उप्र चुनाव तक जनता परिवार का विलय मुश्किल

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Ajay Upadhyayजनता परिवार के छह धड़ों का क्या विलय होगा? विलय की राह में दिक्कतें क्या हैं? विलय अगर हुआ तो कब तक संभावना है? बिहार में जनता दल यू और राष्ट्रीय जनता दल में गठबंधन होगा या नहीं और क्यों? गठबंधन का चुनावों पर क्या असर होगा। देश मंथन की ओर से राजीव रंजन झा ने वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक अजय उपाध्याय से इन मुद्दों पर बात की। पेश हैं इस बातचीत के कुछ अंश…

बिहार में जनता परिवार कहाँ अटक गया?

– जनता परिवार अभी रुका तो नहीं है। देखिये! बिहार चुनाव के बाद ही साफ होगा कि जनता परिवार का क्या भविष्य होगा। लेकिन वो लोग इकट्ठा होकर लड़ेंगे, ऐसा अभी तो दिख रहा 

विलय तो अभी तक नहीं दिख रहा। 

– विलय तो अभी नहीं हो सकता, ऐसा मेरा अनुमान है। मैं अभी कुछ नहीं कह सकता हूँ कि क्या होगा, राजनीति में कभी भी कुछ भी संभव है। लेकिन जो राजनीतिक परिदृश्य है, इसमें अगर जनता परिवार का विलय होगा तो वह बिहार चुनाव के बाद ही होगा। अभी तो वो लोग एक प्लेटफॉर्म पर रहने की तैयारी करेंगे। अगर वो एक प्लेटफार्म पर लड़ने की तैयारी करेंगे तो एक सन्देश जायेगा। हालाँकि सन्देश कभी-कभी नहीं जाता है। आपके दिन अच्छे हैं तो आप लाख मोल-भाव करिये तो कोई दिक्कत नहीं है। लेकिन अगर स्थितियाँ उतनी अनुकूल नहीं है तो दिक्कत होती है कभी-कभी। सन्देश गलत जाता है कि यह लोग सीट के लिए भी मारामारी कर रहे हैं। वो एक इश्यू है कि ये लोग सीट के लिए मोल-भाव करते रहेंगे।

लेकिन मुझे लगता है कि इनमें तालमेल बन जायेगा, क्योंकि अभी इनके पास रास्ता नहीं है। अगर रास्ता नहीं है तो एक ही रास्ता है कि एक प्लेटफॉर्म बनायें, एक प्लेटफॉर्म से लड़ें। लालू कभी मांझी को याद करेंगे, कभी किसी को याद करेंगे। वो इसलिए याद करेंगे ताकि नीतीश पर दबाव बना रहे। जब जनता परिवार बनने की बात थी तो उस समय और इस समय में फर्क यह है कि नीतीश अब मुख्यमन्त्री हैं। मुख्यमन्त्री बनने के बाद परिस्थितियाँ बदल जाती हैं बिलकुल। अब वो सत्ता में हैं। अब उन्हें उतना डर नहीं है कि जितना पहले था, जब वह मुख्यमन्त्री नहीं थे।

वो डर क्या था।

डर ये है कि कौन नेता होगा, किसके लोग अधिक चुनाव लड़ेंगे, जीतेंगे तो कौन मुख्यमन्त्री बनेगा। दूसरा कि पार्टी का चुनाव चिन्ह क्या होगा, कौन अध्यक्ष होगा। अगर मान लीजिये कि चिन्ह साइकिल है तो उत्तर प्रदेश से साइकिल बिहार जायेगी और बिहार में साइकिल हार जायेगी तो उत्तर प्रदेश में चुनाव आने पर कहेंगे कि भाई बिहार में चुनाव तो हार चुके हैं तो यहाँ क्या है। यही बिन्दु है।

क्या चुनाव चिन्ह के चक्कर में ही विलय नहीं कर रहे हैं?

– हाँ। विलय न होने के पीछे दो कारण है। एक तो महत्वाकाँक्षा है और दूसरे कि इस विलय में व्यावहारिक समस्या है। दूसरा कोई अध्यक्ष हो जायेगा तो वह साइकिल लेकर चला जायेगा। अभी तो मुलायम सिंह और इनके परिवार के साथ है। तो जो पार्टी है, वह पार्टी ही गायब हो जायेगी। 2019 में प्रधानमन्त्री बनने की नीयत के बीच में जो बाधायें हैं, वो बाधायें ज्यादा बड़ी बाधायें हैं। यानी बिहार का चुनाव और उत्तर प्रदेश का चुनाव।

प्रधानमन्त्री बनने वाली बात आप मुलायम सिंह के लिए कह रहे हैँ।

– हाँ, हाँ, जनता परिवार का मुखिया तो इन्हीं को बनाया जा रहा है।

आप कह रहे हैं कि चुनाव से पहले विलय संभव नहीं लग रहा है। लेकिन चुनाव के बाद भी विलय आसान होगा क्या। 

– नहीं आसान तो नहीं है। उत्तर प्रदेश के चुनाव तक विलय आसान नहीं है। बिहार नहीं, अगर विलय की कोई संभावना बनती है तो उत्तर प्रदेश के चुनाव के बाद ही बनती है। मुझे लगता है कि समाजवादी पार्टी अपने नेता और अपने चुनाव चिन्ह के आधार पर ही उत्तर प्रदेश के चुनाव में जाना चाहेगी। यदि उसको ऐसा लगता है कि बिहार के इस चुनाव नतीजों के बाद उनको कोई खेल दिखता है तभी वह इकट्ठा होगी। 

अभी बिहार में गठबंधन कैसा बनता हुआ दिख रहा है आपको। 

–  गठबंधन तो हमको लगता है कि अभी मजबूरी है। बिखरते, हारते हुए कई बार इन लोगों ने देखा है। तो मिलकर लड़ने की तैयारी करेंगे एक बार। क्योंकि नीतीश और भाजपा का गठबंधन नहीं है तो कहीं न कहीं इनको फायदा देगा। नीतीश, लालू और कांग्रेस कुल मिलाकर ठीक-ठाक ताकत हैं। 

ताकत तो नीतीश और लालू के पास ही है। कांग्रेस के पास इतनी ताकत है क्या जो वह इस गठबंधन को कुछ सहारा दे पाये?

–  विधानसभा चुनाव होते हैं तो उसमें पाँच और सात हजार वोट भी मायने रखते हैं और यदि कांग्रेस गठबंधन में नहीं जायेगी तो वह सभी सीटों पर चुनाव लड़ेगी। और अगर वह सभी सीटों पर चुनाव लड़ेगी तो एंटी बीजेपी मुद्दों पर ही चुनाव लड़ेगी। और अगर वह एंटी बीजेपी मुद्दे पर चुनाव लड़ेगी तो कांग्रेस का प्रत्याशी कितना ही कमजोर होगा, वह पाँच-दस हजार वोट तो पायेगा ही। अपने निजी संबंधों से ही पा लेगा। और इसी अंतर से विधानसभा चुनाव के नतीजे आते हैं। दो हजार से बीस हजार वोट तक के ही नतीजे अधिकतर विधानसभा चुनाव में आते हैं। तो ऐसी सूरत में कांग्रेस कुछ नहीं करेगी तो वोट काटेगी। और काटेगी तो जनता परिवार का वोट काटेगी। क्योंकि ये सब एंटी बीजेपी प्लेटफॉर्म हैं। तो कांग्रेस संख्यात्मक सपोर्ट नहीं करेगी, कांग्रेस गुणात्मक सपोर्ट- करेगी। सब पार्टियाँ मिलकर रही हैं। बीजेपी अकेले हो गयी है। ये मैसेज काम आते हैं चुनाव में।

तो इस खींचतान में कांग्रेस को मिलेगा क्या?

–  कांग्रेस को कुछ नहीं मिलेगा। 243 सीटें हैं तो उसी में कांग्रेस को 25 सीटें मिलेंगी। 25 का 30 हो सकता है। बस। 

अगर लंबे समय में कांग्रेस में सुधार की बात करें तो…

–  अभी तो लंबे समय की कोई बात नहीं कर रहा। अभी तो बिहार की नतीजे किस हद आते हैं। क्योंकि जो बीजेपी का विजयी रथ निकला था वो विजय रथ दिल्ली में अरविन्द केजरीवाल ने दिल्ली में रोक दिया। यदि दिल्ली के बाद बिहार में बीजेपी जीत जाती है तो दिल्ली का चुनाव अपवाद मान लिया जायेगा। और बिहार के चुनाव को फिर ये लोग मानेंगे की हमारी सफलता है। और अगर बिहार में हार जाते हैं तो वो विजय रथ थमा हुआ सा दिखेगा। तो मुश्किलें बढ़ेंगी। बिहार का चुनाव दरअसल बहुत ही महत्वपूर्ण चुनाव है न केवल बिहार बीजेपी के लिए बल्कि केंद्र सरकार के लिए भी। 

वहीं लालू जो मांझी के साथ मुलाकात करते हैं, उसका क्या मतलब है?

– वो तो सिर्फ नीतीश को डराने के लिए मिलते हैं। 

तो क्या आपको लगता है कि मांझी गठबंधन में नहीं हो सकते?

–  मेरे विचार से नहीं, क्योंकि नीतीश किसी भी हालत में मांझी को अपने गठबंधन में लेकर नहीं आयेंगे।

तो इसका मतलब है वो अलग से ही लड़ेंगे। 

–  या तो वे बीजेपी के साथ लड़ेंगे या फिर अलग से लड़ेंगे। वे एंटी-नीतीश हैं तो वे एंटी नीतीश वोट काटेंगे। 

तो बीजेपी के नजरिये से बेहतर क्या है, वह मांझी के साथ लड़े या अलग से।

–  बीजेपी कह रही है कि हम अकेले ही चुनाव लड़ सकते हैं। वह स्थानीय स्तर पर ही कुछ कर रहे हैं। यह लोग पप्पू यादव के साथ तालमेल बना रहे हैं और उपेंद्र कुशवाहा के साथ भी एक तालमेल बना था। तो ये लोग मिल कर कुछ करेंगे।

तो क्या दो गठबंधनों का मुकाबला होगा या बीजेपी इनसे केवल तालमेल रखेगी? 

–  एनडीए तो लड़ेगा ही। दूसरों के साथ गठबंधन भी हो सकता है और समझौता भी हो सकता है। बीजेपी एक बड़ी पार्टी है और ये दूसरे लोग उसके बराबर नहीं हैं। ये लोग देखेंगे कि हमें कितनी सीट मिलेगी। 

आज की स्थिति में चुनावी संभावनाएँ कैसी लग रही हैं?

–  आज की तारीख में कुछ नहीं कह सकते हैं, क्योंकि जब यह तय हो जायेगा कि कौन कहाँ खड़ा है, बिहार में आकलन तभी किया जा सकता है। 

क्या पप्पू यादव लालू प्रसाद यादव का वोट काटेंगे, और मांझी लालू-नीतीश दोनों का?

–  हाँ। इसलिए अभी आकलन करना थोड़ा कठिन है। जब दोनों (लालू-नीतीश) में तय हो जाये तो ही कुछ होगा। मान लीजिये गठबंधन हो गया, मन मसोस कर रह गये हैं, अंदर से गाली भी दे रहे हैं और समर्थन भी कर रहे हैं तो दूसरी बात होती है। खुशी-खुशी कोई गठबंधन होता है तो उसकी बात ही दूसरी होती है और उसका सन्देश भी अच्छा ही जाता है।

एक और पहलू यह है कि पिछले 10 साल में जो राजनीति बिहार में हुई है, उसके बाद जो लालू के समर्थकों और नीतीश के समर्थकों के बीच एक सामाजिक संघर्ष भी है। 

–  हाँ, इसीलिए कह रहा हूँ कि तालमेल है कहाँ-कहाँ, क्या स्थिति बन रही है, कौन-कौन नेता किसके साथ खड़ा है, यह सब तय होने के बाद ही स्थिति स्पष्ट होगी।

लालू और नीतीश पूरे मन से साथ खड़े हो भी जायें तो क्या उनके समर्थक साथ आ पायेंगे?

–  यह कहना तो बाद की बात है। पहले तो यह समझ में आये कि ये एक साथ खड़े होंगे या नहीं। एक साथ खड़े हो जायेंगे तो देखा जायेगा। पिछले 15-20 साल से ये लड़ते रहे हैं एक-दूसरे से। 

(देश मंथन, 08 जून 2015)

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