संदीप त्रिपाठी :
बिहार विधानसभा चुनाव के लिए पहले चरण का मतदान होने में एक हफ्ते हैं। बीते महीने में विश्लेषक यह आकलन करते रहे कि दोनों प्रमुख चुनावी गठबंधनों, राजद + जदयू + कांग्रेस के महागठबंधन और भाजपा + लोजपा + रालोसपा + हम के राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के बीच बाजी किसके हाथ रहेगी। और यह भी कि तारिक अनवर के नेतृत्व में सपा + राकांपा + जन अधिकार पार्टी (पप्पू यादव) + समरस समाज पार्टी (नागमणि) + समाजवादी जनता पार्टी (देवेंद्र यादव) + नेशनल पीपुल्स पार्टी (पीए संगमा) का गठबंधन धर्मनिरपेक्ष समाजवादी मोर्चा इन दोनों प्रमुख गठबंधनों में कहाँ किसके वोटबैंक में सेंध लगायेगा। और यह भी कि हैदराबाद की राजनीतिक पार्टी ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुसलमीन (एआईएमआईएम) के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी बिहार के सीमांचल क्षेत्र में क्या गुल खिला पायेंगे और इससे किसको नुकसान और किसको फायदा होगा और इनके पीछे कौन है।
जंगलराज और विकास
लेकिन अब जब पहले चरण के मतदान की तारीख पास आने लगी है, मतदाताओं पर मुद्दों का असर पड़ने लगा है। बिहार विधानसभा चुनाव के संदर्भ में अब तक चार मुद्दे आये हैं जिनका मतदान पर असर पड़ने की संभावना है। पहला मुद्दा तो जंगलराज और विकास का था। जंगलराज राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव के मुख्यमंत्रित्व काल की याद दिलाता है। इसी मुद्दे को उठा कर दस साल पहले नीतीश ने भाजपा के साथ मिल कर सरकार बनायी थी। फिर विकास की बातें शुरू हुईं। नीतीश भी सुशासन बाबू के नाम से जाने गये। लेकिन उनके लालू यादव से गठबंधन के बाद विकास का मुद्दा नीतीश के हाथ से धीरे-धीरे फिसलता गया और विकास के मुद्दे पर नरेंद्र मोदी की अपील ज्यादा दिख रही है। यानी बाजी भाजपा के पक्ष में बढ़ती दिखी।
जातिगत जनगणना
दूसरा मुद्दा जातिगत जनगणना बनी। लालू यादव ने पटना में राजभवन तक मार्च किया और कहा कि प्रधानमंत्री मोदी पिछड़ी जाति के दुश्मन हैं। अगर वे हितैषी हैं तो जाति जनगणना की रिपोर्ट सार्वजनिक करके दिखायें। नीतीश कुमार ने दिल्ली में कहा जब सर्वेक्षण कराया गया, गणना करायी गयी तो उसकी रिपोर्ट आनी चाहिए और लोगों को संख्या के बारे में मालूम होना चाहिए और समाज के जो विभिन्न समूह हैं, उनकी आर्थिक स्थिति के बारे में, सामाजिक स्थिति के बारे में जानकारी मिलनी चाहिए। दरअसल भाजपा प्रधानमंत्री के अन्य पिछड़ा जाति के होने का लाभ बिहार विधानसभा में लेना चाहती थी। भाजपा के इसी कार्ड को ध्वस्त करने और जंगलराज के मुद्दे से निपटने के लिए लालू-नीतीश की जोड़ी ने इस मुद्दे को उठाया। जुलाई-अगस्त भर इस पर खूब हँगामा हुआ। इस मुद्दे पर महागठबंधन को बढ़त मिलती दिखी। इसकी काट के लिए केंद्र सरकार ने धर्म आधारित जनगणना के आंकड़े जारी कर दिये।
आरक्षण
तीसरा मुद्दा आरक्षण बना जो जातिगत जनगणना वाले मुद्दे का ही विस्तार था। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने आरक्षण नीति की समीक्षा किये जाने की बात कही थी। राजद सुप्रीमो इस बयान को उठा लिया और जोर-शोर से कहने लगे कि आरक्षण खत्म नहीं होने देंगे। भाजपा समर्थक सफाई देते रह गये कि भागवत जी ने समीक्षा की बात कही है, खत्म करने की नहीं लेकिन लालू अपने अंदाज में इस मुद्दे को बढ़ाते गये। नीतीश भी यहाँ लालू के साथ खड़े हो गये। यानी नीतीश ने विकास के मुद्दे को तिलांजलि दे कर बरास्ते आरक्षण चुनाव जीतने की जुगत भिड़ायी। लालू ने अपने बेटे तेजस्वी यादव के समर्थन में हुई सभा में कह दिया कि ‘इस बार बिहार में चुनाव अगड़ों और पिछड़ों की लड़ाई है।’ हालाँकि इस बयान पर लालू यादव को चुनावी आचार संहिता के तहत नोटिस मिली। उन्होंने एक अन्य जगह यह भी कहा कि फाँसी चढ़ने को तैयार हैं लेकिन पिछड़ों और दलितों का आरक्षण खत्म नहीं होने देंगे। इस मुद्दे के आने के बाद भाजपा इस जाल में फँसी दिखी और बाजी पलट कर महागठबंधन के पक्ष में बढ़ती दिखी।
गोकसी
मतदान बिल्कुल करीब आ जाने पर चौथा मुद्दा उभरा जब उत्तर प्रदेश के नोएडा स्थित बिसाहड़ा गाँव में गोमांस की अफवाह पर भीड़ द्वारा एक मुस्लिम बुजुर्ग अखलाक की हत्या की खबर आयी। लालू प्रसाद यादव ने फिर मुद्दा लपका और बढ़-चढ़ कर बयानबाजी करने लगे। यहाँ चुनावी गणित सीधी थी। आरक्षण के मुद्दे पर पिछड़े मतदाताओं के वोट लेना और गोकसी के मुद्दे पर मुस्लिम मतदाताओं को एकजुट करना। महागठबंधन के चुनाव जीतने के लिए यह बड़ा मारक समीकरण होता। लेकिन बढ़-चढ़ कर बोलने में लालू की जुबान फिसल गयी। उन्होंने गोकसी के मुद्दे पर दो ऐसी बातें कह दीं जो इस समीकरण के दोनों पक्षों को चोट पहुँचा गया। लालू ने कह दिया कि हिन्दू बीफ खाते हैं। इसके बाद यह भी कह दिया कि जो लोग माँस खाते हैं वह ‘सभ्य’ नहीं हैं। पहले बयान से हिन्दू नाराज हुए और दूसरे से मुस्लिम। भाजपा ने इस बयान को जोर-शोर से लपका और इसे लालू द्वारा गोपालकों का अपमान बताया। भाजपा का सीधा निशाना लालू समर्थन यादव समुदाय है जिसे भाजपा अपने साथ लामबंद करना चाहती है। इस मुद्दे पर फिर भाजपा गठबंधन को बढ़त मिलती दिखी।
रणनीति
मतदान से पूर्व आखिरी समय में भाजपा ने गोकसी मुद्दे पर लालू के बयान और विकास के मुद्दे को आगे रखने की रणनीति बना रही है। रणनीति सीधी है, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विकास पर बात करेंगे और प्रदेश स्तर के नेता गोकसी पर लालू के बयान पर हँगामा करेंगे। मोदी की रैलियों के फीडबैक से पता चला है कि युवाओं पर मोदी के विकास का मुद्दा प्रभावी रहा है। इसीलिए पार्टी ने मोदी की रैलियों की संख्या में इजाफे की भी योजना बनायी है। इधर लालू यादव को भी समझ में आ गया है कि गड़बड़ी हो गयी है। उन्होंने कहा कि गोकसी वाले बयान के वक्त शैतान उनकी जुबान पर बैठ गया था। भाजपा नेता इस बयान का भी लाभ अपने पक्ष में लेने की जुगत कर रहे हैं। लालू के बयान पर नीतीश खामोश हैं और सोनिया गांधी नाराज। मतदान से पूर्व स्थिति बिगड़ी देख अब लालू फिर आरक्षण के मुद्दे को हवा देने की तैयारी में हैं। ताजा बयान में उन्होंने कहा कि आरक्षण का दायरा आबादी के हिसाब से बढ़ना चाहिए। यह 49% से आगे की लड़ाई है। यह आरक्षण खत्म करने की बात करते है। उनको चुनौती देता हूँ कि उनकी छाती पर बैठकर अभी निजी क्षेत्र में भी आरक्षण ले कर रहेंगे। अब देखना है मतदान के दौरान मतदाताओं पर कौन सा मुद्दा ज्यादा असर डालता है।
(देश मंथन, 06 अक्तूबर 2015)