मोदी जी, भाषण के आगे क्या है?

0
145

कमर वहीद नकवी, वरिष्ठ पत्रकार:

तो मोदी जी फिर तैयार हो रहे हैं। नहीं, नहीं, विदेश यात्रा के लिए नहीं! लाल किले से अपने दूसरे भाषण के लिए! क्या बोलना है, क्या कहना है? तैयारी हो रही है।

सब मंत्रालयों से पूछा गया है। किन योजनाएँ पर क्या काम हुआ है? इस साल किसके-किसके पास क्या नया आइडिया है। इस बार के भाषण में कैसी योजनाओं की घोषणा की जाये? मन्त्री गण तो खैर अपने-अपने आइडिया देंगे ही। कुछ आइडिया तो हमारे पास भी हैं। ऐसे आइडिया, जो उन्हें शायद कोई न दे! उनके मन्त्रीगण तो कतई नहीं दे सकते! देना भी चाहें, तो भी नहीं!

क्या होगा इस पन्द्रह अगस्त के भाषण में?

तेरह, चौदह और पन्द्रह! वह तेरह के लालन कॉलेज वाले पन्द्रह अगस्त का भाषण याद है आपको, जहाँ से मोदी ने लाल किले पर चढ़ाई की थी! और जब चौदह में वहाँ पहुँच गये, तो लाल किले के उनके पहले भाषण में वह सब मुद्दे लापता थे, जो लालन कालेज में चमकाये गये थे! न भ्रष्टाचार, न महँगाई, न काला धन, न सीमा पार की नापाक साजिशें, कुछ भी नहीं। तो इस बार का भाषण कैसा होगा? पिछले भाषण पर कोई बात होगी? जरूर होगी! मोदी बतायेंगे कि पिछले भाषण में जो-जो कहा था, उसमें कितना काम हो चुका है! प्रधान मन्त्री जन-धन योजना के तहत सत्रह करोड़ खातों में बीस हजार करोड़ रुपये से ज्यादा जमा हो चुके हैं, सांसद आदर्श ग्राम योजना के तहत छह सौ से ज्यादा गाँवों को अपनाया जा चुका है, योजना आयोग की जगह नीति आयोग बन गया है, मेक इन इंडिया, स्किल इंडिया और डिजिटल इंडिया कार्यक्रमों की घोषणा हो चुकी है, स्मार्ट सिटी की योजना तैयार है और ईंधन पर सब्सिडी में एक साल में 126 अरब रुपये की बचत की जा चुकी है। 

पुरानी टिप्पणी: लालन कॉलेज और लाल किले का फर्क 

Published 14 Jun 2014

तो सरकार ने इतना काम किया है। हाँ, काम तो किया है। इसमें शक नहीं। लेकिन इनमें से बहुत-सी चीजों का नतीजा जब दिखेगा या नहीं दिखेगा, तब ही उस पर बात हो सकती है। मिसाल के तौर पर यह अभी देखा जाना है कि जन धन योजना के खातों का बैंकों के स्वास्थ्य पर क्या असर पड़ेगा, जो पहले से ही ‘एनपीए’ और डूबे हुए कर्जों के भारी दबाव में हैं। सांसद आदर्श ग्राम योजना देखने में तो बेहद आकर्षक लगती है, लेकिन कई सांसदों को लगता है कि यह कई कारणों से व्यावहारिक नहीं है। बहरहाल यह योजना बस अभी ही शुरू हो पायी है। बाकी सारी योजनाओं का भी यही हाल है, जो बस हाल में ही शुरू हुई हैं। उनके नतीजों पर चर्चा के लिए तो हमें मोदी के अगले साल के भाषण तक इन्तजार करना ही पड़ेगा, लेकिन फिलहाल, इस साल के भाषण के लिए नरेन्द्र मोदी खम ठोक कर कह सकते हैं कि पिछले पन्द्रह अगस्त को जो कहा था, उसमें कुछ छूटा नहीं है। सब शुरू कर दिया है! वैसे यूपीए वालों का कहना है कि ज्यादातर योजनाएँ तो उनकी ही हैं, मोदी जी तो बस उनकी रि-ब्राँडिंग, रि-पैकेजिंग कर चकाचक मार्केटिंग कर रहे हैं! ठीक है, तो यूपीए को किसने रोका था मार्केटिंग करने से?

क्या राजनीतिक दलों को काले चन्दे पर भी बोलेंगे मोदी?

पिछले साल काले धन पर बात नहीं हुई थी, हो सकता है इस बार हो, क्योंकि सरकार विदेश में पड़े काले धन को उजागर करने की एक योजना ला ही चुकी है। लेकिन घरेलू काले धन पर रोक कैसे लगे? और राजनीतिक दल जिस काले चन्दे से चलते हैं, उसे बन्द करने के लिए भी सरकार कुछ करेगी क्या? मोदी इस पर बोलेंगे या चुप रहेंगे? और मोदी क्या अपने उस दावे पर भी बोलेंगे कि 2015 के अन्त तक संसद को अपराधियों से मुक्त कर देंगे! फ़िलहाल तो वह तीस्ता सीतलवाड के एनजीओ के चन्दे के हिसाब-किताब और अरविन्द केजरीवाल की पार्टी को ‘अपराधियों से मुक्त’ करने में लगे हैं! पिछली बार के भाषण में तो बड़ी ऊँची-ऊँची बातें कही थीं उन्होंने। तब तो कहीं लगा ही नहीं था कि मोदी ऐसी टुच्ची राजनीति भी करेंगे! फिर जाने क्या हुआ? अपना ही कहा भूल गये या पुरानी आदत की मजबूरी? और भ्रष्टाचार की चर्चा तो खैर इस बार नहीं ही होगी! क्यों? यह भी बताना पड़ेगा क्या! पिछली बार के भाषण से मैं तो बड़ा खुश हुआ था कि चलो, कम से कम नरेन्द्र मोदी ने तो देश का सारी समस्याओं की असली जड़ पकड़ ली और अपना आधा भाषण इसी पर रखा। कुछ याद आया आपको? नमो ने कहा था, अगर हर नागरिक एक-एक कदम उठाये तो सवा अरब कदम उठ जायेंगे! देश का हर नागरिक अपनी जिम्मेदारी निभाये, देश का हित देखे। डॉक्टर गर्भ का लिंग परीक्षण न करें, माँ-बाप अगर बेटों पर ध्यान दें तो उन्हें आतंकवादी और बलात्कारी बनने से बचाया जा सकता है, लोग गलियों, सड़कों पर गन्दगी न करें, तो देश साफ-सुथरा रहेगा, टूरिस्टों को यहाँ आना अच्छा लगेगा, वगैरह-वगैरह। देश की सारी समस्याओं की जड़ तो यही है कि लोग अपनी जिम्मेदारी को लेकर कतई ईमानदार नहीं हैं। और अगर यह जड़ सही हो गयी, तो देश ऐसे ही सोने की चिड़िया बन जायेगा। लेकिन सवाल यही है कि यह हो कैसे? अब स्वच्छ भारत अभियान को ही ले लीजिए। बड़े तामझाम से शुरू हुआ। नयी-नयी झाड़ुओं के साथ खूब फोटो खिंचे। सौ करोड़ रुपये विज्ञापनों पर फुँक गये। लेकिन हुआ क्या? न कचरा कम हुआ, न कचरा डालने वाले सुधरे। बाकी जगहों की तो छोड़ दीजिए, जहाँ-जहाँ बीजेपी की सरकारें हैं या नगरपालिकाएँ हैं, वहाँ भी कोई ऐसी कोशिश नहीं हुई कि शहर की हालत बदले!

बड़ी बातें ही क्यों पड़ी रह गयीं?

बीजेपी वालों ने ही अपने प्रधान मन्त्री की बातों पर रत्ती भर भी अमल नहीं किया! और न ही मोदी को ही फुर्सत रही कि कम से कम वह जनता को इस हद तक प्रेरित कर देते कि स्वच्छ भारत अभियान देश का राष्ट्रीय अभियान बन जाता और देश का एक-एक नागरिक इसमें शामिल हो गया होता। सिर्फ विज्ञापन देने, भाषण करने और फोटो खिंचा लेने से तो यह होगा नहीं। मोदी ने साम्प्रदायिकता और जातिवाद जैसी बुराइयों पर दस साल के लिए रोक की अपील भी सबसे की थी, लेकिन परिवार के लोग पूरे साल जहर उगलते रहे। मतलब? क्या वह भाषण बस भाषण के लिए था? 

पुरानी टिप्पणी: भाषण बस भाषण के लिए!

Published 21 Feb 2015

नरेन्द्र मोदी को इस साल के भाषण के लिए बस मेरे पास एक ही आइडिया है। अगर आप सवा अरब कदम उठवा सकें और इसी एकसूत्रीय कार्यक्रम पर पूरा जोर लगा दें तो अपने आप देश का कायाकल्प हो जायेगा। लेकिन यह काम सिर्फ भाषण और विज्ञापन से नहीं होगा, ईमानदारी से होगा। पहले खुद आप उस पर अमल करें, फिर आपकी पार्टी उस पर चले, परिवार चले, तो देश अपने आप चल पड़ेगा। जरूरी है कि सड़क का कचरा भी साफ हो और मन भी! बदले के बजाय बदलाव की राह पर चलें। दूसरे तो तभी बदलेंगे, जब आप भी कुछ बदलें, क्योंकि आप देश के प्रधान मन्त्री हैं, नेता हैं। माना कि सिद्धाँत रूप से इफ्तार पार्टियों का चोंचला आपको पसन्द न हो, मुझे भी कतई पसन्द नहीं है। आप खुद इफ्तार पार्टी न दें। बिलकुल ठीक। लेकिन राष्ट्रपति की इफ्तार पार्टी हो तो कम से कम प्रोटोकॉल का ही सम्मान रख लेते! बहरहाल मर्जी आपकी! लेकिन क्या आपके दिखाये इसी रास्ते पर देश को चलना चाहिए? 

(देश मंथन, 18 जुलाई 2015)

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें