देश मंथन डेस्क
सेकुलर घुट्टी क्यों पिला गये ओबामा?

क़मर वहीद नक़वी :
आधुनिक सेकुलरिज्म और लोकतंत्र एक दूसरे के पूरक विचार हैं। सारी दुनिया में लोगों को अब दो बातें समझ में आती जा रही हैं। एक यह कि आर्थिक विकास के लिए स्वस्थ लोकतंत्र बड़ा जरूरी है। एक शोध के मुताबिक लोकताँत्रिक शासन व्यवस्था अपनाने से देशों की जीडीपी में अमूमन एक प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हो गयी! और जो देश लोकतंत्र से विमुख हुए, वहाँ इसका असर उलटा हुआ और आर्थिक विकास की गति धीमी हो गयी।
नैतिकता की ढोल, मन की पोल

रत्नाकर त्रिपाठी :
"ऐसा कोई सगा नहीं, जिसको हमने ठगा नहीं" के सिद्धांत को आदर्श बना के चलने वाले भी नैतिकता के ढोल बजाने लगे हैं।
गुमनाम लिफाफे का अनजाना संदेश

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
एक अनपढ़ आदमी के नाम कहीं से एक चिट्ठी आयी। अनपढ़ आदमी अकेला था। न आगे नाथ न पीछे पगहा। ऐसा पहली बार हुआ था कि किसी ने उस अनपढ़ आदमी के नाम घर पर चिट्ठी भेजी हो।
डरा कौन, भाजपा या आप!

संदीप त्रिपाठी :
120 सांसद, कैबिनेट मंत्रियों की फौज, 280 मंडल प्रभारी, सवा लाख पन्ना प्रभारी। दिल्ली विधानसभा चुनाव में मिशन 60+ को पूरा करने के क्रम में भाजपा और अमित शाह कोई कसर नहीं छोड़ना चाहते हैं। लेकिन विरोधी इस कुमुक पर सवाल उठा रहे हैं कि एक अकेले आप संयोजक अरविंद केजरीवाल से भाजपा, संघ और मोदी सेना इतनी डर गयी कि उसे जीत के लिए पूरा लाव-लश्कर उतारना पड़ा।
पंजाबी दुर्ग में सेंध की आप को चुनौती

संदीप त्रिपाठी :
दिल्ली विधानसभा चुनाव में पंजाबी खत्री मतदाता बहुत महत्वपूर्ण भूमिका अदा करने जा रहे हैं। आमतौर पर यह मतदाता भाजपा के समर्थक वर्ग के रूप में माना जाता रहा है। भाजपा ने अपने शुरुआती दिनों से इसी वोटबैंक के बूते दिल्ली में अपना आधार मजबूत किया। लेकिन दिसंबर, 2013 में आप की लहर का असर इस वोट बैंक पर भी पड़ा।
भारत-अमेरिकी दोस्ती का कारोबार

राजीव रंजन झा :
आम तौर पर जब दो राष्ट्राध्यक्ष मिलते हैं तो उनकी बातों और बयानों के अल्पविराम और पूर्णविराम तक की गहन कूटनीतिक समीक्षा होती है। लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की एक तात्कालिक सफलता यह है कि उन्होंने अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के भारत दौरे को इन बारीकियों से निकाल कर दोनों देशों के आपसी संबंधों में आती गर्माहट पर केंद्रित कर दिया। हालाँकि यह सफलता तात्कालिक ही है, क्योंकि अंततः सफलता इसी पैमाने पर आँकी जायेगी कि यह गर्माहट दोनों देशों के आपसी कूटनीतिक और व्यापारिक रिश्तों को कितना आगे बढ़ा पाती है।
‘आम आदमी’ को आखिरी सलाम

रत्नाकर त्रिपाठी :
जब से लिपियों का ठीक से ज्ञान हुआ, तब से अखबार की दुनिया में झाँकने लगा था। घर से लिए बाहर तक हिंदी बोली जाती थी, सो हिंदी अखबार ठीक-ठाक बांच लेता था। बनारस में "पक्की गुजराती घुसपैठ" तो इस साल मई में हुई, लेकिन मेरे घर में ये पांच दशक पहले हो गयी थी।
दिल्ली में दलित वोटर होंगे निर्णायक

संदीप त्रिपाठी : दिल्ली विधानसभा चुनाव में इस बार दलित वोट निर्णायक भूमिका में होंगे। पूरी दिल्ली में एक वर्ग के रूप में सबसे ज्यादा संख्या दलितों की ही है। दिल्ली के कुल 1,30,85,251 मतदाताओं में 17 फीसदी दलित हैं। कुल 70 विधानसभा क्षेत्रों में से 12 तो सुरक्षित हैं ही, आठ अन्य क्षेत्रों में भी दलित प्रभावी संख्या में हैं।
ओबामा के सहारे कैसे बची इज्जत
आलोक पुराणिक, व्यंग्यकार :
इस मुल्क के हर बड़े आदमी का स्टेटस इन दिनों इस बात पर टिका है कि उसे ओबामा के सम्मान में आयोजित होने वाले लंच-डिनर का निमंत्रण मिला कि नहीं। एक बड़े स्टार के बेटे की शादी हाल में हुई थी। मेरे पड़ोसी को इस शादी का निमंत्रण मिला था। वे मुझसे नक्शेबाजी कर रहे थे कि देखिये आप को तो ना बुलाया गया उस शादी में। मुझे बुलाया गया। मेरा स्टैंडर्ड आपसे ऊँचा है।
सामने आयी शांति भूषण के भीतर रुकी सच्चाई

डॉ. रंजन ज़ैदी, वरिष्ठ पत्रकार एवं लेखक :
शांति भूषण जी पुराने समाजवादियों में से हैं। प्रोफेशनल अधिवक्ता। ईमानदार लोगों में डूबता सितारा। डूबता इसलिए कि जिसने 'आम आदमी पार्टी' को जन्म दिया उसी में उसकी उपेक्षा कर दी गयी।



क़मर वहीद नक़वी :
रत्नाकर त्रिपाठी :
संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
राजीव रंजन झा :
डॉ. रंजन ज़ैदी, वरिष्ठ पत्रकार एवं लेखक :




