तुगलकी फरमान, जनता परेशान

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संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :

आदरणीय अरविंद केजरीवाल जी,

नया साल मंगलमय हो।

मैं संजय सिन्हा, दिल्ली का एक आम नागरिक, आज खुद को बहुत लाचार और त्रस्त महसूस कर रहा हूँ। 

मैं पत्रकार हूँ और रोज सुबह फेसबुक पर एक पोस्ट लिखना मेरा शौक है। मैं आम तौर पर रिश्तों की कहानियाँ लिखता हूँ। मैं स्वभाव से खुश और अपनी जिन्दगी से संतुष्ट व्यक्ति हूँ। मैं दफ्तर में राजनीति की खबरें लिखता हूँ, लेकिन कभी निजी जिन्दगी में राजनीति की बातें नहीं करता। मुझे राजनीति पसंद ही नहीं है। 

मैं आपको बताना चाहता हूँ कि बहुत दिनों के बाद कल ऐसा हुआ है जब मैं सारी रात बिस्तर पर लेटा रहा और एक पल के लिए भी सो नहीं पाया। 

मैं सारी रात बहुत परेशान रहा। 

मेरी परेशानी की वजह आपका तुगलकी फरमान है। आपने पता नहीं कौन सी रिपोर्ट देख कर यह फैसला कर लिया कि अब दिल्ली में अलग-अलग दिन सम-विषम नंबर की गाड़ियाँ चलेंगी। आप दिल्ली के मुख्यमंत्री हैं, आप जो चाहेंगे, कर लेंगे। पर मुझे लगता है कि आपको ऐसा नहीं करना चाहिए था। 

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आज बहुत से लोगों की छुट्टी होगी, लेकिन मेरी नहीं है। आज मुझे दफ्तर जाना है, मेरी पत्नी को भी जाना है। हम दोनों प्राइवेट नौकरी में हैं। 

हम दोनों के दफ्तर अलग-अलग जगहों पर हैं। आम तौर पर मैं अपनी पत्नी को सुबह दफ्तर छोड़ता हुआ अपने ऑफिस चला जाता हूँ। लेकिन आज हम ऐसा नहीं कर पाएँगे। आज हमें दो टैक्सियों में चलना पड़ेगा, क्योंकि मेरे पास सम नंबर की गाड़ी है। आज का दिन विषम है। 

मैं सारी रात सोचता रहा कि आज हम दफ्तर कैसे जाएँगे, घर वापस कैसे आएँगे?

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मैं दिल्ली में जहाँ रहता हूँ, वहाँ से मेट्रो स्टेशन कम से कम पाँच किलोमीटर दूर है। जहाँ मैं काम करता हूँ, वहाँ से भी मेट्रो तीन किलोमीटर की दूरी पर है। मेरी पत्नी का जहाँ दफ्तर है, वहाँ तो मेट्रो पहुँचाने की बात अभी कागजों तक ही है।

मैं जहाँ रहता हूँ, वहाँ से बसों के चलने का कोई समय नहीं। सच कहूँ तो मैं पिछले 25 साल से दिल्ली में हूँ, लेकिन बस में नहीं चल पाया। बहुत साल पहले जिन दिनों रेड लाइन बस हुआ करती थी, मेरा एक दोस्त उन बसों की होड़ में कुचल कर मर गया था। हादसा मेरी आँखों के सामने हुआ था, तब से मैं बसों से बहुत डरता हूँ। तब मैं जनसत्ता में काम करता था और मेरा दोस्त इंडियन एक्सप्रेस में था। मेरे दोस्त का नाम शेखर झा था और वो बिहार में लालू यादव के मुख्यमंत्री काल में तंग होकर दिल्ली चला आया था। पर यहाँ एक दिन लाल बसों की होड़ ने उसकी जान आईटीओ के पास ले ली थी। 

उसके बाद एक दिन मैं अपनी पत्नी के साथ डीटीसी की बस में चढ़ने की कोशिश कर रहा था कि बस अचानक चल पड़ी और मैं गिर पड़ा। मेरे घुटने में बहुत चोट आई थी। उस दिन मैंने तय किया कि मैं अब कभी बस में नहीं चलूँगा। और हम पति-पत्नी ने बहुत मेहनत करके एक सेकेंड हैंड कार खरीदी। हमारे पास बहुत पैसे नहीं थे, लेकिन हमने अपने तमाम शौक खत्म कर दफ्तर जाने के लिए ये साधन चुना। 

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बाद में मेरा और मेरी पत्नी का दफ्तर बदल गया। पर हम एक कार से अपना काम चला रहे थे। 

फिर मेट्रो रेल शुरू हुई। मेरा दफ्तर उन दिनों करोलबाग के पास वीडियोकोन टावर में शिफ्ट हो गया। इत्तेफाक से वहाँ तक मेट्रो की सेवा शुरू हो गयी थी। मेरा यकीन कीजिए मैंने बहुत बार कोशिश की कि मैं मेट्रो से दफ्तर जाऊँ। ऐसे में मेरी पत्नी हमारे घर के पास वाले मेट्रो स्टेशन, जो पाँच किलोमीटर दूर है, मुझे छोड़ देती और मैं मेट्रो से दफ्तर चला जाता। रात में जब मैं लौटता, तो वो मेट्रो स्टेशन पर मेरा इंतजार करती। 

पर एक दिन राजीव चौक पर किसी ने मेरा पर्स ही उड़ा दिया। 

मेरा लाइसेंस, मेरे सारे क्रेडिट कार्ड और ढेर सारी चीजें गायब हो गयीं। मैंने पुलिस के बहुत चक्कर काटे। पर कुछ नहीं हुआ। 

फिर मैंने मेट्रो से दफ्तर जाना छोड़ दिया। हालाँकि जब कभी मौका मिलता है, मैं मेट्रो में चल लेता हूँ, पर आज मेरे दफ्तर जाने का स्कोप नजर नहीं आ रहा। 

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मैंने कई बार ऑटो में चलने की भी कोशिश की है। लेकिन दिल्ली में ऑटो पर चलना जंग जीतने से कम बड़ा काम नहीं है। 

परसों ही मेरी पत्नी ने ऑटो वाले से पूछा कि भैया, अक्षर धाम मेट्रो स्टेशन चलोगे, तो उसने कहा कि हाँ, डेढ़ सौ रुपये लगेंगे। अब बताइए कि पाँच किलोमीटर के लिए डेढ़ सौ रुपये कौन देगा? उसने उसे धमकाने की कोशिश की कि पुलिस में शिकायत कर दूँगी, तो ऑटो वाला अपना फोन निकाल कर उसे देने लगा कि लीजिए कर लीजिए। उसने उल्टा धमकाया कि दिल्ली में केजरीवाल की सरकार उनकी बदौलत बनी है। कोई उनका कुछ नहीं बिगाड़ सकता।

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आदरणीय केजरीवाल जी, आप हमारी मुश्किल को समझें। 

मैं मानता हूँ कि दिल्ली में प्रदूषण बहुत बढ़ गया है। सुना है आप खुद आईआईटी में पढ़े हैं। सोचिए कि क्या सचमुच दिल्ली की सबसे बड़ी समस्या यही है? वैसे आप जानते हैं कि-

1. दिल्ली में प्रदूषण की सबसे बड़ी वजह राजस्थान से आने वाली हवाएँ हैं। उसे आप रोक नहीं सकते।

2. दिल्ली के आसपास के राज्यों में किसान जो भूसा जलाते हैं, उससे भी प्रदूषण होता है। उसे रोकने पर किसानों का वोट कटने का खतरा है।

3. दिल्ली में जो पावर प्लाँट है, उससे भी प्रदूषण होता है। इसे बंद करना फिलहाल नामुमकिन है।

4. यहाँ ट्रकों और ऑटो से प्रदूषण फैलता है। आप इन्हें रोकना चाहेंगे, तो आपको वोट का नुकसान होगा।

5. यहाँ पेट्रोल पंप पर बिकने वाले डीजल में मिट्टी तेल की मिलावट होती है। पर आप उन्हें कैसे रोकेंगे? प्रदूषण की बहुत बड़ी वजह ये मिलावट भी है। 

6. आप हर गाड़ी से फिटनेस प्रमाण प्रत्र लेते हैं। इसका मतलब कि जिनके पास ये प्रमाण पत्र होता है, उनकी गाड़ियों से प्रदूषण नहीं होता, फिर आप क्यों उन गाड़ियों को सड़क पर चलने से रोक रहे हैं? 

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खैर, आज मैं ज्यादा लंबी कहानी नहीं सुनाना चाहता। सारी रात नहीं सो पाया हूँ, इसलिए सिर में दर्द हो रहा है। 

पर आपसे कहना चाहता हूँ कि मैंने जो कुछ लिखा है, उसका एक-एक अक्षर सत्य है। आप चाहें तो अपने साथी Manish Sisodia जी से मेरे बारे में पूछ लें। वो मेरे साथ जी न्यूज़ में काम करते थे। जिन दिनों मैं रिपोर्टिंग करता था, वो डेस्क पर थे और बिजली की बदहाली के खिलाफ आंदोलन उन्होंने मेरे सामने ही शुरू किया था। वो सरकार से परेशान थे। सरकारी फैसलों और भ्रष्टाचार से परेशान थे। मैंने उनसे पूछा था कि आप कभी राजनीति में तो नहीं आएँगे न! उन्होंने कहा था कि नहीं, राजनीति नहीं करनी।

पर जब बात नहीं बनी, सरकार नहीं सुधरी, तो उन्होंने राजनीति में कदम रख दिया। 

आप भी ऐसा कुछ मत कीजिए कि किसी शांत, खुश मिजाज आदमी को राजनीति में घुसने का मन बनाना पड़ जाए। 

आप लोगों से कहते थे कि तुम बिजली का बिल मत दो। तुम कटे मीटर के कनेक्शन को खुद जोड़ लो। सरकार से मत डरो। मान लीजिए हम आपसे डरना छोड़ दें, अपनी कार लेकर आज दफ्तर के लिए निकल पड़ें, तो आपको कैसा लगेगा?

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दूसरों के साथ वैसा व्यवहार नहीं करना चाहिए, जो खुद के लिए पसंद न हो।

और आखिरी बात, बहुत साल पहले किसी पत्रिका में पढ़ा था कि कानून उतने ही बनाने चाहिए जिनका पालन हो सके। ज्यादा कानून बनते हैं, तो उनके टूटने का खतरा बढ़ता है। 

बाकी तो आप समझदार हैं। 

आप वैकल्पिक व्यवस्था पहले पूरी कीजिए, फिर इस तरह की मुहिम चलाएँ। आप साइकिल ट्रैक बनवा दीजिए, मैं दिल्ली में कार से चलना छोड़ दूँगा।

आपका 

संजय सिन्हा

(दिल्ली का एक आम आदमी)

(देश मंथन, 01 जनवरी 2015)

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