आत्मचिंतन का समय आ गया है जनाब धोनी

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पद्मपति शर्मा, वरिष्ठ खेल पत्रकार :

आत्मचिंतन का समय आ गया है जनाब महेंद्र सिंह धोनी। आँख बंद कर सोचिए कि क्या शरीर में वह पोटाश बची हुई है? क्या बल्लेबाजी की देसी शैली अपनी औकात पर नहीं आ चुकी है? क्या सहवाग की मानिंद आपकी आँख और पाँव का संयोजन गड़बड़ा नहीं गया? क्या शरीर के करीब फेंकी गयी शार्ट गेंदों के सम्मुख आपकी कमजोरी जगजाहिर नहीं हो चुकी है ? 

धोनी सर, यह वे सवाल हैं जिन्हें आपको स्वयँ से ही पूछना है और यदि जवाब हाँ में मिले तो समझ लीजिए कि बल्ला और दस्ताने खूंटी पर टाँगने का समय आ गया है और जवाब यदि नहीं में मिले तो अपनो से पूछ कर देखिए, आपको जवाब मिल जाएगा। 

कल मैने एक एक गेंद देखी और इस निष्कर्ष पर पहुँचा कि दो साल पहले चैंपियंस ट्राफी जीतने के पश्चात वेस्टइंडीज में त्रिकोणीय फाइनल के दौरान श्रीलंका के खिलाफ आपने आखिरी ओवर में दो छक्के उड़ाते हुए दुनिया के सर्वकालिक महानतम फिनिशर्स में एक की अपनी ख्याति के साथ अंतिम बार न्याय किया था। उसके बाद से आप मायूस ही करते रहे हैं। 

ऐसा नहीं कि आपमें जिजीविषा नहीं है। वह तो बरकरार है और जब आप सिंगल्स लेते हैं या एक को दो रन में बदलते हैं तब आपकी सीना आगे फेंकते हुए चीते सरीखी दौड़ उसकी बेहतरीन सनद है भी मगर डेथ ओवरों में काम चौके या छक्कों से ही बनता है टारगेट चेज करते समय। परंतु वहाँ आपका बल्ला और शरीर दोनों ही साथ नहीं दे रहे। कानपुर वाले मैच की ही यदि हम बात करें तो बताइए कि डेल स्टेन पर एक जोखिम भरी रीवर्स स्वीप के अलावा आपने कितने चौके लगाए थे ? 

कानपुर में नये प्रजन्म के खेल पत्रकारों में इसी बात को लेकर किचकिच हो रही है कि मैच के पहले धोनी और विराट कोहली के बीच गर्मागर्मी हुई थी? हँसी आ रही है यह देख सुन कर। यह भी बहुत बड़ी बात थी क्या? आप देखिए कि पूर्व संध्या पर कप्तान साफ-साफ कह रहा है कि रहाणे नहीं खेलेंगे। लेकिन मैच की सुबह रहाणे का नाम एकादश में था ही नहीं इस मुंबईकर ने धीमे विकेट पर धोनी के दावे को भोथरा करते हुए साठ रनों की जबरदस्त पारी भी खेली और यही कारण था कि भारत एक विकेट पर ही 192 का स्कोर उकेर चुका था। 

दरअसल रहाणे का खेलना टीम चयन समिति ने तय किया, जिसमें कप्तान, नायब, कोच और एक सीनियर खिलाड़ी होता है। माही इस वास्तविकता को तो समझ ही चुके हैं अच्छी तरह से कि श्रीनिवासन युग का अवसान हो चुका है। टीम में भी अब वह अलग थलग पड़ चुके हैं। जाहिर है कि उन्हें दबना पड़ा और रायडू जगह नहीं बना सके। 

कोई पूछे उनसे कि रहाणे जैसे देश के श्रेष्ठतम बल्लेबाज के चयन पर तो आप तर्क के साथ सवाल खड़े करते हैं पर कभी यह स्पष्टीकरण भी सार्वजनिक रूप से दिया कि स्टुअर्ट बिन्नी में आखिर कौन सी ऐसी विशेषता है कि उन्हें टीम और एकादश में चुना जाता है? यही न कि स्टुअर्ट चयनकर्ता रोजर बिन्नी के सुपुत्र हैं। बेशर्मी की भी हद होती है। 

दो राय नहीं कि कागज पर आप देश के सफलतम कप्तान हैं और यह टैग आपसे कोई नहीं छीन सकता। लेकिन यह भी आपको मानना होगा कि काल चक्र अब आपके लिए नहीं घूम रहा। आप स्वेच्छया यदि खेल से हट जाते हैं तो यह आपकी गरिमापूर्ण विदाई होगी और आप इसके हकदार हैं भी। क्रिकेट प्रेमियों की यादों में आपका 2011 विश्वकप फाइनल में वह विजयदायी हेलीकाप्टर छक्का अनंत काल तक बना रहेगा। लेकिन यदि अड़े रहे तो – ‘बड़े बेआबरू होकर तेरे कूचे से हम निकले’ वाली मिसाल सामने आ सकती है। ऐसा मैंने न जाने कितनी बार पूर्व कप्तानों के साथ होते देखा है। उसमें आप अपना नाम तो मत जोड़िए।

 (देश मंथन, 14 अक्तूबर 2015)

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