नेशनल हेराल्ड मामले का फैसला आ सकता है लोकसभा चुनाव से पहले

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ईडी ने तो एक तरह से मामले को छोड़ दिया था। ईडी की पकड़ में यह मामला तब आया, जब कोलकाता में हवाला कारोबार करने वाली एक शेल कंपनी के यहाँ एजेएल और यंग इंडिया की हवाला लेन-देन की प्रविष्टि (एंट्री) मिली, और उसके तार ईडी की जाँच में गांधी परिवार तक गये। इसलिए गांधी परिवार से पूछताछ के बिना चार्जशीट दाखिल नहीं हो सकती है। राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खड़गे से पूछताछ हो चुकी है और अब सोनिया गांधी से पूछताछ हो रही है।

भारत में कुछ लोग चमत्कार की आशा करते हुए कर्म करने से बचते हैं और कुछ अतीतजीवी होते हैं। वे नहीं देखते कि हर मामले में नेता, हैसियत और पार्टी के संगठन का स्तर अलग होता है। इंदिरा गांधी बेलछी इसलिए गयी थीं, क्योंकि वहाँ दलितों की सामूहिक हत्या हुई थी। सोनिया गांधी के विरुद्ध नेशनल हेराल्ड मामले में भ्रष्टाचार के आरोप में पूछताछ हुई, यहाँ कोई सामाजिक न्याय का काम या आजादी का आंदोलन नहीं हो रहा था। इसलिए सवाल यह है कि उनके समर्थन में आंदोलन या प्रदर्शन क्यों हो रहे हैं?

देश के एक परिवार को लगता है कि वे देश की आम जनता और कानून से ऊपर हैं, वे कुछ गलत कर ही नहीं सकते, तो उनके विरुद्ध आरोप कैसे लग सकते हैं, या जाँच कैसे हो सकती है। इसी सोच के कारण ये आंदोलन हो रहे हैं। अदालत में नेशनल हेराल्ड का मामला वर्ष 2012 से चल रहा है और यह दायर भी तब हुआ था, जब केंद्र में कांग्रेस की यूपीए सरकार थी। तो यह राजनीतिक दुश्मनी निकालना (वेंडेटा) भी नहीं है। दूसरी बात कि सोनिया गांधी और राहुल गांधी इन मामलों में दोषी हैं या नहीं, इसका निर्णय कोई सरकार या पार्टी नहीं करेगी, बल्कि अदालत करेगी। तो ये सारे प्रदर्शन वगैरह सहानुभूति बटोरने की कोशिशें हैं। जब लगा कि इससे नहीं होगा तो फिर सोनिया गांधी के समर्थक उनकी उम्र और स्वास्थ्य का हवाला दे रहे हैं। पर यह तब सोचना चाहिए था, जब यह सब किया गया था। उस समय उन्हें लगा होगा कि हम पर कौन हाथ डाल सकता है।

नेशनल हेराल्ड मामले की जाँच में इतनी देरी क्यों?

यह मामला 2012 से ही चल रहा है। बहुत लोगों को नाराजगी है कि इसमें देरी क्यों लग रही है। कांग्रेस के लोग भी चाहते हैं कि निपटारा जल्द हो। पर मोदी सरकार सब कुछ सहजता से होने दे रही है, उसे कोई जल्दबाजी नहीं है। हमारे देश की न्यायप्रणाली में ऐसी देरी स्वाभाविक है, जहाँ पाँच करोड़ मामले 10 साल, 20, 50 साल से लंबित पड़े हैं।

ईडी ने तो एक तरह से मामले को छोड़ दिया था। ईडी की पकड़ में यह मामला तब आया, जब कोलकाता में हवाला कारोबार करने वाली एक शेल कंपनी के यहाँ एजेएल और यंग इंडिया की हवाला लेन-देन की प्रविष्टि (एंट्री) मिली, और उसके तार ईडी की जाँच में गांधी परिवार तक गये। इसलिए गांधी परिवार से पूछताछ के बिना चार्जशीट दाखिल नहीं हो सकती है। राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खड़गे से पूछताछ हो चुकी है और अब सोनिया गांधी से पूछताछ हो रही है।

इससे पहले आयकर विभाग और सीबीआई की जाँच को हर कदम पर रोकने की कोशिशें की गयी थीं। निचली अदालत के फैसले को उच्च न्यायालय में चुनौती दी गयी, वहाँ राहत नहीं मिली तो सर्वोच्च न्यायालय में गये कि इसे खारिज कर दिया जाये, पर सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि आप आयकर अपीलैट ट्रिब्यूनल में जायें। किसी न्यायालय से उन्हें राहत नहीं मिली। पर इस सबमें समय तो नष्ट होता है।

क्या मामला लंबा खिंचने से मिल रहा है गांधी परिवार को लाभ?

मुकदमा दायर करने वाले सुब्रह्मण्यम स्वामी भी चाहते हैं कि जल्दी फैसला हो। उनकी एक माँग यह है कि एजेएल और यंग इंडिया के बही-खाते उन्हें दिये जायें, जिसका कांग्रेस और गांधी परिवार की ओर से विरोध हो रहा है। फिर दो साल कोरोना में निकले, जिस दौरान कुछ खास नहीं हुआ। यह देरी दोधारी तलवार जैसी है। अगर लोगों को भरोसा हो कि आप ईमानदार हैं और आपको परेशान किया जा रहा है, तो इससे आपको सहानुभूति मिलती है। अगर लोगों के मन में हो कि कुछ तो गड़बड़ है, तो इसका नुकसान होता है। और कांग्रेस एवं गांधी परिवार दोनों की भ्रष्टाचार के मामले में कोई विश्वसनीयता बची नहीं है। ऐसे में मामला जितना लंबा खिंचेगा, उतना उनका राजनीतिक नुकसान होगा। पर अब यह मामला एक सिरे लगने वाला है, लेकिन इसमें कितना समय लगेगा, यह अपने देश की न्याय व्यवस्था में बताना बड़ा मुश्किल है।

वहीं अगर सरकार जान-बूझ कर लटकाये, अगर उसके पास कोई सबूत नहीं है और मामला लंबा खींचेंगे, तो उसका नुकसान होगा। कुल मिला कर यह राजनीतिक मुकदमा बन गया है। अगर केंद्रीय एजेंसियाँ साबित नहीं कर पायीं कि उनके खिलाफ अपराध का कोई मामला बनता है, तो इसका फायदा कांग्रेस को मिलेगा और नुकसान भाजपा को होगा।

क्या इंदिरा गांधी को मिली सहानुभूति से आशंकित है मोदी सरकार?

ऐसा नहीं लगता कि मोदी सरकार के मन में 1977 का भूत बैठा है। एक तो इंदिरा गांधी और सोनिया गांधी की तुलना नहीं हो सकती। तुलना ही करनी हो तो इंदिरा गांधी के साथ शाह कमीशन का मामला देख लें, और फिर राजीव गांधी के साथ बोफोर्स में जो हुआ, वह देख लें। बोफोर्स में यह साबित हुआ कि उसमें दलाली ली गयी, पर राजीव गांधी के खिलाफ कुछ साबित नहीं हुआ। फिर भी उसकी सहानुभूति राजीव गांधी को नहीं मिली। फायदा-नुकसान इस पर निर्भर करता है कि लोगों में धारणा क्या बन रही है। बोफोर्स के कारण 1989 में कांग्रेस बुरी तरह से हार गयी। इंदिरा गांधी को सहानुभूति इसलिए मिली क्योंकि उनकी गिरफ्तारी बहुत भौंडे तरीके से, बिना किसी तैयारी के हुई। इससे उनको तुरंत जमानत मिल गयी और उनकी गिरफ्तारी का जनता पार्टी को कोई फायदा नहीं हुआ। जनता पार्टी के अंदर की लड़ाई के कारण और समस्या पैदा हुई।

भ्रष्टाचार की पर्याय बन गयी थी यूपीए सरकार

सोनिया गांधी की पेशी पर प्रदर्शन वगैरह से कांग्रेस की जगहँसाई ही हो रही है। अपने 10 साल में यूपीए सरकार इस तरह भ्रष्टाचार की पर्यायवाची बन गयी थी कि अगर झूठा आरोप भी लगाया जाता तो जनता को लगता कि सही ही होगा। अगर दिल्ली के मंत्री सत्येंद्र जैन का मामला देखें तो पाँच साल तक जाँच में आयकर विभाग को कुछ नहीं मिला, पर अचानक ईडी की जाँच में वे जेल चले गये। याद करें कि 1979 के अमरीका के प्रसिद्ध शेयर घोटाले की जाँच में किसी के खिलाफ कुछ नहीं मिला, पर आखिर में सभी आरोपी आय से ज्यादा संपत्ति के मामले में पकड़े गये।

कभी-कभी मुख्य आरोप में सबूत नहीं मिलते, पर इस बार दोनों हैं। आयकर विभाग और ईडी दोनों की जाँच में सवाल खड़े हुए हैं। कांग्रेस के पास 90 करोड़ रुपये का ऋण देने के लिए पैसा कहाँ से आया, वह 50 लाख रुपये में माफ क्यों किया गया, 5,500 शेयरधारकों की कंपनी का अधिग्रहण दूसरी कंपनी द्वारा हो गया, पर इस मामले में शेयरधारकों की बैठक नहीं बुलायी गयी, पाँच लाख रुपये वाली कंपनी को 90 करोड़ के ऋण और 2,000 करोड़ रुपये की संपत्तियों वाली कंपनी कैसे मिली, आदि। कुल मिला कर लगता है कि 2024 के चुनावों से पहले इसमें फैसला आ सकता है।

कांग्रेस का जो कहना है कि केस तो बंद हो गया था और सरकार कहीं से वापस उखाड़ लायी है, दरअसल सरकार भले ही बदली है पर व्यवस्था (सिस्टम) अभी उन्हीं की है, जिसमें बदलाव में समय लगेगा। यह मामला तो हवाला ऑपरेटरों ने आगे बढ़ाया है, जिसके बाद ईडी इस मामले में लौटी।

क्या सोनिया गांधी या राहुल गांधी की गिरफ्तारी भी होगी?

राहुल गांधी से लंबी पूछताछ के बाद सोनिया गांधी से पहले दिन केवल दो घंटे पूछताछ हुई, क्योंकि उनकी सेहत का ध्यान रख कर ईडी ने संवेदनशीलता बरती। साथ में प्रियंका वाड्रा दो बार आकर दवाएँ देकर गयीं। दो डॉक्टर और एंबुलेंस तैयार रखे गये थे। आगे पूछताछ कितनी लंबी चलेगी, यह इस पर निर्भर है कि ईडी को जानना क्या है। उन्हें जो जानना है, वह मिल जाये तो बात एक घंटे में भी खत्म हो सकती है। ईडी नहीं दिखाना चाहता कि वह विपक्ष का उत्पीड़न कर रहा है। राहुल गांधी या मल्लिकार्जुन खड़गे ने जो जवाब दिये थे, उनसे मिलान में कोई विसंगति होने पर सोनिया गांधी से पूछताछ की जायेगी। गांधी परिवार में से कोई गिरफ्तारी होगी या नहीं, इसका फैसला ईडी ही करेगी। हो सकता है कि यदि जाँच में सहयोग न हो तो गिरफ्तारी हो। पर राजनीतिक दखल न के बराबर है।

(देश मंथन, 26 जुलाई 2022)

(प्रदीप सिंह से बातचीत पर आधारित। यह पूरी बातचीत आप देश मंथन के यूट्यूब चैनल पर देख सकते हैं – https://www.youtube.com/watch?v=KG2uSV0sldU)

देखें देश मंथन पर प्रदीप सिंह के अन्य आलेख।

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