नैतिकता की ढोल, मन की पोल

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रत्नाकर त्रिपाठी : 

“ऐसा कोई सगा नहीं, जिसको हमने ठगा नहीं” के सिद्धांत को आदर्श बना के चलने वाले भी नैतिकता के ढोल बजाने लगे हैं।

नैतिकता का ढोल- जी, अन्ना जो कहेंगे, वही करूंगा; जिंदगी में राजनीति में नहीं जाऊंगा; 

मन की पोल- जी, राजनीति के कीचड में उतर कर ही सफाई करनी होगी, अन्ना नहीं आते तो हम क्या करें।

नैतिकता का ढोल- बच्चों की कसम खाता हूँ जी कि ना कांग्रेस-बीजेपी से समर्थन लूंगा, ना ही दूंगा;

मन की पोल- जी, मैंने कांग्रेस से समर्थन माँगा थोड़े ही जी, उन्होंने खुद दे दिया।

नैतिकता का ढोल- जी, कोई सुरक्षा नहीं लूंगा, मेरी रक्षा भगवान करेगा;

मन की पोल- जी, मुख्यमंत्री और पूर्व मुख्यमंत्री को तो ये सुरक्षा मिलती ही है।

नैतिकता का ढोल- जी, बंगले तो वीआईपी लेते हैं, मैं तो घर से ही आऊंगा जी;

मन की पोल- जी, अब ऑफिस और घर चलाने के लिए बँगला तो चाहिए ही ना,

जी,वैसे भी देख लें कि मेरा बंगला शीला दीक्षितके मुकाबले छोटा है।

नैतिकता का ढोल- जी, ये कोई गणतंत्र-वणतंत्र की परेड नहीं है जी, ,

जनता के पैसे पर कुछ वीआईपी नेता और अफसर बैठ के मज़ा लेते हैं,

जी, हम तो आम आदमी हैं जी, पूरा राजपथ भर देंगें लोगों से, कोई परेड नहीं होगी जी।

मन की पोल- जी, मुझे गणतंत्र दिवस परेड में किसी ने बुलाया ही नही, पूर्व मुख्यमंत्री होने के चलते प्रोटोकॉल के नाते बुलाना तो चाहिए ही था ना। ।

नैतिकता का ढोल- जी, बनारस के लोग मुझे बहुत प्यार करते हैं, मैं बनारस कभी नहीं छोड़ूगा।

मन की बात- जी, गलती इंसान से होती है, इस बार मुख्यमंत्री बना दो, मैं दिल्ली कभी नहीं छोड़ूँगा।

मन की पोल- “अपना काम बनता , भाड़ में जाए बनारस की जनता”

जी हुज़ूर, आम आदमी पार्टी के लोगों को नैतिकता की याद आ रही है; छात्रसंघ चुनावों का एक चर्चित नारा याद आ गया कि “गुंडे ही अब कहने लगे हैं, गुंडागर्दी नहीं चलेगी”

(देश मंथन, 31 जनवरी 2015)

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