न ड्रीम, न क्रीम बजट, बस बिजनेस थीम बजट!

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कमर वहीद नकवी  :

न ड्रीम बजट, न क्रीम बजट, यह ‘ईज आफ डूइंग बिजनेस’ का थीम बजट है। वित्त मंत्री ने अपने बजट भाषण में कम से कम दस बार ‘ईज आफ डूइंग बिजनेस’ की बात कही और बजट भाषण के ठीक बाद अपने इंटरव्यू में जेटली ने कहा कि जब हम उद्योगों से कमाई करेंगे, तभी तो गरीब की मदद हो पायेगी।

इसलिये बजट में अगर पंचायत राज की कोई चर्चा नहीं और गाँव, किसान और गरीब पर कोई ज्यादा जोर नहीं, तो कोई हैरानी की बात नहीं।

बजट का पूरा फोकस विदेशी और घरेलू निवेश बढ़ाने, इंफ़्रस्ट्रक्चर, टैक्स सुधारों, बाजार और बैंकिंग सुधारों, बैंकिंग का दायरा बढ़ाने और लघु उद्यमियों को बढ़ावा देने पर है, ताकि अगले कुछ वर्षों में औद्योगिक विकास की गति तेजी से बढ़ायी जाये। अगर आप बजट की कुछ घोषणाओं को बारीकी से देखें, तो चीजें साफ होना शुरू हो जायेंगी।

मिसाल के तौर पर कारपोरेट टैक्स को अन्तर्राष्ट्रीय पैमानों के अनुकूल बनाने की घोषणा ताकि विदेशी कम्पनियों की भारत में आने को लेकर हिचक खत्म हो। इसके लिए कर की दरें कम की जायेंगी और कर बचाने के लिए उपलब्ध कराये गये कुछ प्रावधान खत्म किये जायेंगे। कुल मिला कर करों की प्रक्रिया को सीधा और सरल बनाने की कोशिश है। सर्विस टैक्स बढ़ा कर 14% किया गया है, ताकि 2016 में जब जीएसटी (गुड्स ऐंड सर्विसेज़ टैक्स) लागू किया जाये तो लोगों को अचानक बहुत ज्यादा धक्का न लगे। जीएसटी में यह दर बढ़ कर 16% या उससे ज्यादा भी हो सकती है।

इसी तरह बैंकिंग सुधारों में कुछ बड़ी घोषणाएँ की गयी हैं। जहाँ सरकारी बैंकों का प्रबन्धन सुधारने के लिए एक स्वायत्त बैंक बोर्ड बनाने की घोषणा की गयी है, वहीं रिजर्व बैंक के अधिकारों में कटौती कर उसे मुद्रा नीति और नियामक निगरानी तक ही सीमित करने का प्रस्ताव है। छोटे उद्यमियों को वित्तीय संसाधन मुहैया कराने के लिए ‘मुद्रा बैंक’ का प्रस्ताव है, ताकि अर्थव्यवस्था के विकास में उनकी भागीदारी बढ़ सके। डाक घरों को बैंकिंग उपकरणों में बदल कर बैंकिंग के दायरे को दूरदराज तक पहुँचाने का प्रस्ताव है। निवेश बढ़े और मध्यम वर्ग निवेश के लिए मजबूर हो, इसलिए आय कर में छूट देने के बजाय पेंशन फंड में निवेश की सीमा पचास हजार रुपये और बढ़ा दी गयी। टैक्स बचाने के लिए मध्य वर्ग को इसकी शरण लेनी होगी और सरकारी खजाने में आसानी से ज्यादा पैसा आ जायेगा।

किसानों के लिए एक राष्ट्रीय कृषि बाजार बनाने और राष्ट्रीय ग्रामीण कोष बनाने की बात कही गयी है। गरीबों की सामाजिक सुरक्षा के लिए दुर्घटना बीमा, जीवन बीमा और पेंशन योजनाओं की घोषणा की गयी है।

कुल मिला कर अर्थव्यवस्था के इंजन को निवेश, उद्योग, उत्पादन, बैंकिंग के ईंधन से चलाने की थीम को लेकर वित्त मंत्री चले हैं और अब तक की परम्परा से बिलकुल अलग रास्ता उन्होंने पकड़ा है। यही बजट की मुख्य थीम है और यही बजट की समझ भी है कि जब उद्योग धन्धे बढ़ेंगे, उत्पादन बढ़ेगा, इंफ़्रास्ट्रक्चर बढ़ेगा, अर्थव्यवस्था बढ़ेगी तो उसमें सबका विकास होगा, गरीबों का भी विकास होगा। इसीलिये मनरेगा जैसी कुछ बातों को छोड़ कर गरीबों के बारे में बजट ज्यादा बात नहीं करता! पूरे बजट भाषण में मैंने केवल एक जगह एससी/एसटी शब्द का उल्लेख सुना, जब वित्तमंत्री ने मुद्रा बैंक की बात करते हुए कहा कि इससे छोटे उद्योग-धन्धे और सेवाएँ चलाने वालों को बड़ा फायदा होगा, जिनमें साठ फीसदी से ज्यादा एससी/एसटी हैं, जिन्हें सहायता देने में प्राथमिकता दी जायेगी। एक जगह ‘माइनारिटीज’ शब्द का भी उल्लेख आया, जब उन्होंने ‘नयी मंजिल’ योजना की घोषणा की। अपने भाषण में जेटली ने करीब 60 बार ‘इन्वेस्टमेंट’ शब्द का उल्लेख किया, इससे अन्दाजा लगाया जा सकता है कि बजट की दिशा क्या है।

बहरहाल, बजट की सबसे अच्छी बात काले धन के खिलाफ ठोस कार्रवाई का इरादा है। नकद लेन-देन को हतोत्साहित करने और क्रेडिट व डेबिट कार्ड से लेनदेन को प्रोत्साहित करने की योजना और विदेशों में जमा सम्पत्ति छिपाने, कर चोरी करने और बेनामी सम्पत्ति रखने के ख़िलाफ़ कड़े क़ानून लाने की घोषणा का स्वागत किया जाना चाहिये। लेकिन राजनीतिक दलों को मिलने वाले काले धन के चंदे पर सरकार की चुप्पी जरूर रहस्यमय है। बिहार और पश्चिम बंगाल में चुनाव होनेवाले हैं और वहाँ बीजेपी की महत्वाकाँक्षाएँ तेजी से बढ़ी हैं, तो अगर इन राज्यों के लिए बजट में विशेष सहायता का एलान हो, तो आश्चर्य कैसा?

(देश मंथन, 02 मार्च 2015)

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