पढ़ें आमिर का पूरा मूल बयान, जिस पर छिड़ा बवाल

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आमिर खान ने 23 नवंबर 2015 को पत्रकारिता के क्षेत्र में उत्कृष्टता के लिए रामनाथ गोयनका पुरस्कारों के वितरण समारोह में देश में बढ़ती असहिष्णुता पर टिप्पणी की, जिस पर काफी हंगामा मचा। यह हंगामा खास कर आमिर खान के यह कहने पर छिड़ा कि उनकी पत्नी ने देश छोड़ने की बात कह दी थी।

हालाँकि बाद में आमिर खान ने एक बयान जारी कर यह स्पष्टीकरण भी दिया है कि वे और उनकी पत्नी देश छोड़ने के बारे में बिल्कुल नहीं सोच रहे। मगर इससे आमिर खान की मूल टिप्पणी पर बहस शांत नहीं हो पायी है और लोग अब भी उस अपने-अपने हिसाब से टीका-टिप्पणी कर रहे हैं कि आमिर खान के कहने का मतलब क्या था। इसलिए प्रस्तुत है उस मूल टिप्पणी का पूरा शब्दशः आलेख :

“रचनात्मक लोगों का विरोध इस कारण है कि वे बढ़ती असहजता महसूस कर रहे हैं, बढ़ती असहिष्णुता का माहौल देख रहे हैं, वे असुरक्षा और निराशा महसूस कर रहे हैं। इसलिए यह (पुरस्कार वापसी) यह जताने का तरीका था कि वे स्थिति से खुश नहीं हैं। एक व्यक्ति के रूप में स्वयं मैं, इस देश के एक नागरिक के रूप में, हम अखबारों में पढ़ते हैं कि क्या हो रहा है, समाचारों में देखते हैं, और निश्चित रूप से हम भयभीत हैं। मैं इन्कार नहीं कर सकता कि मैं बहुत सारी घटनाओं से भयभीत हुआ हूँ। किसी भी समाज के लिए सुरक्षा का एहसास बहुत जरूरी है। 

“हिंसा की घटनाएँ दुनिया में कहीं भी हो सकती हैं, जिसके अलग-अलग कारण हो सकते हैं। लेकिन हम लोगों के लिए एक समाज के रूप में, भारतीय के रूप में सुरक्षा का एहसास करने के लिए दो-तीन चीजें बहुत जरूरी हैं। यह मेरा व्यक्तिगत मानना है। पहली चीज है न्याय का एहसास। अगर कोई गलत करता है तो उस व्यक्ति के पक्ष या विरोध में सही न्याय दिया जाये। इससे एक आम आदमी को सुरक्षा का एहसास मिलता है। सामान्य व्यक्ति महसूस करता है कि अगर कोई गलत करेगा तो न्याय अपने उचित तरीके से काम करेगा। 

“दूसरी बात जो सुरक्षा का एहसास कराती है, और जो काफी महत्वपूर्ण है, कि जो लोग चुने हुए जन-प्रतिनिधि हैं, जिन हम पाँच साल के लिए चुनते हैं, चाहे राज्य के स्तर पर हो या केंद्र के स्तर पर, जब लोग खुद कानून को अपने हाथ में लेते हैं, तो हम इन प्रतिनिधियों की ओर देखते हैं कि वे इस पर सख्त रुख अपनायेंगे, कड़े बयान देंगे, कानूनी प्रक्रिया को तेज करेंगे जिससे ऐसे मामलों में तेज कार्रवाई हो। जब ऐसा होता हुआ दिखता है तो सुरक्षा का एहसास बनता है। जब ऐसा होता हुआ नहीं दिखता है, तो असुरक्षा का एहसास होता है। 

“इससे फर्क नहीं पड़ता है कि शासन में कौन सा दल है। ऐसा अलग-अलग दौर में हुआ है, अलग-अलग दशकों में, अलग-अलग समय में हुआ है। कौन सत्ता में है, इससे फर्क नहीं पड़ता है। लेकिन बात यह है कि, और अक्सर मैं टेलीविजन पर बहसों में देखता हूँ, जैसे इस मामले में भाजपा शासन में है और विभिन्न आरोपों के घेरे में आने पर पूछा जाता है कि 1984 में क्या हुआ था? लेकिन उस बात से आज होने वाली चीज सही नहीं हो जाती है। जो 1984 में हुआ, वह अनर्थकारी था, वह भयानक था, अलग-अलग समय पर भी जब कभी कोई हिंसक घटना हुई हो जिसमें किसी निर्दोष को मार दिया गया हो, चाहे बस एक व्यक्ति को या बहुत सारे लोगों को, वह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है। ऐसे मौकों पर हम अपने नेताओं की ओर देखते हैं कि वे कड़े कदम उठायें, चाहे वे राज्य के स्तर पर हों या केंद्र के स्तर पर। वे ऐसे बयान दें जो हमें इस देश के एक नागरिक के रूप में भरोसा दिलायें, हम यही चाहते हैं। 

“अपने जवाब को मैं पूरा कर लूँ। क्या मैं इस बात से सहमत हूँ कि असुरक्षा और डर का एहसास बन गया है? पिछले छह-आठ महीनों में मैं कहूँगा कि अवसाद का एहसास बढ़ा है। जब मैं किरण से बात करता हूँ, किरण और मैंने जिंदगी भारत में बितायी है, पहली बार किरण ने कहा कि क्या हमें भारत से बाहर बस जाना चाहिए? यह बहुत अनर्थकारी और बहुत बड़ा बयान है जो किरण ने मुझसे कहा। वह अपने बच्चे के लिए डरती है। वह हमारे आसपास के माहौल को लेकर डरती है, वह हर रोज अखबार खोलते हुए डरती है। 

“यह बताता है कि चिंता बढ़ी है। अवसाद का एहसास बढ़ा है, भय के अलावा। एक हिस्सा है भय का, दूसरा हिस्सा है कि आप उदास महसूस करते हैं, आप उत्साहहीन महसूस करते हैं, श्श्श्श्श, कि ऐसा क्यों हो रहा है। ईमानदारी से कहूँ तो उस तरह का एहसास मेरे अंदर जरूर है।”

(देश मंथन, 26 नवंबर 2015)

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