अखिलेश शर्मा, वरिष्ठ संपादक (राजनीतिक), एनडीटीवी :
बात तब की है जब नितिन गडकरी बीजेपी अध्यक्ष थे और उनका फिर अध्यक्ष बनना करीब-करीब तय था।
पार्टी महासचिव रविशंकर प्रसाद को एस एस अहलूवालिया के बाद राज्य सभा उपनेता बना दिया गया था। एक व्यक्ति-एक पद सिद्धांत के आधार पर उन्होंने महासचिव पद छोड़ा और गडकरी की टीम में उनकी जगह नये महासचिव के आने के कयास लगने लगे। बहुत कुरेदने पर पता चला कि गडकरी की टीम में आने वाले नये महासचिव होंगे अमित शाह।
हालाँकि तब ऐसा नहीं हो पाया। जनवरी 2013 में गडकरी फिर अध्यक्ष नहीं बन सके। राजनाथ सिंह ने पार्टी की कमान संभाली। अमित शाह को महासचिव बनाया गया और उत्तर प्रदेश की जिम्मेदारी दी गयी। इसी के साथ तय हो गया था कि नरेंद्र मोदी न सिर्फ बीजेपी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार होंगे, बल्कि उत्तर प्रदेश से भी चुनाव लड़ेंगे।
बीजेपी के लिए पंद्रह साल से बंजर पड़ी उत्तर प्रदेश की धरती पर कमल खिलाना आसान काम नहीं है। खासतौर से ऐसे व्यक्ति के लिए तो नहीं जिसने गुजरात के बाहर काम न किया हो। गुजरात के पिछले तीन विधानसभा चुनावों में अमित शाह ने बतौर रणनीतिकार अपनी छाप छोड़ी है। राज्य में उम्मीदवारों के चयन से लेकर मुद्दे तय करने तक सब में शाह की बड़ी भूमिका रही है। सोहराबुद्दीन फर्जी मुठभेड़ मामले में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के मुताबिक जब उन्हें गुजरात से दूर रहने को कहा गया तो उन्होंने उसका इस्तेमाल दिल्ली में रह कर मोदी के लिए जमीन तैयार करने में किया।
अमित शाह पिछले दस महीनों से उत्तर प्रदेश में लगे हुए हैं। आज जनमत सर्वेक्षणों में भविष्यवाणी की जा रही है कि उत्तर प्रदेश में बीजेपी कम से कम चालीस सीटें जीत सकती है। ऐसा होता है या नहीं, ये कह पाना अभी मुश्किल है लेकिन ये तय है कि अमित शाह के उत्तर प्रदेश में जाने के बाद वहाँ नरेंद्र मोदी के पक्ष में अलग तरह का माहौल बनना ज़रूर शुरू हुआ है।
यूपी का प्रभारी बनने के बाद अमित शाह ने राज्य का दौरा शुरु किया। वो सभी 62 जिलों में जा चुके हैं। इन दौरों में शाह ने कार्यकर्ताओं और नेताओं से व्यक्तिगत तौर पर मिलना शुरू किया। शाह रात को किसी होटल या गेस्ट हाऊस में रुकने के बजाये कार्यकर्ताओं के घरों में ही रुकते थे। इस तरह उन्होंने जमीनी स्तर पर संवाद कायम किया। बूथ स्तर पर कार्यकर्ताओं की टीम खड़ी की। नेताओं-कार्यकर्ताओं को नसीहत दी कि मोदी के नाम को घर-घर तक पहुँचाएँ। वो ये कहते रहे कि चुनाव मोदी के नाम पर ही लड़ा जायेगा। मोदी की रैलियों को कामयाब बनाने के लिए सबको साथ लिया। नतीजा ये रहा कि उत्तर प्रदेश में मोदी की हर रैली पिछली रैली से बड़ी हुई।
लेकिन उम्मीदवारों के चयन में देरी और कुछ उम्मीदवारों के गलत चयन के कारण शाह के फैसलों पर सवाल उठने लगे हैं। जगदंबिका पाल को कांग्रेस से लाकर डुमरियागंज से, एस पी सिंह बघेल को बीएसपी से लाकर फिरोजाबाद से और धर्मेंद्र कुशवाहा को समाजवादी पार्टी से लाकर आंवला से टिकट देना, स्थानीय कार्यकर्ताओं को रास नहीं आ रहा है। बिजनौर में ऐन वक्त पर उम्मीदवार बदलना पड़ा है। कई सीटों पर उम्मीदवारों के खिलाफ प्रदर्शन हुए हैं और कई बड़े नेताओं ने मुंह फुला लिया है। ये भी कहा गया है कि टिकट बंटवारे में पार्टी अध्यक्ष राजनाथ सिंह के आगे अमित शाह की नहीं चल सकी।
लेकिन शाह के करीबियों का कहना है कि टिकट बांटने में जानबूझकर देरी की गयी ताकि ज्यादा असंतोष न भड़के। राज्य में लंबे समय बाद बीजेपी के पक्ष में माहौल बना है और कई नेता चाहते हैं कि उन्हें चुनाव लड़ने का मौका मिले। अमित शाह कहते हैं कि सपा-बसपा कई साल पहले अपने उम्मीदवार घोषित कर देते हैं। लेकिन ऐन वक्त पर बदल भी देते हैं। बीजेपी और कांग्रेस ऐसा नहीं कर सकते, इसलिए टिकटों में देरी स्वाभाविक है। बाहर से उम्मीदवार लाने के सवाल पर अमित शाह कहते हैं कि ये संख्या ज्यादा नहीं है। और ऐसे ही लोगों को प्राथमिकता दी गयी है जो विवादित नहीं हैं और अपनी सीटों पर जीत सकते हैं।
नरेंद्र मोदी को बनारस से चुनाव मैदान में उतारना अमित शाह का सबसे बड़ा दांव है। पूर्वांचल में पस्त पड़ी बीजेपी को इससे नयी जान मिलने की संभावना है। इलाके की 27 सीटों पर बीजेपी की नजरें हैं। पार्टी की कोशिश मोदी की उम्मीदवारी से बिहार तक फायदा उठाने की है। बनारस से मोदी को लड़ाना हिंदुत्व के समर्थकों को संदेश देना भी है। मोदी ने अपनी रैलियों में एक बार भी राम मंदिर का जिक्र नहीं किया है। अमित शाह जरूर अयोध्या गये और वहाँ राम मंदिर निर्माण की बात कही। पर उसके बाद से उन्होंने एक बार भी राम मंदिर की बात नहीं की।
मोदी के लिए व्यक्तिगत तौर पर उत्तर प्रदेश बेहद महत्वपूर्ण है। वो जानते हैं कि प्रधानमंत्री बनने का उनका सपना तभी पूरा हो सकता है जब यूपी से पार्टी को नब्बे के दशक जैसी कामयाबी मिले। इसीलिए उन्होंने अपने बेहद करीबी अमित शाह को राज्य की जिम्मेदार दी है। अगर यहाँ कामयाबी मिलती है तो शाह भविष्य के लिए पार्टी में बड़ी जिम्मेदारी संभालने के लिए अपनी जगह पक्की कर लेंगे।
(देश मंथन, 24 मार्च 2014)