चीन से लड़ने को ललकारती आवाजों का असली मतलब क्या है?

0
204

राजीव रंजन झा : 

चीन से लड़ लोगे क्या? लड़ पाओगे क्या? बहुत ताकतवर है हमसे। 

दरअसल 1962 की हार के बाद यह भारतीय मानस में बैठ गया है कि हम पाकिस्तान को तो कभी धूल चटा सकते हैं, लेकिन चीन से पार पाना संभव नहीं है।

विगत दशकों में चीन की आर्थिक और सामरिक प्रगति ने भी इस धारणा को पुष्ट ही किया है। वहीं यूपीए-1 और यूपीए-2 के दौर में एक तरफ सेनाओं के लिए नयी खरीद काफी कम होने और चीन तो तुष्ट रखने के लिए भारत-चीन सीमा पर हमारा ढाँचागत विकास एकदम ढीला कर देने की नीति के कारण भारत और चीन की सैन्य क्षमताओं में अंतर काफी बढ़ा। 

इसीलिए जो लोग ललकारते नजर आ रहे हैं कि चीन ने हमारे सैनिकों को मार दिया, मोदी सरकार चीन से युद्ध क्यों नहीं छेड़ रही, उनकी असली मंशा यह कहने की है मोदी सरकार जितना भी दम भर ले, लेकिन चीन से लड़ नहीं सकती। कल कांग्रेस की पैनलिस्ट अलका लांबा को एक चैनल पर कहते सुना – अरे इनकी औकात नहीं है चीन से लड़ने की। पता नहीं वह सरकार की औकात की बात कर रही थीं, या भारत की। दोनों में कोई अंतर तो नहीं लगता मुझे, इसलिए वह भारत को उसकी औकात बता रही थीं शायद। 

जो लोग कल तक सरकार का बयान माँग रहे थे, उनके सामने अब विदेश मंत्री का भी बयान है, स्वयं प्रधानमंत्री का वक्तव्य भी है।

अब वे कहेंगे सरकार झूठ बोल रही है। कहेंगे नहीं, कहना शुरू कर चुके हैं।

जब भारतीय सेना का बयान नहीं मानना, भारत सरकार का बयान मानना ही नहीं था, तो रोज-रोज बयान दो बयान दो की रट क्यों लगाये बैठे थे? और किसका बयान सही मान रहे हो भाई यह भी बता दो…

कुछ लोग यह भी कह रहे हैं कि मोदी भी नेहरू की तरह चीन से धोखा खा गये। पर यह मानना सही नहीं लगता कि मोदी चीन से धोखा खा गये। कभी अहमदाबाद में झूला झुलाते रहे, कभी महाबलीपुरम घुमाते रहे, लेकिन साथ-साथ चीन के खट्टे संबंधों वाले हर देश के साथ अपने संबंध मधुर करते रहे। भारत की सैन्य क्षमता को कुछ वर्षों में जिस तरह से सुदृढ़ किया गया है, उससे भी स्पष्ट है कि अब भारत केवल पाकिस्तान की चुनौती को ध्यान में रख कर अपनी सैन्य तैयारियाँ नहीं कर रहा है। चीन से लगी सीमाओं पर जिस तरह से ढाँचागत विकास किया गया है, जो चीन की चिढ़ का एक बड़ा कारण है, वह भी दिखाता है कि मोदी ने चीन पर वैसा विश्वास किया ही नहीं है जैसा नेहरू ने किया था।

गलवान घाटी में हमारे वीर सैनिक जरूर औचक हमले के शिकार हुए, लेकिन उसके बाद प्रतिघात में बहुत भारी पड़े हैं।

दरअसल, मोदी सरकार ने सैन्य तैयारियों को जो नया आयाम दिया है, वह कई मायनों में पहले से काफी अलग है। पहले चीन नाराज होता था तो हमारी सरकार सीमा पर हमारे बने-बनाये बंकर तुड़वा देती थी। इस समय चीन के साथ जो तनातनी चल रही है, वह सबके सामने है और इस तनातनी के बीच ठीक सीमा पर एक पुल बन कर तैयार हो गया, जिसे लेकर चीन को काफी आपत्ति है। 

मगर इसका मतलब यह नहीं है कि आज ही सरकार चीन से युद्ध छेड़ने जा रही है। जिन लोगों ने भारत की रक्षा तैयारियों को कमजोर किया, उनके बार-बार ललकारने के बावजूद ऐसा नहीं होगा। उनकी ललकार सेना और सरकार को नीचा दिखाने का प्रयास है और सरकार इस जाल में नहीं फँसने वाली। कोई सरकार इस तरह युद्ध में नहीं कूद पड़ती। 

लेकिन गलवान घाटी में हुए संघर्ष ने चीन को यह संदेश जरूर दिया है कि वह कोई भी दुस्साहस करेगा तो उसे उसकी भारी कीमत चुकानी पड़ेगी। 

(देश मंथन, 20 जून 2020)

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें