संदीप त्रिपाठी :
दिल्ली विधानसभा चुनाव प्रचार एक बड़े मंच पर चल रहा राजनीतिक प्रहसन बन चुका है। इसमें मुख्य कलाकार राजनीतिक दलों के नेता और निजी न्यूज चैनल व मीडिया बने हुये हैं। अगर कोई परिदृश्य से गायब है तो वह जनता है।
जाहिर है, यह चुनाव जनता की नुमाइंदगी के लिए जनता के मुद्दों पर नहीं, बल्कि एक-दूसरे पर कीचड़ उछाल कर महज सत्ता हासिल करने के लिए लड़ा जाता दिख रहा है। प्रचार का आखिरी दौर है, जाहिर है पूरा दम-खम लगाना होगा। नतीजा, सर्वेक्षणों के आधार पर माहौल बनाने पर जोर है।
सर्वेक्षणों की विश्वसनीयता
प्रचार के आखिरी दौर में समाचार माध्यम सर्वेक्षणों की धूम मचाये हैं। चैनलों में इन सर्वेक्षणों के आधार पर बहसें हो रही हैं। लेकिन इन सर्वेक्षणों की विश्वसनीयता क्या है? वर्ष 2004 में याद कीजिए, सर्वेक्षण बता रहे थे कि वाजपेयी सरकार दोबारा सत्ता में लौट रही है। हुआ ठीक उलटा। वर्ष 2009 में कांग्रेस के सत्ताच्युत होने और त्रिशंकु लोकसभा के आसार सर्वेक्षणों में जताये जा रहे थे। इस बार भी नतीजे उलट गये। दिसंबर, 2013 में दिल्ली विधानसभा चुनाव में इन चैनलों-अखबारों में अपने सर्वेक्षणों में भाजपा को मोटा-मोटी 33 सीटों के साथ पहले स्थान पर, कांग्रेस को 25 सीटों के साथ दूसरे स्थान पर और आप को 10 सीटों के साथ तीसरे स्थान पर रखा। लेकिन कांग्रेस की दुर्गति हो गयी और आप ने परिणाम उलट दिये। मई, 2014 में लोकसभा चुनाव में भी भाजपा तो छोड़िए, कोई राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) को मिलाकर भी बहुमत देने को तैयार नहीं था। लेकिन जब नतीजे निकले तो भाजपा को अकेले ही बहुमत मिल गया।
यह वाकई सर्वेक्षण ही हैं…
दिल्ली विधानसभा चुनाव में इस बार कुछ चैनल-एजेंसियां हफ्तावार सर्वेक्षण कर रही हैं। पहले सर्वेक्षण होते थे तो कम से कम 10-12 दिन तो लगते ही थे। फिर भी नतीजे सही नहीं आ पा रहे थे। अब एक ही एजेंसी इतनी जल्दी-जल्दी सर्वेक्षण कैसे कर ले रही है? इसी एजेंसी ने लोकसभा चुनाव में सर्वेक्षण कर बताया था कि दिल्ली की सात सीटों में से अधिकांश आप को मिल रही हैं। नतीजे आये तो आप को एक भी सीट नहीं मिली। यह एजेंसी इस बार 35 सीटों पर सर्वेक्षण कर 70 सीटों का हाल बता रही है। एक अखबार ने 3 फरवरी को सर्वेक्षण प्रकाशित किया जिसमें आप को बढ़त पर दिखाया जा रहा है। यह 27 दिसंबर से 1 जनवरी के बीच का सर्वेक्षण है जिसमें हर विधानसभा में 50-50 लोगों से बात की गयी है। 2 फरवरी से 4 फरवरी के बीच पहले जारी पांच सर्वेक्षणों में आप को बढ़त या टक्कर में दिखाया गया तो बाद में आये पांच सर्वेक्षणों में भाजपा को बढ़त पर दिखाया गया। जब इतने सर्वेक्षण हो रहे हैं तो जाहिर है जनता से राय ली जा रही होगी लेकिन किसी से भी पूछिए कि क्या कोई सर्वेक्षणकर्ता उनसे मिला तो जवाब नहीं में मिलेगा।
सर्वेक्षण की रणनीति
2-3 फरवरी को जिस तरह एक के बाद एक सर्वेक्षण सामने आये हैं उससे एक संदेह पैदा होता है। एक माह पहले किये गये सर्वेक्षण भी इन्हीं तारीखों में जारी किये गये और एक हफ्ते पहले किये गये सर्वेक्षण भी इन्हीं तारीखों में जारी किये गये। इन सबके नतीजे एक जैसे (थोड़ा घटा-बढ़ाकर) रखे गये हैं। जाहिर है यह सर्वेक्षण जनता की थाह लेने के उद्देश्य से नहीं बल्कि ऐन मतदान से पूर्व एक खास पार्टी के पक्ष में माहौल बनाने के उद्देश्य से जारी किये गये लगते हैं।
बिना सर्वेक्षण का सर्वेक्षण
4 फरवरी को दिल्ली के लोगों के मोबाइल पर कुछ नंबरों से कॉल आ रही है। इनमें दो नंबर 91-1408903400 और 91-1400820120 हैं। कॉल उठाते ही एक महिला का रिकॉर्डेड स्वर उभरता है और कहता है कि दिल्ली विधानसभा चुनाव के संदर्भ में सर्वेक्षण में हिस्सा लेने के लिए धन्यवाद। आपके जवाब के आधार पर सर्वेक्षण के नतीजे इस प्रकार हैं-आप को इतना फीसदी, भाजपा को इतना फीसदी। अब बिना सवाल पूछे और बिना जवाब लिये यह कौन सा सर्वेक्षण है। साफ है कि यह सर्वेक्षण जनता को भ्रमित करने और माहौल बनाने की कोशिश भर है।
मतदान से पूर्व बहानेबाजी शुरू
मतदान के दिन 7 फरवरी को जनता क्या फैसला देगी, यह तो अलग बात है लेकिन आम आदमी पार्टी ने अभी से बहाने तैयार करने शुरू कर दिये हैं। आप ने आरोप लगाया कि ईवीएम में गड़बड़ी की गयी है। जांच में चार ईवीएम ऐसे मिले जिसमें कोई भी बटन दबाइए, बत्ती भाजपा के सामने जलती है। आप ने यह शिकायत चुनाव आयोग से भी की। लेकिन चुनाव आयोग ने तहकीकात के बाद आप को डपटा और आप को चुनौती दी कि वह इस गड़बड़ी को साबित करे। दरअसल अगर ऐसी गड़बड़ी होगी तो उस बूथ पर सौ फीसदी वोट भाजपा को ही पड़ेंगे और ऐसी स्थिति में पुनर्मतदान कराना होगा। साफ है कि ईवीएम में ऐसी गड़बड़ी कोई पार्टी नहीं कर सकती और इसका फायदा उसे नहीं मिल सकता। चुनाव के दौरान किसी पार्टी का नहीं बल्कि चुनाव आयोग का शासन चलता है और ऐसी गड़बड़ी अगर है तो सीधे तौर पर आयोग ही जिम्मेदार होगा। आप यह बताने में भी असमर्थ है कि उक्त ईवीएम की जांच किसने की और उसे यह सूचना किससे मिली। अगर सर्वेक्षणों के नतीजे जायज होते तो आप को पहले ही बहाने गढ़ने की जरूरत नहीं पड़ती। आमतौर पर यह देखा जाता कि हारने वाला पक्ष इस तरह के आरोप लगाकर अपनी साख बचाने की कोशिश करता है। आप मतदान से पूर्व ही यह आरोप लगा रही है तो क्या यह समझना चाहिए कि आप ने मतदान से पहले ही हार मान ली है?
जाम में फंसा मतदाता
चुनाव जीतने के लिए पार्टियां और प्रत्याशी दिन-रात एक किये हुए हैं और दनादन सर्वेक्षण पर सर्वेक्षण जनता के सामने फेंके जा रहे हैं लेकिन यह जनता कहां है, किन हालात में है, इसकी फिक्र किसी को नहीं। बुधवार को शाम साढ़े छह बजे पांडव नगर से आईटीओ तक इस कदर जाम रहा कि कौन कब अपने गंतव्य पर पहुंचेगा, यह अनुमान कोई नहीं लगा सकता था। हजारों वाहन और दसियन हजार लोग फंसे पड़े थे। इन्हें किसी पार्टी के जीतने-हारने से फर्क नहीं पड़ता, इन्हें समय पर गंतव्य तक नहीं पहुंचने, जाम में व्यर्थ समय गंवाने और बेवजह पेट्रोल फूंकने से फर्क पड़ता है।
(देश मंथन, 05 फरवरी 2015)