कश्मीर में कुछ करिए : स्पष्ट संदेश दीजिए कि ‘नहीं मिलेगी आजादी’

0
127

संजय द्विवेदी, अध्यक्ष, जनसंचार विभाग, माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय :

गनीमत है कि कश्मीर के हालात जिस वक्त बहुत बुरे दौर से गुजर रहे हैं, उस समय भारतीय जनता पार्टी विपक्ष में नहीं है। कल्पना कीजिए कि इस समय केंद्र और राज्य की सत्ता में कोई अन्य दल होता और भाजपा विपक्ष में होती तो कश्मीर के मुद्दे पर भाजपा और उसके समविचारी संगठन आज क्या कर रहे होते। इस मामले में कांग्रेस नेतृत्व की समझ और संयम दोनों की सराहना करनी पड़ेगी कि एक जिम्मेदार विपक्ष के नाते उन्होंने अभी तक कश्मीर के सवाल पर अपनी राष्ट्रीय और रचनात्मक भूमिका का ही निर्वाह किया है।

ऐसे कठिन समय में जब कश्मीर की मुख्यमंत्री को एक आतंकी को मारे जाने पर अफसोस और उसकी मौत को शहादत बताने की राजनैतिक नासमझी दिख रही हो, तब यह मानना ही पड़ेगा कि कश्मीर में सब कुछ सामान्य नहीं है। जिले के जिले कर्फ्यू और अराजकता की गिरफ्त में हैं। वहाँ के अतिवादियों के निशाने पर सेना और पुलिस के जवान हैं, जिन पर पत्थर बरस रहे हैं। पूरी संसद कश्मीरियों की कश्मीरियत और इंसानियत पर फिदा है, जबकि वे अपनी ही सेना पर पत्थर बरसा रहे हैं, अपने हम वतन पुलिस वालों को पीट रहे हैं। ऐसे कठिन समय में जबकि सेना और पुलिस के 2228 लोग पत्थरों के हमलों में घायल हैं, तब हम उनका विचार न कर उन 317 लोगों के बारे में विलाप कर रहे हैं, जो पेलेट गन से जख्मी हुए हैं। पत्थरों को बरसाने के जिहादी तेवरों का मुकाबला आप कैसे करेगें इस पर सोचने की जरूरत है। लेकिन लगता है कि भारतीय मीडिया और राजनीति का एजेंडा तय करने वाले नान इश्यु को इश्यु बनाने में महारत हासिल कर चुके हैं। इसी हीला-हवाली और ना-नानुर वाली स्थितियों ने कश्मीर को इस अँधेरी सुरंग में भेज दिया है।

हमारी सारी सहानुभूति पत्थर फेंकने वाले समूहों के साथ है, जबकि सेना और पुलिसवाले भी हमारे ही हैं। कश्मीर में पेलेट गन से घायल लोगों के अपराध क्या कम हैं? स्कूल-कालेजों से लौटते और मस्जिदों से निकलते समय खासकर जुमे की नमाज के बाद देशविरोधी नारे बाजियाँ, पाकिस्तान और आईएस के झंडे लहराना तथा सेना व पुलिस की चौकियों पर पथराव एक सामान्य बात है। क्या इस तरह से हम कश्मीर को संभाल पाएँगें? आतंकियों के जनाजे में हजारों की भीड़ एकत्र हो रही है और हम उस आवाम को देशभक्त और इंसानियत पसंद बताकर क्या मजाक बना रहे हैं। अब समय आ गया है कि भारत सरकार इन तथाकथित ‘आजादी के दीवानों’ को साफ संदेश दे दे। उन्हें साफ बताना होगा कि कश्मीरियों को उतनी ही आजादी मिलेगी जितनी देश के किसी भी नागरिक को है। वह नागरिक उप्र का हो या महाराष्ट्र का या कश्मीर का। उन्हें हर हालत में हिंदुस्तान के साथ रहने का मन बनाना होगा। पाकिस्तानी टुकड़ों पर पलने वालों को यह साफ बताना होगा कि उन्हें ऐसी आजादी किसी कीमत पर नहीं मिल सकती, जिसके वे सपने देख रहे हैं, कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है और रहेगा। इन पत्थरों और नारों से भारत की सरकार को दबाने और ब्लैकमेल करने की कोशिशें बंद होनी चाहिए। दूसरी बात कहनी चाहिए कि जब तक पूर्ण शांति नहीं होगी, कश्मीरी पंडित अपने घरों या नई कालोनियों में नहीं लौटते तब तक न तो सेना हटेगी, ना ही सशस्त्र बल विशेष शक्तियाँ अधिनियम को हटाया जाएगा। सरकारों की लीपापोती करने की आदतों और साफ भाषा में संवाद न करने से कश्मीर संकट और गहरा ही हो रहा है।

भारत सरकार की सारी विकास योजनाएँ और सारी धनराशि खर्च करने के बाद भी वहाँ शांति नहीं आ सकती, क्योंकि वहाँ के कुछ लोगों के मन में एक पापी सपना पल रहा है और उस सपने को तोड़ना जरूरी है। कश्मीर के अतिवादियों की ताकत दरअसल पाकिस्तान है। भारत की सरकार पाकिस्तान से हर तरह का संवाद बनाए रखकर संकट को और गहरा कर रही है। पाकिस्तान को आइसोलेट किए बिना कश्मीर में शांति नहीं आ सकती यह सब जानते हैं। कश्मीर के अतिवादी नेताओं के दुष्प्रचार के विरूद्ध हमें भी उनका सच सामने लाना चाहिए कि वे किस तरह कश्मीर के नाम पर पैसे बना रहे हैं और आम कश्मीरी युवकों का इस्तेमाल कर अपनी राजनीति चमका रहे हैं। इन्हीं अतिवादियों के बेटे-बेटियाँ और संबंधी विदेशों और भारत के बड़े शहरों में आला जिंदगी बसर कर रहे हैं और आम कश्मीरी अपना धंधा खराब कर पत्थर फेंकने और आतंकियों के जनाजों में शामिल हो कर खुद को धन्य मान रहा है। ये अतिवादी अपनी लंबी हड़तालों से किस तरह कश्मीर की अर्थव्यवस्था को नष्ट करके वहाँ के सामान्य नागरिक के जीवन को नरक बना रहे हैं यह किसी से छिपा नहीं है। वहाँ के युवाओं को अच्छी राह दिखाने, पढ़ कर अपनी जिंदगी को बेहतर बनाने के बजाए एक ऐसी सुरंग में धकेल रहे हैं जहाँ से लौटना मुश्किल है।

भारत और पाकिस्तान के रिश्तों को बेहतर बनाने का यह समय नहीं हैं, जबकि पूरा पाकिस्तानी सत्ता प्रतिष्ठान आतंकियों और अतिवादियों की गोद में जा बैठा है। पाकिस्तान से अपने रिश्तों पर हमें पुर्नविचार करना होगा। यह ठीक बात है कि हम अपने पड़ोसी नहीं बदल सकते पर पड़ोसी से रिश्ते रखने या न रखने की आजादी तो हमें मिलनी चाहिए। तमाम राजनीति-कूटनीतिक पहलकदमियाँ करके भारत देख चुका है कि पाकिस्तान फिर लौटकर वहीं आ जाता है। भारतद्वेष और भारत से घृणा उसके डीएनए में है। जाहिर तौर पर पाकिस्तान से दोस्ती का राग अलापने वाले इस पाकिस्तान को नहीं पहचानते। भारत के प्रति घृणा ही पाकिस्तान को एक किए हुए है।

भारत के प्रति विद्वेष खत्म होते ही पाकिस्तान टुकड़े-टुकड़े हो जाएगा। इसलिए भारत घृणा वह विचार बीज है, जिसने अंतर्विरोधों से घिरे पाकिस्तान को जोड़ रखा है। कश्मीर उसका दूसरा दर्द है। इसके साथ ही विश्व स्तर पर चल रहा इस्लामी आतंकवाद और जेहाद ने इसमें जगह बना ली है। कश्मीर आज उसकी प्रयोगशाला है। कश्मीर में हम हारे तो हारते ही जाएंगें। इसलिए कश्मीर में चल रहे इस अघोषित युद्ध को हमें जीतना है, किसी भी कीमत पर। लेकिन हम देखते हैं कि चीजें लौटकर वहीं आ जाती हैं। कभी पाकिस्तान से रिश्तों को लेकर तत्कालीन कांग्रेस सरकार को वर्तमान प्रधानमंत्री पाकिस्तान को लव लेटर लिखने की झिड़कियाँ दिया करते थे। आज की विदेश मंत्री एक सर के बदले दस सिर की बात करती थीं। सारा कुछ वही मंजर है, देश चिंतित है क्या इस बार आप कश्मीर पर देशवासियों से मन की बात करेंगें। एक साफ संदेश देशवासियों और कश्मीर को देंगें कि यह देश अब और सहने को तैयार नहीं हैं। न तो पत्थर, न गोलियाँ और ना ही आजादी के नारे। 

(देश मंथन, 02 अगस्त 2016)

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें