं हटाया जा सकता और बीमारी, नदी की गहरायी में नहीं- हथिनीकुंड में पानी की रुकावट में है- मन्त्रीजी उसी जोश में आ गये मानो नेशनल हाईवे बनवा रहे हों। उनके दिमाग में सबसे पहली बात ये आयी कि ड्रेजिंग करवा कर नदी में प्रेमी-प्रेमिकाओं के लिए नौका-विहार का आयोजन करवायेंगे!
पर्यावरणविदों का कहना है कि यमुना में बालू और मिट्टी का जो चरित्र है वो अलग है। दिल्ली की यमुना, पहाड़ से ज्यादा दूरी पर नहीं है। ऐसे में नदी की गहरी खुदाई मिट्टी के उस लेयर को हटा देगा और यमुना के दोनों तट कटाव के लिए असुरक्षित हो जायेंगे।
ये अच्छी बात है कि National Green Tribunal (NGT) ने हरियाणा सरकार से कहा है कि वो 10 क्यूसेक पानी छोड़े ताकि दिल्ली के वजीराबाद तक यमुना की प्राकृतिक धारा एक हद तक कायम रहे।
यमुना के लिए आवाज उठाना इसलिए जरूरी है क्योंकि अगर हमने आज यमुना को खो दिया, तो कल को गंगा भी नहीं बचेगी, फिर एक दिन नर्मदा, कोसी और चंबल की भी बारी आयेगी।
(देश मंथन 29 जून 2015)