अभिरंजन कुमार, पत्रकार :
राहुल बाबा फिर विदेश चले गए हैं।
किस देश गए हैं, बताकर नहीं गये, वरना जरूर बताता।
उनकी गैर-मौजूदगी में बड़ी अकेली पड़ जाती हैं उनकी माता!
कितने दिन के लिए गये हैं, यह भी तो उन्होंने बताया नहीं
क्या करने गये हैं, इस बारे में भी कुछ नहीं जताया
जून की इन सुलगती गर्मियों में पार्टी के लोग हो गये बिना छाता!
मुझे चिंता हो रही है कांग्रेस की, जिसे सर्जरी की जरूरत है
और सर्जरी की डेट टलती ही जा रही है
130 साल पुरानी काया अब गलती ही जा रही है
पर जो सर्जन है, वही फिर रहा है क्यों छिपता-छिपाता?
राहुल बाबा का जी अगर है जिम्मेदारी से घबराता
तो प्रियंका बेबी को ही हम बुला लेते
उनके मैजिक की माया में साल दो साल तो खुद को भुला लेते
पर इस अनिश्चय की स्थिति में तो हमें कुछ भी नहीं है बुझाता!
दिग्गी से पिग्गी से, मणि से शनि से भी तो काम नहीं चलता
क्या करें, कांग्रेस में गाँधी-नेहरू के सिवा कोई नाम नहीं चलता
ये कैसे कठिन समय में हमें डाल दिया, हे दाता!
पहले वाले दिन कितने अच्छे थे।
एक मम्मी थी और हम ढेर सारे बच्चे थे।
न कोई बही थी, न था कोई खाता।
जो जी में आता, वही था खा जाता।
(देश मंथन 21 जून 2016)