कवि और ‘कवी’

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आनंद कुमार, डेटा एनालिस्ट  : 

त्रिभुवन जी की एक पोस्ट में कवि और ‘कवी’ की कहानी थी, यानि कविता करने वाले और कौवे की। उसमें होता क्या है कि एक कवि को प्यास लगी। आसपास उन्हें एक हलवाई की दुकान दिखी, जहाँ गरमा-गरम जलेबियाँ बन रहीं थीं। वो वहाँ पहुँचे, पानी पीने के बाद जलेबी खाने का भी मन हुआ तो जलेबी दही ली और वहीं खाने बैठ गये ।

इतने में एक कौआ कहीं से आया और दही की परात में चोंच मार कर उड़ चला पर हलवाई ने उसे देख लिया था। हलवाई ने गुस्से में कोयले का एक टुकड़ा उठाया और कौवे को दे मारा। वैसे तो कौवा चोंच मार के उड़ जाने में बड़ा तेज होता है लेकिन उस दिन उसकी किस्मत खराब थी, कोयले का टुकड़ा उसे जा लगा और वो चोट से मर भी गया ।

कवि महोदय ये घटना देख रहे थे सो कवि हृदय जगा सो जब वह जलेबी दही खाने के बाद पानी पीने पहुँचे तो उन्होने कोयले के टुकड़े से एक पंक्ति लिख दी । कवि ने लिखा :- “काग दही पर जान गँवायो” ।

थोड़ी देर बाद वहाँ एक लेखपाल महोदय जो कागजों में हेराफेरी की वजह से निलम्बित हो गये थे पानी पीने पहुँचे। कवि की लिखी पंक्तियों पर जब उनकी नजर पड़ी तो अनायास ही उनके मुँह से निकल पड़ा कितनी सही बात लिखी है! क्योंकि उन्होने उसे कुछ इस तरह पढ़ा :- “कागद ही पर जान गँवायो” ।

पंक्ति पर विचार करते वो भी घर चले ।

थोड़ा समय और बीता तो शाम ढले एक मजनू टाइप आदमी भी लुटा-पिटा सा वहाँ पानी पीने पहुँचा । उसे भी लगा कितनी सच्ची और सही बात लिखी है काश उसे ये पहले पता होती, क्योंकि उसने उसे कुछ यूँ पढ़ा था :- “का गदही पर जान गँवायो”

तो अपनी स्थिति, अनुभव और आपके विचार ही कई बार ये तय करते हैं कि एक ही बात का क्या मतलब निकलेगा। अभी के सेकुलरों की स्थिति देखिये अब। कुछ को लगता है की संघ लोगों को पैसे देता है उन्हें गालियाँ देने के लिए, जबकि 99% मामलों में उन्होंने खुद ही लोगों को उलटी सीधी बातें कर के भड़काया होता है। खुद तो NGO से हमेशा थर्ड AC का टिकट और कैब का किराया लिया है, इसलिए लगता है कि लोग भी इन्टरनेट चलाने का पैसा लेते होंगे ।

कुछ को ऐसा भी लगता है कि ये महिलाओं की इज्जत नहीं करते। भाई जब मामला अपनों पर आता है तो आरोप लगाने वाली महिला पर आप कैसे-कैसे इल्जाम लगाते हैं वो सबने सुना, पढ़ा और देखा है। तो जाहिर है दूसरों के लिए भी आप ऐसा ही सोचेंगे। फिर जब लोगों कि तस्वीर का मजाक बनाते समय आपने ये सोचा ही नहीं की बिटिया के साथ वाली तस्वीर का मजाक उड़ाने पर उसकी भावनाएँ आहात होंगी, तो आपके महिला या पुरुष होने और आपकी भावनाओं का खयाल कोई क्यों रखेगा भला ?

बिना बात के मुद्दे खड़े करके जो किस ऑफ लव की मुहिम छेड़ी थी उसका भी कोई नतीजा निकला नहीं इसलिए इन्हें लगता है ‪#‎SelfieWithDaughter‬ का भी कोई नतीजा नहीं निकलेगा। मगर ऐसा करते समय ये लोकपाल और निर्भया काण्ड जैसे आन्दोलनों को भूल जाते हैं। बिना आपके झंडे के ही जनता ने वो आन्दोलन चला लिए थे जनाब ।

विरोधी बादलों से सूरज थोड़ी देर ढक सकता है गायब नहीं कर सकता। विलोम के काले बादल जनता ऐसे ही फूंक मारकर उड़ाएगी। आँखें बंद रखियेगा हजरात, कहीं सच्चाई की चमक आपकी आँखों की रोशनी भी न ले जाए!!

(देश मंथन, 04  जुलाई 2015)

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