अभिरंजन कुमार :
जीतनराम मांझी के शामिल होने का फायदा एनडीए को निश्चित रूप से होगा और नीतीश कुमार को नेता घोषित करने का नुकसान निश्चित रूप से कांग्रेस-आरजेडी-जेडीयू-एनसीपी-कम्युनिस्ट गठबंधन को होगा।
ऐसा मैं इसलिए कह रहा हूँ कि अब एंटी-बीजेपी कैम्प के कम से कम 8% (+2%) वोट एनडीए के खाते में आने वाले हैं। इनमें ज्यादातर वोट जेडीयू के हैं। इस बीच कोसी-क्षेत्र के बाहुबली, लेकिन प्रभावशाली नेता पप्पू यादव के रुख पर भी नजर रखनी होगी।
अगर पप्पू किसी गठबंधन का हिस्सा बने बिना चुनाव लड़े, तो उनका खास असर नहीं होगा, क्योंकि इस बार के चुनाव में वोटों का जैसा ध्रुवीकरण होने वाला है, उसमें जनता किसी वोटकटवा को वोट नहीं देगी।
लेकिन अगर वे किसी गठबंधन का हिस्सा बन गये, तो उस गठबंधन को 3-4% वोटों का फायदा हो सकता है। जाहिर तौर पर पप्पू यादव लालू-नीतीश के गठबंधन का हिस्सा नहीं बनेंगे। ऐसे में अगर वे भी बीजेपी की तरफ चले जाते हैं, तो एंटी-बीजेपी कैम्प के करीब 11% (+2%) वोट एनडीए की तरफ शिफ्ट कर जायेंगे और यह निर्णायक हो सकता है।
जहाँ तक एंटी-बीजेपी कैम्प का सवाल है, तो भले ही उसने नीतीश कुमार को नेता मान लिया है, लेकिन उसकी धरती के भीतर प्लेटों का आपस में टकराना जारी है और यह कभी भी बड़ा भूकम्प ला सकता है।
वैसे भी नीतीश कुमार पहले टर्म में सुशासन बाबू थे। दूसरे टर्म में खुद लालू यादव और उनके लोग उन्हें कुशासन बाबू और दुःशासन बाबू पता नहीं क्या-क्या कहने लगे थे। लालू यादव ने तो उन्हें हटाने के लिए परिवर्तन रैली भी की थी। बिहार की जनता भी उन्हें शायद ही तीसरा टर्म देना चाहे।
मेरी अपनी राजनीतिक बुद्धि कहती है कि एंटी-बीजेपी कैम्प ने अगर रघुवंश प्रसाद को अपना नेता चुना होता, तो उन्हें नीतीश के मुकाबले निश्चित रूप से अधिक फायदा होता। क्योंकि एंटी-बीजेपी वोट तो किसी भी सूरत में उसे ही मिलने हैं।
रघुवंश को सामने करने से बीजेपी के अगड़ा वोट-बैंक में सेंध लग जाती। रघुवंश बाबू की छवि भी साफ-सुथरी है। उन्हें सामने करने से बीजेपी पर भी अपना चेहरा सामने करने का दबाव बढ़ जाता। फिर मांझी को भी कुछ अधिक देकर एंटी-बीजेपी कैम्प में लाने की कोशिश की जा सकती थी। अब्दुल बारी सिद्दीकी उसके लिए दूसरे बेहतर नाम हो सकते थे।
बहरहाल, एंटी-बीजेपी कैम्प का नेतृत्व अब भले ही अलोकप्रिय हो चुके नीतीश कुमार के हाथ में है, फिर भी बीजेपी अगर सिर्फ मोदी के नाम पर चुनाव लड़ेगी, तो गलती करेगी। उसे बिना देर किए एक दमदार नेता पेश कर देना चाहिए। दिल्ली जैसी दुविधा उसे एक जीती हुई लड़ाई हरवा भी सकती है।
मेरा ख्याल है कि बीजेपी अगर सुशील मोदी या नंदकिशोर यादव के नाम पर विचार नहीं भी करना चाहे, तो रविशंकर प्रसाद, शाहनवाज हुसैन और राजीव प्रताप रूडी जैसे विकल्प उसके पास उपलब्ध हैं। इन सभी नामों के अपने-अपने फायदे और नुकसान हैं। बीजेपी अपनी सुविधा के हिसाब से इन्हें टेस्ट कर सकती है।
डिस्क्लेमर : मैं घोषित “नोटा” वाला हूँ। कोई जीते, कोई हारे… मेरी सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ने वाला। जैसे कोढ़ और कैंसर में से एक बीमारी आप नहीं चुन सकते, उसी तरह आज के हालात में किसी भी एक राजनीतिक दल को चुने जाने लायक कह पाना मेरे लिए संभव नहीं है।
(देश मंथन 12 जून 2015)