लिबरल खेमा वैश्विक उथल-पुथल से प्रफुल्लित क्यों है?

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बोरिस जॉनसन, श्रीलंका, शिंजो आबे

उनके हर्ष का विषय तीन वैश्विक घटनाएँ हैं। पहली है यूके के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन का इस्तीफा, दूसरी घटना है जापान के पूर्व प्रधानमंत्री शिंजो आबे की हत्या और तीसरी सबसे महत्वपूर्ण घटना है श्रीलंका का दीवालिया होना और राष्ट्रपति आवास पर आम जनता का नियंत्रण होना!

भारत का कथित उदार (लिबरल) वर्ग कुछ अजीब मानसिकता का अब होता जा रहा है। वह विश्व के स्तर पर घटने वाली हर घटना में यह देखता है कि इसमें प्रधानमंत्री मोदी को कहाँ नीचा दिखाया जा सकता है, या फिर भारत सरकार के खिलाफ क्या बोला जा सकता है, या फिर क्या कुछ ऐसा है जिसके कारण देश को नीचा दिखाया जाये। नूपुर शर्मा के मामले में जब मध्य-पूर्व के इस्लामिक देशों ने अचानक भारत के विरुद्ध अभियान चलाया तो ये उदारवादी (लिबरल) भारत के अपमान के साथ खड़े हो गये।

तीन वैश्विक घटनाओं पर लिबरल हर्ष

इस बार उनके हर्ष का विषय तीन वैश्विक घटनाएँ हैं। पहली है यूके के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन का इस्तीफा, दूसरी घटना है जापान के पूर्व प्रधानमंत्री शिंजो आबे की हत्या और तीसरी सबसे महत्वपूर्ण घटना है श्रीलंका का दीवालिया होना और राष्ट्रपति आवास पर आम जनता का नियंत्रण होना! ये तीन घटनाएँ इसलिए उन्हें हर्षा नहीं रही हैं कि उन्हें इससे व्यक्तिगत लाभ हो रहा है, बल्कि उन्हें इस कल्पना से हर्ष हो रहा है कि काश ऐसी घटनाएँ भारत में भी हों और नरेंद्र मोदी एवं इस बहाने हिंदुओं की सरकार गिर जाये।

बोरिस जॉनसन के इस्तीफे पर मोदी की चर्चा क्यों?

बोरिस जॉनसन ने पिछले दिनों जेसीबी का प्रचार किया था, जिसे लेकर कथित रूप से दक्षिणपंथी युवकों ने हर्ष व्यक्त किया था। और भी कई कारण थे, जिनके कारण यहाँ का भी लिबरल जगत जॉनसन का विरोधी था, कथित रूप से उन्हें भी उस वामपंथी समूह का समर्थन प्राप्त नहीं था, जो स्वयं को हर प्रकार की आजादी का ठेकेदार मानता है।

तो जब मंत्रियों के सामूहिक इस्तीफों के चलते बोरिस जॉनसन ने इस्तीफ़ा दे दिया है, तो यहाँ पर लिबरल जगत के दिल में लड्डू फूट रहे हैं और वे पूछ रहे हैं कि यहाँ पर कब ऐसा समय आयेगा जब नरेंद्र मोदी भी इस्तीफ़ा देंगे? शायद इसलिए, कि उस पूरे वर्ग को लगता है कि भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बोरिस जॉनसन के निकट हैं।

शिंजो आबे की हत्या में भी खोज लिया राजनीतिक अवसर

दूसरी घटना तनिक गंभीर है, क्योंकि वह किसी की हत्या से संबंधित है। भारत के अभिन्न मित्र माने जाने वाले और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नजदीकी दोस्त रहे जापान के पूर्व प्रधानमंत्री शिंजो आबे की हत्या कर दी गयी है। ह्त्या का कारण क्या था, यह अभी तक पूरी तरह से स्पष्ट नहीं हो पाया है। परंतु जापान जैसे देश में इस स्तर के नेता की हत्या, अर्थात् यह वैश्विक स्तर पर अत्यंत गंभीर घटना है। यही कारण था कि समूचा विश्व स्तब्ध रह गया था।

परंतु भारत में इस मृत्यु पर भी राजनीति हुई और भारत में विपक्ष ने शर्मनाक हरकत करते हुए यह जताने करने का प्रयास किया कि इस घटना में पेंशन न पाने वाले व्यक्ति ने हत्या की है, इसलिए पेंशन का न मिलना इसका कारण है। कांग्रेस के कई नेताओं ने ऐसा किया। कांग्रेस के नेता सुरेंद्र राजपूत ने कुछ ऐसा ही ट्वीट किया था, हालाँकि बाद में उसे डिलीट भी कर दिया। परंतु क्या ये नेता अग्निवीर में सम्मिलित होने वाले युवाओं को भड़का रहे हैं?

खैर, यह तो समय के गर्भ में है कि शिंजो आबे की हत्या का उद्देश्य पता लग पाये, परंतु इस बहाने उदारवादियों और विपक्ष का अग्निवीर योजना को कोसना हैरानी में डालता है!

श्रीलंका जैसा उपद्रव अपने यहाँ मचने की कामना

फिर तीसरी सबसे महत्वपूर्ण घटना पर आते हैं, जो पड़ोसी देश श्रीलंका से संबंधित है। वहाँ के राष्ट्रपति देश छोड़ कर शायद भाग गये हैं। जनता ने राष्ट्रपति भवन पर कब्जा कर लिया है। इसी समाचार को लेकर उदारवादियों का खेमा उत्साहित है, जो यह कह रहा है कि अहंकार नहीं करना चाहिए, जनता ही सर्वोपरि होती है। नहीं तो श्रीलंका जैसा हाल होता है!

ऐसा कहते समय उनका स्पष्ट संकेत भारत की ओर होता है। परंतु क्या भारत की स्थितियाँ वास्तव में श्रीलंका जैसी हैं? क्या भारत में भी एक ही परिवार का राज है? क्या भारत में भी परिवार विशेष भ्रष्टाचार कर रहा है? क्या भारत में चीन का इतना निवेश है, जैसा श्रीलंका में था?

इन तीनों बातों का स्पष्ट उत्तर है – नहीं! भारत ने परिवार विशेष को पहले ही विपक्ष में धकेल दिया गया है और उन्होंने तमाम तरह के जो भ्रष्टाचार किये थे, उन पर न्यायालयों में मुकदमे चल रहे हैं।

ऐसे में तीनों ही देशों में जो परिस्थितियाँ हैं और थीं, वे भारत से एकदम अलग थीं। तो ऐसे में भारत के उदारवादी क्यों इन घटनाओं पर प्रसन्नता व्यक्त करते हुए ऐसी परिस्थितियाँ भारत में आने की कामना कर रहे हैं, यह समझ से परे है!

या फिर इनका मूल चरित्र ही भारत विरोधी हो गया है?

(देश मंथन, 11 जुलाई 2022)

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