फिर से एक बार खोजी पत्रकार तरुण तेजपाल के मामले के बहाने एक बार बलात्कार पीड़ितों के लिए नियम निर्देशों की चर्चा है। जी हां, बलात्कार पीड़ितों के लिए नैतिक नियम निर्देश, जैसा न्यायालय की ओर से कहा गया, या न्यायालय से दिए गए। और जो हाल ही में गोवा की सत्र न्यायाधीश ने जो […]
फिर से एक बार खोजी पत्रकार तरुण तेजपाल के मामले के बहाने एक बार बलात्कार पीड़ितों के लिए नियम निर्देशों की चर्चा है। जी हां, बलात्कार पीड़ितों के लिए नैतिक नियम निर्देश, जैसा न्यायालय की ओर से कहा गया, या न्यायालय से दिए गए। और जो हाल ही में गोवा की सत्र न्यायाधीश ने जो निर्णय दिया है, उसके खिलाफ मुम्बई उच्च न्यायालय ने कल यह टिप्पणी की कि “यह निर्णय बलात्कार पीड़ितों के लिए एक मैन्युअल अर्थात दिशानिर्देश हैं।”
वर्ष 2013 में यह मामला चर्चा में आया था, जब खोजी पत्रकार तरुण तेजपाल पर उन्हीं की महिला सहकर्मी ने यौन शोषण का आरोप लगाया था। वह उनकी बेटी की उम्र थी, तथा उसने यह आरोप लगाया था कि दिनांक 7 और 8 अप्रेल की रात को गोवा के एक फाइव स्टार होटल में लिफ्ट में तरुण तेजपाल ने बलात्कार किया था। इस मुद्दे को लेकर काफी हंगामा हुआ था और बढ़ते दबाव के चलते या किसी और कारणवश तरुण तेजपाल ने एक अधिकारिक मेल भेज कर संस्थान के स्तर पर क्षमा माँगी थी।
उस मेल में यह स्पष्ट लिखा था कि पीड़िता के इंकार करने के बावजूद भी तरुण तेजपाल ने उसकी बात नहीं मानी। और अपने गलत निर्णय के लिए क्षमा करने का अनुरोध किया था।
पीड़िता ने मुकदमा लड़ा और जब यह निर्णय आया तो हर कोई हैरान रह गया था। सबसे दुर्भाग्य की बात है कि इस निर्णय को किसी पुरुष ने नहीं बल्कि किसी महिला ने ही लिखा था और पीडिता के पूर्व यौन आचरण के आधार पर अवलोकन किये और निर्णय दे दिया कि तरुण तेजपाल निर्दोष है।
इस निर्णय में पीड़िता के चरित्र का हनन किया गया और यहाँ तक कहा गया कि उसका यौन शोषण कैसे हो सकता है जब वह उसी लिफ्ट से हंसती हुई निकली। जज साहिबा ने कहा कि उसके व्यवहार से ऐसा लग ही नहीं रहा था कि उसके साथ यौन शोषण हुआ है।
फिर जज साहिबा ने उसके मेसेज्स का हवाला दिया और कहा कि उसके हर मित्र के साथ फ्लर्टियस सम्बन्ध हैं, अर्थात पटाने संबंधी! आज के बदलते समय में जब बातचीत में हर सीमा टूट जाती है, तो ऐसे में फ्लर्टियस सम्बन्ध कौन निर्धारित करेगा? कौन यह तय करेगा कि कौन सी बातचीत फ्लर्टियस है और कौन सी आदर्शवादी? और आदर्श निर्धारित करने का कार्य न्यायालय को किसने दिया है?
जज ने इन पूरे 527 पृष्ठों के निर्णय में बार बार इन शब्दों पर जोर दिया है कि पीडिया ने शराब पी हुई थी, कम मात्रा में पी थी, उसके आरोपी के साथ पहले से सम्बन्ध थे? क्या लड़की के शराब पीने से दूसरे व्यक्ति को बलात्कार करने का लाइसेंस मिल जाता है या फिर आरोपी के साथ सम्बन्ध होने पर लड़की के साथ जबरन सम्बन्ध बनाने का अधिकार मिल जाता है?
जबकि जज साहिबा ने तरुण तेजपाल के पूर्व यौन आचरण का इतिहास खंगालने का प्रयास नहीं किया कि क्या उसने कभी भी अपने इंटर्न्स को नौकरी बनाए रखने के लालच में अपनी हवस का शिकार तो नहीं बनाया? क्या कभी तरुण तेजपाल ने अपने पद का दुरूपयोग तो नहीं किया? क्या कभी तरुण तेजपाल ने कोई मामला दबाने में या लड़की को परेशान करने में अपने राजनीतिक कद का दुरूपयोग तो नहीं किया? ऐसी कोई भी जांच नहीं हुई, बस फैसला केवल और केवल लड़की के ही पूर्व में यौन आचरण और इतने वर्षों में उसके सम्बन्धों पर टिका रहा।
यही कारण है कि इस अजीबोगरीब निर्णय के खिलाफ गोवा की सरकार उसी दिन मुम्बई उच्च न्यायालय गयी और सबसे पहले पीडिता के ईमेल पर रोक लगवाई क्योंकि उससे निजता का हनन हो रहा था। हालांकि जज साहिबा ने कहा कि वह यह साबित करने के लिए पीडिता का यौन इतिहास नहीं खंगाल रही हैं कि उसका चरित्र खराब है बल्कि इसलिए यह चैट दिखा रही हैं जिससे यह पता चले कि अभियोजिका झूठ बोल रही है। यह विश्वास करना कठिन है कि अभियोजिका एक विश्वसनीय एवं भरोसेमंद गवाह है।
अच्छा हुआ कि इस अजीबोगरीब निर्णय पर मुम्बई उच्च न्यायालय ने रोक लगाई है और लगभग फटकारते हुए कहा है कि यह निर्णय तो बलात्कार पीड़ितों के लिए मैन्युअल की तरह है! नहीं, तो ऐसे एक दो निर्णय और आ गए तो लड़की को बलात्कार के बाद न्याय की चौखट पर लाना पहले की भांति कठिन हो जाएगा और अंतत: सब कुछ जाकर लड़की के ही आचरण पर ही आधारित हो जाएगा!
(देश मंथन, 4 जून 2021)