सोनाली मिश्र
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सोनाली मिश्रा स्वतंत्र अनुवादक एवं लेखिका हैं। उनके कहानी संग्रह 'डेस्डीमोना मरती नहीं' को उत्तर प्रदेश का सम्मानित प्रोफेसर महेंद्र प्रताप स्मृति सम्मान प्राप्त हो चुका है। उनका दूसरा कहानी संग्रह है 'लहरें अब बोलती नहीं'। हाल में प्रकाशित उनका उपन्यास 'महानायक शिवाजी' काफी चर्चित हुआ है। वे जन गण के राष्ट्रपति, मूल्यों की पुनर्स्थापना सहित कई पुस्तकों का अनुवाद कर चुकी हैं।
नीरज चोपड़ा की जीत पर लिबरल समाज दुखी क्यों हुआ?
वामपंथियों को नीरज चोपड़ा से ही इतनी नफरत क्यों हो रही है? वह इसलिए क्योंकि नीरज चोपड़ा और मीराबाई चानू जैसे लोग उनके वह मिथक तोड़ रहे हैं, जो वह इतने वर्षों से गढ़ते हुए आ रहे थे।
राज कुंद्रा को लेकर लिबरल समाज की उदारता के मायने
बॉलीवुड और लिबरल जमात का सुशांत सिंह राजपूत की हत्या पर मौन रहना और न्याय की मांग न करना एवं राज कुंद्रा के अपराधों पर चुप्पी साध कर अपराधों के पक्ष में खड़े हो जाना, कहीं-न-कहीं उसके आपराधिक चरित्र को ही दिखाता है। लिबरल समाज तो दिनों-दिन नीचे गिर रहा है।
फिर से चर्च में यौन स्कैंडल और फिर से चुप्पी!
हालाँकि अब निथिराविलाई पुलिस स्टेशन में मामला दर्ज हो गया है और आरोपी जेल में है। यह ठीक है कि मामला दर्ज हो गया है, पर प्रगतिशीलों की वाल पर शांति है। मंदिर के भक्त की किसी गलत हरकत पर मंदिर को कोसने वाली प्रगतिशील जमात पादरी के ही सेक्स स्कैंडल में पकडे जाने पर चुप है, कोई हल्ला नहीं है।
भारत का कानून न मानने की औपनिवेशिक जिद
कार्ल रॉक एक विदेशी है, जो टूरिस्ट वीजा पर भारत आया था। उसने हरियाणा में शायद एक राजनीतिक परिवार में शादी की है। वह यहाँ वीडियो बना कर यूट्यूब पर डाल करके पैसे भी कमा रहा है। पर वह एक और काम कर रहा था। वह भारत की चुनी हुई सरकार का विरोध कर रहा था।
मनसुख मांडविया की अंग्रेजी का उपहास करती गुलाम मानसिकता
औपनिवेशिक मानसिकता उन लोगों की है, जो केवल अंग्रेजी भाषा की जानकारी को ही ज्ञान का पर्याय मानते हैं। वे दरअसल ईसाई मानसिकता से बाहर नहीं आ पाये हैं, स्वतंत्र नहीं हो पाये हैं। वे इस बात को स्वीकार कर ही नहीं पाये हैं कि देशज भाषा भी शासन का पर्याय हो सकती है।
हिस्से में माँ आयी तो फिर जायदाद विवाद कैसा?
पहले “माँ” शब्द को बेचने वाले मुनव्वर राना अब नागरिकता संशोधन के दौरान लखनऊ में बेटियों द्वारा किये गए विरोध के पीछे खड़े हैं। वे कह रहे हैं कि पुलिस उन्हें इसलिए फँसा रही है, क्योंकि उनकी बेटियों ने नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में प्रदर्शन किया था। अभी तबरेज फरार है और मुनव्वर राना के भाई इस बात का शुक्र मना रहे हैं कि सच का पता चला, नहीं तो वे सब फंस जाते।
पश्चिम में नायक खोजने की औपनिवेशिक गुलाम मानसिकता
हम कितने मानसिक गुलाम हैं, हम इससे समझ सकते हैं कि क्रिस्टियाना रोनाल्डो के एक कदम के कारण मीडिया उनकी वाहवाही से भरा है कि उन्होंने कोक की दो बोतलें गिरा दीं! अर्थात्, उसे अस्वीकार कर दिया। जबकि मजे की बात यही है कि वे न केवल कोक बल्कि नॉन-वेज ब्रांड केएफसी का भी विज्ञापन कर चुके हैं।
वैश्विक बहनापा उन औरतों तक क्यों नहीं जाता?
जिस फेमिनिज्म का राग ये फेमिनिस्ट अलापती हैं, वह मात्र समानता के सिद्धांत पर आधारित है। हाल ही में कई ऐसी घटनाएँ हुई हैं, जब प्रगतिशील फेमिनिस्ट का साझा सिस्टरहुड भुरभुराकर ढह गया है।
नुसरत जहां : कहीं राजनीतिक दाँव-पेंच ही तो नहीं था?
बंगाल चुनावों के मध्य ही यह बात बार-बार उभर कर आ रही थी कि तृणमूल कांग्रेस की सांसद नुसरत जहां और उनके पति निखिल...
फेमिनिज्म के नाम पर हिंदू द्वेष
जैसे ही हमारे सामने फेमिनिज्म शब्द आता है, हम ठहर कर सोचने लगते हैं कि आखिर इस शब्द का अर्थ क्या है? और यह...