कांग्रेस की सांप्रदायिक और देशद्रोही राजनीति का रिजल्ट है एनआईटी की घटना

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अभिरंजन कुमार, पत्रकार :

हैदराबाद विश्वविद्यालय में रोहित वेमुला और उसके साथियों ने मुम्बई धमाकों के गुनहगार याकूब मेमन के समर्थन में कार्यक्रम किये, लेकिन कांग्रेस और कम्युनिस्टों ने पूरे मामले को जातीय रंग दे कर उन लोगों को हीरो बना दिया।

जेएनयू में उमर खालिद और कन्हैया वगैरह ने अपने लिए कोई ठोस सबूत न छोड़ने की सावधानी बरतते हुए पार्लियामेंट हमले के गुनहगार अफजल गुरु के समर्थन में कार्यक्रम कराये और देश-द्रोही नारे लगवाये, लेकिन कांग्रेस और कम्युनिस्टों ने इसे छात्रों की आवाज बताकर उन लोगों को भी हीरो बना दिया।

श्रीनगर एनआईटी में कुछ छात्रों ने भारत की हार पर जश्न मनाया, लेकिन उनका बाल भी बांका न हुआ और जिन छात्रों ने तिरंगा लेकर भारत माता की जय के नारे लगाए, उनकी निर्मम पिटाई कर दी गयी, लेकिन कांग्रेस और कम्युनिस्टो को जैसे कोई फर्क ही नहीं पड़ा।

यानी इस देश में देशद्रोहियों को आप टच नहीं कर सकते। टच करेंगे तो कांग्रेसी और कम्युनिस्ट आसमान सिर पर उठा लेंगे। लेकिन देश से प्यार करने वालों को चाहे लाठियों से पीट दें या गोलियों से छलनी कर दें, उनका एक रोआँ तक नहीं सिहरता। इनमें भी कांग्रेस ने तो आजकल निर्लज्जता की सारी हदें पार कर दी हैं।

मुझे लगता है, अगर कांग्रेस को आज भरोसा हो जाए कि देश के दो टुकड़े होने पर एक टुकड़े की सत्ता उसे मिल जाएगी, तो वह देश के दो टुकड़े करा देगी। इतना ही नहीं, मुझे यहाँ तक लगता है कि अगर उसे भरोसा हो जाए कि हाफिज सईद को भारत बुलाकर उसे अपना नेता घोषित कर देने से वह फिर से सत्ता में आ जाएगी, तो वह ऐसा भी कर सकती है। आखिर याकूबों-अफजलों के समर्थकों और देश-द्रोहियों को तो उसने अपना हीरो मान ही लिया है न!

दरअसल आजादी के बाद से ही कांग्रेस में देश-प्रेम की भावना धीरे-धीरे कम हो रही थी। गाँधी की कांग्रेस से कम देश-प्रेम नेहरू की कांग्रेस में था, क्योंकि सबको पता है कि देश का विभाजन गाँधी के लिए जितना बड़ा सदमा था, नेहरू के लिए नहीं था। उन्हें कुर्सी जो मिल रही थी।

इसी तरह नेहरू की कांग्रेस से कम देश-प्रेम इंदिरा की कांग्रेस में था। इंदिरा के लोग उन्हें ही इंडिया समझने लगे थे। जब कुर्सी खतरे में पड़ी तो इंदिरा ने उस लोकतंत्र की हत्या करने में भी सकपकाहट नहीं दिखायी, जो हमारे देश की बुनियाद है।

इंदिरा की कांग्रेस से भी कम देश-प्रेम राजीव की कांग्रेस में बचा था। राजीव ने यह साबित भी किया कि उनका परिवार ही इंडिया है। एक इंदिरा गाँधी की हत्या क्या हुई, उनके नेतृत्व में कांग्रेस ने पूरे देश की साँसें रोक दी और हजारों सिखों को मार डाला। किसी गुनहगार को सजा तक न दिलायी, उल्टे उन्हें अधिकाधिक पुरस्कृत किया।

इसी तरह, राजीव की कांग्रेस से भी कम देश-प्रेम सोनिया की कांग्रेस में बचा था। उन्होंने इटली के क्वात्रोकी में जितनी निष्ठा दिखायी, उतनी भी निष्ठा अपने देश के लोगों के लिए नहीं दिखायी, वरना देश के धन और संसाधन की विशालकाय लूटों को अपना संरक्षण न दिया होता। उन्हें तो यहाँ की नागरिकता लेने का मन बनाने में भी सालों-साल लग गये।

अब जो थोड़ी-बहुत देश-प्रेम की भावना कांग्रेस में बची होगी, वह भी राहुल गाँधी की कांग्रेस में समाप्त हो गयी है। अब तो देश-द्रोह ही इस पार्टी की मुख्य राजनीति बन गयी लगती है। हैदराबाद और जेएनयू में अपनी घिनौनी राजनीति से कांग्रेस और राहुल गाँधी ने इसमें जरा भी शक नहीं रहने दिया है।

आप कश्मीर में एनआईटी की घटना के लिए चाहे जम्मू कश्मीर पुलिस को कोसें, महबूबा मुफ्ती की राज्य सरकार को कोसें या बीजेपी की केंद्र सरकार को कोसें, सचाई यह है कि वहाँ के देशद्रोही छात्रों को हौसला ही मिला है हैदराबाद और जेएनयू के देशद्रोही छात्रों को कांग्रेसियों और वामपंथियों द्वारा मिले अप्रत्याशित निर्लज्ज समर्थन से।

जरा कुछ और तथ्यों को याद करते चलें

1. कांग्रेस ने बाटला हाउस एनकाउंटर में मारे गये आतंकियों के लिए आँसू बहाया, लेकिन दिल्ली पुलिस के बहादुर अफसर मोहन लाल शर्मा की शहादत पर उसका दिल न पिघला।

2. कांग्रेस ने लश्कर आतंकी इशरत जहाँ को देश की बेटी साबित करने के लिए जाँच और तथ्यों से वैसी छेड़छाड़ की, जो निश्चित रूप से देश-द्रोह के दायरे में ही आनी चाहिए।

3. कांग्रेस के कुछ बड़े नेताओं ने मुम्बई हमलों को आरएसएस का काम बताने और इस तरह पाकिस्तान और आतंकवादियों को क्लीन चिट देने की घिनौनी साजिश रची।

4. कांग्रेस के नेता देश के दुश्मन पाकिस्तान जा कर गुहार लगाते हैं कि मोदी सरकार को किसी तरह गिरा दो।

5. कांग्रेस के नेता दुनिया के सबसे खतरनाक आतंकी संगठन आईएसएस की आरएसएस से तुलना करके उसे स्वीकार्यता दिलाने और भारत में अपना रिक्रूटमेंट प्रॉसेस तेज करने में परोक्ष मदद करते हैं।

6. कांग्रेस के नेता आतंकी ओसामा बिन लादेन को “ओसामा जी” और हाफिज सईद को “हाफिज सईद साहब” कहते हैं।

7. हैदराबाद और जेएनयू में देश-द्रोहियों का समर्थन तो उसकी देश-द्रोही आतंकी-परस्त राजनीति का नया-नया चैप्टर है, बस!

जाहिर सी बात है कि अगर देश-द्रोहियों और आतंकियों को देश की मुख्य-धारा पार्टी से ऐसा जबरदस्त समर्थन मिलेगा, तो उसके हौसले तो बुलंद होंगे ही। ऊपर से हर खास मौके पर उसकी गोद में बैठ कर खेलने वाले वामपंथी दल और उनके तथाकथित प्रगतिशील, क्रान्तिकारी और मानवाधिकारवादी बुद्धिजीवी तो हैं ही।

इसलिए श्रीनगर एनआईटी में तो क्या, अगर पूरे देश में भी ऐसी घटनाएँ होने लगें, तो कम से कम मुझे आश्चर्य नहीं होगा। कांग्रेस और वामपंथियों की तो राजनीति ही यही है कि ऐसी ज्यादा से ज्यादा घटनाएँ हों। इसलिए इस घटिया घिनौनी राजनीति के बीच केंद्र की मोदी सरकार को समझदारी और सख्ती दोनों से काम लेना होगा।

अगर नरेंद्र मोदी का सीना सचमुच 56 इंच का है, तो उनकी सरकार महबूबा मुफ्ती को साफ लहजे में यह चेतावनी दे दे कि राज्य में देशद्रोह की एक भी हरकत बर्दाश्त नहीं की जाएगी और अगर ऐसी एक भी हरकत आइन्दा हुई, तो बीजेपी फौरन सरकार से समर्थन वापस लेकर वहाँ राष्ट्रपति शासन लगवा देगी। साथ ही, देशभक्त छात्रों पर लाठीचार्ज के दोषी सभी पुलिस वालों को बर्खास्त कर जेल में ठूंसा जाये।

पानी अब सिर के ऊपर से जा रहा है। देश की सहिष्णु जनता के धैर्य का इम्तिहान बहुत हो चुका। वोट बैंक की घिनौनी, सांप्रदायिक और देश-द्रोही राजनीति के बीच हम देश को इस तरह बर्बाद होते हुए चुपचाप नहीं देख सकते। 

(देश मंथन, 12 अप्रैल 2016)

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