डारया की मनुष्यता बनारस का दिल जीत ले गयी

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प्रेम प्रकाश :

डारया यूरिएवा प्रोकीना…! यही नाम है उस रूसी लड़की का जो पिछले छह महीने से भारत भ्रमण पर थी। बनारस मे उसकी दोस्ती सिद्धार्थ श्रीवास्तव से हुई और वह उसी के साथ बनारस घूमने लगी। नजदीकियाँ बढ़ीं। दोनों की दोस्ती प्रगाढ़ होने लगी और इतनी प्रगाढ़ हो गयी कि डारया ठहरने के लिए होटल छोड़ कर सिद्धार्थ के घर चली आयी। इस बीच वे साथ-साथ घूमते रहे और नजदीक आते गये।

एक दिन सिद्धार्थ लड़की से शादी करने की माँग कर बैठा। कहानी मे ट्विस्ट इसके बाद आया। लड़की ने दोस्ती की हद तक सब कबूल किया, लेकिन शादी के लिए इंकार कर बैठी। उसको पता नही चल पाया होगा इसलिए वो तो निश्चिंत थी, लेकिन इधर सिद्धार्थ आहत हो गया। उसने अंतिम कोशिश भी कर ली और उसने अंतिम बार इंकार भी कर दिया। घायल सिद्धार्थ ने अब दोस्त के पीछे जाल बुनने शुरू कर दिये….और एक दिन मौका पा कर उन्होंने वह कर डाला, जिसके बाद बनारस भी, भारत भी और हम सब शर्मसार होकर रह गये। परसो की रात जब डारया उसी के घर मे निश्चिंत मन गहरी नींद में सो रही थी, तभी सिद्धार्थ श्रीवास्तव ने उसके पूरे चेहरे पर एसिड की बोतल उडेल दी।

कल का पूरा दिन बनारस मे प्रशासनिक और राजनयिक हड़कंप का था। डीएम वाराणसी के नेतृत्व मे पूरे अमले ने मामले को पूरी फुर्ती से टैकल किया। सिद्धार्थ की तत्काल गिरफ्तारी हुई और अंतर्राष्ट्रीय राजनय को चोट पहुँचाने के अपराध में जरूरी तमाम वाद दर्ज कर लिए गये। उसके बाद शुरू हुई इस वहशत भरी अमानवीयता के सामने एक भावना भरी विशुद्ध मानवीयता की कहानी। कल शाम डारया जब होश मे आयी तो सबसे पहले अपनी माँ से फोन पर बात किया, अपने पिता का हालचाल पूछा। फोन रखने के बाद जैसे उसे अचानक याद आया हो। छह महीने उसका हम कदम रहा उसका दोस्त नजर नहीं आ रहा था। उसने इधर-उधर देखना, खोजना और पूछना चालू किया। सिद्धार्थ के माँ-बाप ने ही पुलिस को पहली सूचना दी थी। वह उसके सामने ही थे। उसने उन्ही से पूछा- सिद्धार्थ कहाँ है…? कातर माँ-बाप ने नजरें चुरानी शुरू कर दी। पुलिस अफसर ने उसे बताया कि वह जेल में है और उसपर रासुका के मुकदमे फाइल हो चुके हैं। डारया अब जा के रो पड़ी। उसने अफसरों से मिन्नतें करनी शुरू कर दी–नहीं नहीं…सिद्धार्थ अच्छा दोस्त है मेरा। मुझे जानना है कि वो कैसा है। दरिंदगी के बाद कैसा महसूस कर रहा है मेरा दोस्त। एक छोटी सी घटना हमारी दोस्ती थोड़े तोड़ देगी। इस हादसे के चलते मैं अपना दोस्त खोना नही चाहूँगी। उसे समझा बुझा के और माफ करके जीवन की मुख्य धारा मे लाना है। मुझे उससे रिश्ता तोड़ के नहीं जाना है। यह बातें वो किसी उत्तेजना या भावुकता मे नहीं कह रही थी, बल्कि बेहद संयमित होकर बोल रही थी। उसके जिस्म के घाव भी बहुत गहरे हैं।

अस्पताल के उसके कक्ष मे इस माहौल ने आँखों की बाढ़ तोड़ दी। अफसरों की आँखें भी भींग गईं। थानाध्यक्ष लंका, जो इस मामले की तफतीश कर रहे हैं, रुँधे गले से कह रहे थे इतने बड़े हादसे के बाद भी इस लड़की के संयम, उसकी समझ और उसके विवेक को सलाम करने का मन करता है। हालाँकि पुलिस ने उसकी एक बात नहीं सुनी और कल शाम ही उसको बेहतर इलाज के लिए एयर एंबुलेंस से दिल्ली पहुँचा दिया गया। लेकिन जाते-जाते ये लड़की बनारस की सामाजिक फिजाँ मे एक नया वातास घोल गयी है। सुना है जेल में सिर मारता सिद्धार्थ अपने किये पर शर्मिंदा महसूस कर रहा है। कोई जाकर डारया से बता दो कि उसकी मनुष्यता बनारस का दिल जीत ले गयी है। आज हर गली, हर चौराहे, हर नुक्कड़ पर बस डारया के ही चर्चे हैं। तुम तो हमें माफ करके गयी डारया। माफ हम ही नहीं कर पा रहे हैं खुद को। तुम्हारे जज्बात को एक सलाम मेरा भी विदेशी लड़की….!

(देश मंथन, 16 नवंबर 2015)

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