नीतीश की उम्मीदवारी, लालू का दाँव, भाजपा की मुश्किल

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संदीप त्रिपाठी : 

राष्ट्रीय जनता दल के सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव की मौजूदगी में जनता परिवार के नामित मुखिया मुलायम सिंह यादव द्वारा बिहार चुनाव में मुख्यमंत्री पद के लिए नीतीश कुमार के नाम का ऐलान कर दिये जाने के बाद बिहार चुनाव में खेमों का परिदृश्य आकार ले चुका है।

एक तरफ राजद-जदयू-कांग्रेस हैं, और इस गठजोड़ के साथ वामदलों के आने की भी संभावना है। दूसरी तरफ भाजपा-रालोसपा-लोजपा हैं। थोड़ी उछल-कूद पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी और राजद से बगावत करने वाले कोसी-सीमांचल इलाके के प्रभावी नेता पप्पू यादव की पार्टियाँ भी मचायेंगी। लेकिन लड़ाई जनता परिवार और भाजपा गठबंधन में ही होनी तय है।

जनता परिवार में सबसे बड़ी ताकत लालू यादव की पार्टी राजद ही है। ऐसे में नीतीश कुमार को नेता मानना उनके लिए मुश्किल दिख रहा था। लेकिन फिलहाल कानूनी पचड़ों में फँसे होने के चलते लालू दौड़ से बाहर हैं। जैसा लालू ने भी स्वीकार किया कि फिलहाल वे कानूनी तौर पर मुख्यमंत्री बनने की स्थिति में नहीं हैं। उनके बच्चे अभी छोटे हैं और तैयार नहीं हैं। ऐसे में भाजपा को बिहार में रोकने के लिए नीतीश कुमार को समर्थन दिया गया है।

क्या यह समर्थन लालू की राजनीति को बौना बना देगा, क्योंकि नीतीश कुमार भले छोटी ताकत हों और राजद के समर्थन से ही मुख्यमंत्री बनने में कामयाब हों, लेकिन नीतीश लालू या राजद को अपने ऊपर हावी नहीं होने देंगे। नीतीश ने साफ किया है कि लालू यादव से समझौता किया गया है, न कि कानून-व्यवस्था से। ऐसी स्थिति में यह देखने वाली बात होगी कि नीतीश राजद के समर्थन से सरकार चलाने के बावजूद कानून-व्यवस्था की स्थिति को कैसे बनाये रख पाते हैं और यह भी देखना महत्वपूर्ण होगा कि नीतीश के नेतृत्व में लालू अपनी राजनीति को किस तरह प्रासंगिक बनाये रखने में सफल होते हैं। हालाँकि लालू यादव ने नीतीश के नाम के ऐलान के बाद मीडिया से खुसुर-फुसुर में कहा भी कि बिहार में जीत के लिए जहर भी पीना पड़ा तो पियेंगे।

बिहार के वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक सुरेंद्र किशोर का मानना है कि परिदृश्य स्पष्ट होने के बाद जनता परिवार का पलड़ा भारी दिखता है। हालाँकि उम्मीद काँटे की टक्कर की ही है। इस स्थिति को पलटने के लिए भाजपा गठबंधन के सामने कोई विकल्प दिखता नहीं है लेकिन भाजपा गठबंधन के नेताओं की क्षमता को हम कम नहीं आँक सकते। चुनाव होने में अभी तीन से चार माह बाकी हैं। इस स्थिति में भाजपा गठबंधन इस परिदृश्य को पलटने के लिए लीक से हट कर कोई दाँव खेलता है तो उसके बारे में अभी कुछ नहीं कहा जा सकता।

इस महागठबंधन के आकार लेने के बाद भाजपा नेता रविशंकर प्रसाद जहाँ इसे मजबूरी और अस्तित्व बचाने के लिए किया गया गठबंधन बता रहे हैं तो भाजपा के संबित पात्रा यह भी दावा कर रहे हैं कि झूठे लोगों के गठबंधन से भाजपा डरने वाली नहीं। पात्रा ने एक बात बड़े मार्के की कही है कि भाजपा का मंतव्य बिहार को बढ़ाना है तो विरोधियों की एकता मोदी को रोकने के लिए है। 

लोजपा नेता रामविलास पासवान कहते हैं कि लालू-नीतीश हाथ में छुरा लेकर साथ आये हैं। कब-कौन किसकी पीठ में छुरा भोंकेगा, यह देखने वाली बात होगी। हालाँकि बयानबाजियाँ तो चलती रहेंगी, लेकिन जदयू और कांग्रेस ने अब भाजपा को यह कह कर घेरना शुरू कर दिया है कि भाजपा बिहार में अपना चेहरा बताये। यानी दिल्ली विधानसभा चुनाव वाली रणनीति… 

अब देखना यह है कि भाजपा दिल्ली विधानसभा चुनाव वाली गलतियाँ दोहराती है या उन गलतियों का तोड़ निकाल कर कामयाबी हासिल करती है।

(देश मंथन, 08 जून 2015)

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