दुश्मन को मारने से पहले अपनी चारदीवारी को मजबूत करो

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संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :

हो सकता है आप में से कुछ लोग 11 सितंबर 2001 को न्यूयार्क में हुए आतंकवादी हमले के चश्मदीद रहे हों। हो सकता है बहुत से लोग न रहे हों। लेकिन मैं रहा हूँ। मैंने 11 सितंबर 2001 में अमेरिका पर हुए आतंकवादी हमले को बहुत करीब देखा और जिया है। मैं चश्मदीद हूँ उस हमले का और हमले में मरे दस हजार लोगों के शव का।

जिस दिन सुबह पौने नौ बजे ये हमला अमेरिका पर हुआ था, उस दिन मैं अमेरिका में ही था। रेडियो, टीवी पर न्यूज चल रही थी, लोगों से अनुरोध किया जा रहा था कि वो अपने घरों में शांति से बैठें। लोगों से अनुरोध किया जा रहा था कि कोई बाहर न निकले, कोई यात्रा पर न जाए। अमेरिका का आसमान, जहाँ हर सेकेंड एक विमान उड़ता था, उसे विमानों से खाली करा लिया गया था। पूरे अमेरिका में निर्देश जारी कर दिया गया था कि अगले आदेश तक अमेरिका के आसमान पर कहीं कोई विमान नजर नहीं आना चाहिए। जो विमान जहाँ था, वहीं पास के हवाई अड्डे पर उतार लिया गया था। जो लोग बाहर से अमेरिका आ रहे थे, उनके विमान दूसरे देशों की ओर मोड़ दिए गये थे।

मैंने खुद देखा था कि अमेरिका के आसमान को पूरी तरह साफ कर दिया गया था। तीन दिनों तक मानो सबकुछ थम गया था। हर ओर सन्नाटा था।

और तीन दिनों के बाद मैं न्यूयार्क के एयरपोर्ट तक गया था।

उस अमेरिकी एयरपोर्ट पर, जहाँ तीन दिन पहले तक किसी से कहीं तक आने-जाने को लेकर कोई सवाल नहीं पूछा जाता था, वहाँ पहली बार हर किसी की जाँच स्कैनर लगा कर की जा रही थी। रैंडम चेकिंग के नाम पर पहली बार जूते उतरवाए जा रहे थे, कपड़े खुलवाए जा रहे थे। मैंने एक पुलिस वाले से पूछा था कि इतनी चौकसी क्यों?

पुलिस वाले ने मेरी ओर देखा और बहुत संजीदगी से कहा था, “सर, ये अमेरिका है। यहाँ हम सभी लोगों पर भरोसा करते हैं, लेकिन तभी तक जब तक भरोसा तोड़ न दिया जाए। एक बार भरोसा टूटा, हम दुबारा मौका नहीं देते। अब इस देश में आना और यहाँ के सुरक्षा चक्र को भेदना किसी के लिए असंभव होगा। अपने विश्वास में धोखा हम एक बार ही खाते हैं। वो हम खा चुके। जो आतंकवादी हमारी सीमा में घुसे, जो आतंकवादी प्लेन हाईजैक करके ट्विन टावर तक पहुँच गये, वो हमारी आंतरिक सुरक्षा की कमजोरी का परिणाम था। हम एक बार धोखा खाते हैं, दोबारा नहीं। दोबारा हम इलाज करते हैं।”

मैं संजय सिन्हा, संसार के बहुत कम दुर्भाग्यशाली लोगों में से एक हूँ जिसने 11 सितंबर 2001 के पहले के अमेरिका और 11 सितंबर 2001 के बाद के अमेरिका को साथ-साथ देखा है। मैंने इस हादसे के दो दिनों बाद अमेरिका से जनसत्ता के लिए रिपोर्टिंग की थी और कहा था कि अमेरिका यूँ मानने वाला नहीं, वो बदला लेगा। वो अफगानिस्तान, इराक किसी को नहीं छोड़ेगा। वो पाताल से भी ओसामा बिन लादेने को ढूंढ निकालेगा। लेकिन अभी नहीं। पहले वो आत्ममंथन करेगा। वो सोचेगा कि कोई कैसे उसके घर में घुस कर उसे चैलेंज कर गया। पहले वो अपना घर ठीक करेगा। उन खामियों को दूर करेगा, जिनका फायदा उठा कर आतंकवादी उसकी सीमा रेखा पार कर भीतर तक आए। वो इस बात पर विलाप नहीं करेगा कि उसके दस हजार लोग मर गये। वो अफसोस इस बात पर करेगा कि आखिर घर में दुश्मन घुसा और उसे पता क्यों नहीं चला? वो दुश्मन को मिटाने की कसम बाद में खाएगा। वो पहले इस बात की कसम खाएगा कि दुबारा कोई हमारे देश में हमारी सुरक्षा को भेद कर न घुस पाए। 

फिर तो दुनिया ने देखा।

अमेरिका ने पहले अपनी आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था को दुरुस्त किया। पूरी तरह किया, फिर दुश्मन देश पर हमला किया।

आज सोशल साइट पर कई लोग पाकिस्तान को धो देने की बात कर रहे हैं। कई लोग उसके वजूद को मिटा देने की बात कर रहे हैं। बेशक धो डालिए पाकिस्तान को। ईंट से ईंट बजा दीजिए। पर ध्यान रहे, दुश्मन ने सीमा-पार से आप पर हमला नहीं किया है। वो कभी समंदर के रास्ते, तो कभी तार के बाड़े को पार कर हमारे देश की सीमा में घुस आता है और आतंक को अंजाम दे कर चला जाता है। चाहे संसद पर हमला हो, या मुंबई पर। चाहे पठानकोट पर हमला हो, या कश्मीर में सैनिक छावनी पर। दुश्मन चल कर आया, मार कर चला गया। हम कहते रहे कि हम ठोक देंगे, हम देख लेंगे, हम छोड़ेंगे नहीं।

सलाम है हमारी वीरता को। सलाम है हमारे धैर्य को। पर आतंकवादी पड़ोसी मुल्क से हमारे देश में आसानी से घुस जाते हैं, हम उन्हें नहीं रोक पाते। इस बात को सलामी नहीं।

फेसबुक के वीरों, युद्ध की तैयारी करो। सीमा पर जाकर पाकिस्तान को मिटाने की तैयारी भी करो। लेकिन उससे पहले आतंरिक सुरक्षा को इतना दुरुस्त कर लो कि एक के बाद एक हमलावर यूं ही टहलता हुआ हमारी सीमा को पार कर मुंबई, दिल्ली, पठानकोट, श्रीनगर न पहुँच जाए। अगर दुश्मन बार-बार दस्तक देता है, घर में घुस कर देता है, तो पहले अपने सिस्टम के पोस्टमार्टम की दरकार है।

एक बार वो ठीक हो जाए फिर अपना विमान लेकर डंके की चोट पर इस्लामाबाद के आसमान में जाना और ठोक देना *** को…।

दुश्मन को मारने से पहले अपनी चारदीवारी को ‘सस्ता नहीं, मजबूत सीमेंट’ से मजबूत करने की दरकार होती है। 

भीतर की सुरक्षा बाहर की सुरक्षा से अधिक महत्वपूर्ण है। 

अमेरिका ने 9/11 के दोषियों को धो दिया, लेकिन उससे पहले उसने धुलाई की अपने आसमान की, अपनी जमीन की और अपने पानी की।

जो लोग अमेरिका गये हैं, वो तो सब जानते ही होंगे। जो नहीं गये उन्हें एक बार जा कर देखना चाहिए और समझना चाहिए कि कैसे कूटनीति, राजनीति और धर्मनीति तीन अलग-अलग चीज हैं। 

खुद को दुरुस्त किए बिना जिनके मन में युद्ध की महत्वाकांक्षा भभकती है उस मन से सिर्फ विषाक्त धुआँ ही निकलता है। ऐसा धुआँ जिससे वर्तमान तो घुटता ही है, भविष्य के मुख पर भी कालिख पुत जाती है। ध्यान रहे, हर जलने वाले की अंतिम परिणती कालिख ही है। 

(देश मंथन 26 सितंबर 2016)

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