कमर वहीद नकवी, वरिष्ठ पत्रकार:
पत्रकार अक्षय सिंह की मौत कैसे हुई? क्या वह व्यापम घोटाले के किसी नये सच तक पहुँचने के करीब थे? क्या नम्रता दामोर की संदिग्ध मौत की पड़ताल करते-करते अक्षय इस घोटाले के किसी और सिरे तक पहुँचने वाले थे?
इन्दौर में कौन-कौन इस बात को जानता था कि अक्षय वहाँ से झाबुआ जा कर नम्रता दामोर के पिता से मिलने जानेवाले हैं? नम्रता दामोर की मौत की जाँच को लेकर अब तक जो कहानियाँ सामने आयी हैं, उनसे यकीनन सवाल उठ रहे हैं और शक गहरा रहा है। तीन डाक्टरों की टीम ने अपनी पोस्टमार्टम रिपोर्ट में साफ़-साफ़ कहा था कि नम्रता की मौत गला घोंटे जाने की वजह से हुई, उसके चेहरे पर नाख़ून की खरोंचों के निशान भी थे। लेकिन यह रिपोर्ट नहीं मानी गयी। मध्य प्रदेश के मेडिको-लीगल इंस्टीट्यूट के निदेशक ने अपनी जाँच में कहा कि यह हत्या नहीं, आत्महत्या का मामला है और अद्भुत फुर्ती दिखाते हुए आनन-फानन में पुलिस ने केस का रुख बदल दिया! हालाँकि नम्रता के परिवार वाले इस मामले को हाइकोर्ट तक ले गये थे और वहाँ सुनवाई चल रही थी, और पुलिस वहाँ अपनी रिपोर्ट भी सौंप चुकी है कि ट्रेन से गिर कर नम्रता की मौत हुई, लेकिन यह हत्या थी या आत्महत्या, यह कहा नहीं जा सकता।
कैसे बदला नम्रता दामोर का मामला?
अक्षय इसी मामले की पड़ताल के लिए झाबुआ गये थे। वह नम्रता के पिता के साथ बातें कर रहे थे, तभी अचानक उनकी मौत हो गयी। सवाल है कि अगर अक्षय अपनी रिपोर्ट कर पाते और उसमें कुछ ऐसी बातें सामने आतीं कि पूरे मामले की नये सिरे से तफ्तीश हुई होती, तो जाँच के घेरे में कौन-कौन लोग आये होते? तो क्या कुछ लोग अक्षय की इस छानबीन से खतरा महसूस कर रहे थे कि कहीं नम्रता के मामले में कुछ ‘नये रहस्य’ तो सामने न आ जायें? उस पर फिर से जाँच न शुरू हो जाये? और अन्ततः कहीं वह ‘आत्महत्या’ के बजाय हत्या का मामला न साबित हो जाये? नम्रता की लाश 7 जनवरी 2012 को मिली थी। उसकी शिनाख्त नहीं हुई। तीन डॉक्टरों ने 9 जनवरी को पोस्टमार्टम किया और साफ कहा कि गला घोंट कर उसे मारा गया है। लाश मिलने के 22 दिन बाद उसकी शिनाख्त हो पायी। तब पता चला कि मरने वाली नम्रता है। और फिर 7 फरवरी को पुलिस ने भोपाल के मेडिको-लीगल इंस्टीट्यूट के निदेशक डॉ. डीएस बड़कर की राय ली, उन्होंने फोरेन्सिक जाँच के बाद पोस्टमार्टम रिपोर्ट के निष्कर्षों को खारिज कर दिया और मामला ‘हत्या’ से बदल कर ‘आत्महत्या’ का हो गया! ध्यान दें कि मामले में यह बदलाव नम्रता की शिनाख्त होने के बाद हुआ, पहले नहीं!
क्या कोई अक्षय सिंह से खतरा महसूस कर रहा था?
मुझे नहीं पता कि अक्षय सिंह अपनी रिपोर्ट में क्या सवाल उठाने वाले थे? मुझे यह भी नहीं पता कि अक्षय सिंह को कुछ ‘नयी जानकारियाँ’ हाथ लगी भी थीं या नहीं? मैं व्यक्तिगत रूप से अक्षय सिंह को जानता भी नहीं, कभी उनसे मिला भी नहीं। लेकिन वह नम्रता के मामले की पड़ताल कर रहे थे, इसी से उनकी मौत के कारणों को लेकर शक बढ़ जाता है। यह समझना जरूरी है कि नम्रता के मामले में कोई ‘नया खुलासा’ क्यों बहुत खतरनाक था? कई बातें हैं। पहली यही कि शायद जाँच उन लोगों तक पहुँच जाती, जो नम्रता का ‘इस्तेमाल’ कर रहे थे! वह कौन लोग हैं? शक है कि नम्रता का मेडिकल में दाखिला गलत तरीके से हुआ था। उससे पूछताछ शुरू होते ही उसकी मौत हो गयी थी! सवाल यह है कि नम्रता किन लोगों के सम्पर्क में थी, उनके बारे में क्या और कहाँ तक जानती थी? उसके जीवित न रहने से किन लोगों को फायदा होता? और अब तीन साल बाद अगर मामले को लेकर कुछ नये सवाल उठते, तो किन लोगों को परेशानी हो सकती थी? क्या किसी को खतरा महसूस हो रहा था कि अक्षय सिंह जाने या अनजाने ही कहीं किसी महत्त्वपूर्ण कड़ी तक न पहुँच जायें?
दूसरी बात यह कि नम्रता के मामले में अगर यह साबित हो जाये कि उसकी हत्या हुई थी, तो न केवल उसकी मौत को ‘आत्महत्या’ सिद्ध करने की पूरी साजिश का भंडाफोड़ हो जायेगा, बल्कि सरकार, पुलिस और पूरे तन्त्र का वह गँठजोड़ भी बेनकाब हो जायेगा, जो इसके पीछे था। और अगर नम्रता के मामले में यह साबित हो जाये कि यह वाकई हत्या थी, जिसे आत्महत्या साबित करने की साजिश रची गयी, तो फिर व्यापमं घोटाले से जुड़ी हर मौत की नये सिरे से जाँच करनी ही पड़ेगी, चाहे मौत का जो भी कारण बताया गया हो। और अगर इतनी मौतों की जाँच के बाद उनके पीछे कोई साजिश साबित हो जाये, कितने और कौन-कौन लोग लपेटे में आ जायेंगे, कहा नहीं जा सकता।
विसरा अमेरिका की एफबीआई को भेजिए।
बहरहाल, अब सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर सीबीआई जाँच हो रही है। सीबीआई के लिए भी काम आसान नहीं है। कहा जा रहा है कि पिछले दस सालों में व्यापमं के जरिये हुए दाखिलों और सरकारी भर्तियों में व्यापक पैमाने पर गड़बड़ियाँ हुईं। लाभान्वितों में कौन नहीं है, नेता, पत्रकार, समाजसेवी, अफसर, पुलिस और पूरे के पूरे तन्त्र के हर हिस्से में जो भी जिस तरह फायदा उठा सकता था, उसने उठाया है। कौन कहाँ किससे मिला है, कौन कहाँ किसे बचा रहा है, कहा नहीं जा सकता! ऐसे में सच को उजागर कर पाना बहुत कठिन चुनौती है। सीबीआई को सबसे पहले अक्षय सिंह के मामले को हाथ में लेना ही चाहिए और जल्दी से जल्दी यह जाँच पूरी करनी चाहिए कि अक्षय की मौत कैसे हुई? उसका विसरा अमेरिका में एफबीआई की प्रयोगशाला में भेजा ही जाना चाहिए ताकि जाँच के निष्कर्षों को लेकर किसी प्रकार के सन्देह की गुंजाइश न हो। कुछ मित्र पहले ही यह माँग उठा चुके हैं।
हमें मालूम है कि भारतीय प्रयोगशालाओं के पास बहुत-से आधुनिकतम विषों की जाँच के साधन ही नहीं हैं। अगर अक्षय की मौत किसी ऐसे विष से हुई होगी तो भारतीय प्रयोगशालाएँ उसे पकड़ ही नहीं पायेंगी। सुनन्दा पुष्कर का मामला हमारे सामने है। इसलिए रत्ती भर भी सन्देह की कोई गुंजाइश न छोड़ी जाये, यह जाँच की विश्वसनीयता के लिए बहुत जरूरी है। अक्षय का मामला भी नम्रता की तरह ही है। अगर अक्षय के मामले में मौत का कारण दिल के दौरे के बजाय कुछ और निकला तो उन सारी मौतों के पीछे साजिश का शक पुख्ता हो जायेगा, जिन्हें ‘दिल के दौरे’ के कारण हुई मौत बताया जा रहा है। ठीक वैसे, जैसे नम्रता के मामले में यदि हत्या साबित हो जाये, तो उन सब मामलों पर सवाल उठेगा ही, जिन्हें अब तक ‘आत्महत्या’ कह कर दबा दिया गया। सीबीआई के लिए पहली चुनौती अक्षय का मामला ही है। देश की जनता को सीबीआई से बड़ी उम्मीदें हैं।
(देश मंथन, 10 जुलाई 2015)