नाकाम मुखिया

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संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :

आज मैं आपको आधुनिक भारत के प्राचीन इतिहास के संसार में ले चलूँगा। आज मैं उस कामचोर अंग्रेज इतिहासकार, विन्सेंट स्मिथ की पोल खोल कर रख दूँगा, जिसने यमुना तट पर कौरवों और पांडवों के बीच हुए महाभारत युद्ध के तुरन्त बाद की घटनाओं की अनदेखी कर अपना इतिहास सातवीं शताब्दी ईसा पूर्व के बीच से लिखना शुरू कर दिया।

मेरे ससुर जी कभी-कभी खुश हो जाते थे, तो मुझसे कहा करते थे कि फलाँ आदमी को चाहे जितना समझा लो, वो नहीं समझने को तैयार होगा, क्योंकि उसे अपनी ही अंग्रेजी बोलनी है। मतलब जिस बात से वो सहमत नहीं होते थे, उसे यह कह कर चुप कराने की कोशिश करते थे कि अपनी अंग्रेजी अपने पास रखो।

इतिहासकार विन्सेंट महोदय ने भी अपनी अंग्रेजी बघार दी और हमारे उस प्राचीन इितहास को काल्पनिक कथा बन जाने दिया, जिसकी नींव पर आज का हिन्दुस्तान टिका है।

वैसे तो मेरा सबसे प्रिय विषय फिजिक्स रहा है, लेकिन मैं जरा ध्यान से सोचता हूँ तो केमेस्ट्री दरअसल मुझे अधिक प्रिय था। पर मेरे टीचर कहते थे कि इतिहास और अर्थशास्त्र पर मेरी गहरी पकड़ थी।

राम जाने सच क्या है। पर इतना तय है कि स्कूल से निकलते-निकलते मैं इतिहास को घुट्टी बना कर पी चुका था। मेरी माँ ने इतिहास को बिना सिल-बट्टे पर पीसे मुझे पानी में घोल कर पिला दिया था। आप मुझसे कभी इक्ष्कवाकु वंश के राजाओं की बात कर लें या फिर पौरव या कुरू वंश की, मैं लाल चोंच वाले हरे तोते की तरह टाँय-टाँय करता हुआ आपको सारा कुछ मिनटों में सुना दे सकता हूँ।

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अब क्योंकि मैं कपोल कथा तो सुनाता नहीं हूँ, इसलिए आज जो आपको सुनाने जा रहा हूँ, वो बेशक आपको पौराणिक कथा भर लगे, लेकिन हकीकत में वो आधुनिक भारत का प्राचीन इतिहास है।

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हिमाचल प्रदेश में कई मन्दिरों के बीच एक मन्दिर है ममलेश्वर महादेव मन्दिर। मेरी माँ ने मुझे इतिहास की पुस्तक से जो कहानी मुझे सुनायी थी, उसके मुताबिक पांडवों ने अपने अज्ञातवास का कुछ समय इस मन्दिर वाले गाँव में भी गुजारा था। इस गाँव में मेरी कोई दिलचस्पी नहीं होती, अगर माँ ने यह नहीं कह दिया होता कि वहाँ एक राक्षस था, जो रोज एक आदमी को खा जाता था।

“माँ, राक्षस रोज एक आदमी को खा जाता था?” मैं इतना कहता और माँ छाती के बीच में दुबक जाता। 

“हाँ बेटा। उस गाँव ने तय कर लिया था कि वो रोज एक आदमी को खा सकता है।”

“लेकिन माँ, गाँव वालों ने ऐसा क्यों तय कर लिया था?”

“असल में गाँव वालों ने तय नहीं किया था बेटा। गाँव के मुखिया ने तय कर दिया था। मुखिया का घर गाँव के दूसरे छोर पर था, और उसे लग रहा था कि उसकी बारी कभी आएगी ही नहीं। राक्षस गाँव के उस किनारे से लोगों को खाता रहेगा और इस तरह मुखिया बचा रहेगा।”

“लेकिन माँ, ये तो गलत बात थी। मुखिया का काम तो लोगों की रक्षा करना होता है। ये कैसा मुखिया था, जिसने लोगों को राक्षस के हवाले ही कर दिया?”

“ये राजनीति है बेटा। इस राजनीति का पहला पाठ ही यही है कि सामने वाले को फँसा दो, खुद को बचा लो।”

“तो क्या मुखिया सदा के लिए बचा रहा माँ?”

“नहीं बेटा, ऐसा भला कब होता है? भगवान के घर में देर होती है, अंधेर नहीं होती। गाँव के किनारे से खाते-खाते एक दिन मुखिया का नंबर आ गया। राक्षस ने तय कर लिया कि कल सुबह मुखिया ही उसकी खुराक बनेगा।”

“माँ मुझे बहुत डर लग रहा है।”

“बिल्कुल डरना चाहिए बेटा। लेकिन इस बात के लिए नहीं कि मुखिया का नंबर राक्षस की खुराक के रूप में आ गया, बल्कि इस बात के लिए डरना चाहिए कि कैसे मुखिया ने अपने बहुत छोटे से स्वार्थ के लिए राक्षस को गाँव के किनारे पनपने दिया।”

“फिर क्या हुआ माँ?”

“पांडव वहीं ठहरे थे। उन्होंने रात में मुखिया की पत्नी को रोते हुए सुना, तो उन्होंने रोने की वजह पूछी। रोती हुई माँ ने सारी कथा कह सुनायी कि कैसे पप्पू के पापा ने ही ये व्यवस्था की थी कि गाँव के उस पार से राक्षस रोज एक आदमी को अपनी खुराक बनाएगा। तब इन्होंने सोचा नहीं कि उनके घर का नंबर भी एक दिन आ ही जाएगा। आज आ गया है, इसीलिए मैं रो रही हूँ।

खैर, पाडंवों ने ये सुना तो भीम से कहा कि जाकर उस राक्षस को मार दे। और भीम ने जाकर उस राक्षस को मार दिया।”

“वाह माँ! मैंने टीवी पर छोटा भीम देखा है। वो बहुत बहादुर है।”

“बहादुरी नियत में होती है बेटा। जो क्षणिक फायदा सोचता है, उसे लगता तो है कि उसने अगर दूसरे को किसी का शिकार बना दिया तो उसका कभी कुछ नहीं बिगड़ेगा, पर ऐसा होता नहीं है। राक्षस तो राक्षस है, एकदिन वो उसे भी खा जाता है। इसलिए कुशल राजा, राक्षस को पलने नहीं देता। वो उससे शुरू में ही युद्ध कर लेता है। युद्ध में वो उसे पराजित भी कर सकता है।”

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“तुम खुद देख लेना बेटा। जो मुखिया ऐसे राक्षसों को पालता है, एकदिन खुद उसका शिकार हो जाता है। एक नहीं, सौ उदाहरण मिल जाएँगे।”

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“माँ, एक बात बताऊँ? ये वाली कहानी तुमने मुझे पहले भी सुनायी थी। लेकिन दुबारा सुनायी, तो मुझे ज्यादा मजा आया। अब मैं इसे आधुनिक भारत की राजनीति से जोड़ कर देख पा रहा हूँ। मैं छोटे भीम से रिक्वेस्ट करूँगा कि इस बार वो राक्षस को नहीं मारे। ऐसा मुखिया किस काम का, जो अपने ही लोगों को राक्षस का निवाला बनने दे?”

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“तुम इस कहानी को याद रखना। तुम्हारी स्कूल के इतिहास की किताबों में इतिहासकार विन्सेंट स्मिथ इसे काल्पनिक कथा करार दे देंगे, लेकिन यही असली इतिहास है। प्राचीन भारत का आधुनिक इतिहास। एक ऐसा इतिहास जिसमें जब-जब मुखिया ऐसे राक्षसों को पालेंगे, वो उन्हें अपना शिकार बनाएँगे ही।

बस जरा सा इन्तजार।”

(देश मंथन, 07 जुलाई 2015)

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