बीजेपी-मुलायम ही सही मायने में मिले हुए

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विकास मिश्रा, आजतक :

बात 1990 की है। इलाहाबाद के सलोरी मुहल्ले में सालाना उर्स था मजार पर। बहुत मजा आ रहा था। कव्वाल झूम झूमकर गा रहे थे।

हारमोनियम पर पैसे भी चढ़ रहे थे। बीच बीच में अचानक कोई भीड़ में से उठता झूमने लगता और लोग उसे उठाकर मजार पर लाकर उसका सिर वहाँ पटकते थे। वो शांत हो जाता था। ऐसा सिर्फ मुस्लिम समुदाय के लोगों के साथ हो रहा था। हर तीन-चार मिनट में कोई झूमने लगता था। मैंने लोगों से पूछा-ये क्या हो रहा है। बताया गया कि उसे ‘झाल’ आ गया है। ये झाल उस पर आता है, जिस पर मजार वाले बाबा खुश होते हैं।

दूसरी रात गया तो वहाँ मुहल्ले के शुक्ला जी भी गये थे। खूब पैसे लुटा रहे थे, अचानक ही वो जोर जोर से झूमने लगे। चार पाँच लोगों ने पकड़ा, लेकिन शायद उन पर बड़ा झाल आ गया था। किसी तरह उन्हें मजार पर लाया गया सिर मजार से छुवाया गया। बड़ी मुश्किल से शुक्ला जी शांत हुए, बेहोश भी हुए, फिर होश में आये। अगले दिन मैंने उनसे पूछा-शुक्ला जी क्या हुआ था अचानक। मैं जानना चाहता था कि ‘झाल’ आने पर कैसा महसूस होता है। वो होश में थे या नहीं। शुक्ला जी बोले- काहे का झाल। मुसलमानों को आ सकता है तो हमें क्यों नहीं आ सकता। सब मक्कड़ करते हैं, हमने भी किया। खैर शुक्ला जी पर आये झाल का चमत्कार दो हफ्ते के भीतर हुआ। उनका भतीजा सभासदी का चुनाव जीत गया। करीब करीब सारे मुस्लिम वोट उन्हें ही मिले थे। 

हमारे चैनल के एक वरिष्ठ संवाददाता कई महीने पहले समाजवादी पार्टी के एक मुस्लिम नेता और सांसद प्रत्याशी का इंटरव्यू लेकर आये थे। इंटरव्यू के बाद उस नेता ने अनौपचारिक बातचीत में कहा-भाई मैं तो चाहता हूँ कि मेरे खिलाफ वरुण गांधी उतर जाये, तभी मैं जीत सकता हूँ। हमारे साथी ने पूछा- अब ये कौन सी गणित है। नेता जी बोले- भाई आप मुल्लाओं को नहीं जानते। जब तक इनके पिछवाड़े पर लात नहीं पड़ती, जब तक इन्हें डर नहीं लगता, ये इकट्ठे नहीं हो सकते। वरुण आयेगा तो ‘सालों’ की फटेगी। एकजुट होकर वोट करेंगे। हमारे संवाददाता ने उस नेता की सोच को लेकर बड़े ताज्जुब के साथ ये दास्तान सुनायी थी। 

मुस्लिम वोट की तिकड़म की दो दास्तान हमने सुनायी। चुनाव करीब आते ही मुस्लिमों के रहनुमा तरह-तरह का भेष तरह-तरह का ऑफर लेकर आ जाते हैं। कितने धूर्त, कितने मक्कार, कितने बेचारे हैं ये। सबसे बड़ी बात मुस्लिमों को ये कितना बेवकूफ समझते हैं। केजरीवाल गंगा में नहाने जायेंगे तो तौलिया हरे रंग की ही होगी, मुस्लिम इलाके में जायेंगे तो टोपी पर इबारत उर्दू में लिखी होगी, बिना ये जाने बूझे कि इलाके के लोग उर्दू जानते भी हैं या नहीं। राजनाथ सिंह, नीतिश कुमार टोपी पहनकर मुस्लिमों को टोपी पहनाने की जुगत भिड़ा रहे हैं। आजम खां सेना में भी हिंदू-मुस्लिम कर रहे हैं। शहीदों और कारगिल विजेताओं पर सांप्रदायिकता की टार्च मार रहे हैं। मोदी भी मुस्लिम वोट के लिए लार टपका रहे हैं, फर्क ये है कि वो कंबल ओढ़कर घी पीना चाह रहे हैं।

नामांकन के दिन अपनी बात की शुरुआत ही उन्होंने बुनकर भाइयों से की। बीच में गुजरात के उन मुस्लिमों के करोड़पति बनने की कहानी सुनायी, जो पतंगबाजी के बिजनेस में थे। मुस्लिम वोट बैंक-हिंदू वोट बैंक के खांचे बनाने की कोशिशें पहले भी होती थीं, लेकिन ये चुनाव जितना सांप्रदायिक हो रहा है, उतना कभी नहीं हुआ। गिरिराज सिंह मोदी विरोधियों को पाकिस्तान भेज रहे हैं, जैसे उनके बाप का राज हो। प्रवीण तोगड़िया मुस्लिमों को हिंदू मुहल्ले में प्रॉपर्टी न खरीदने देने का फतवा जारी कर रहे हैं। आजम खां ऐसे बोलते हैं जैसे बाबर-हुमायूं मुस्लिमों की देखभाल का जिम्मा इनके खानदान को सौंप गये हों। कम से कम यूपी में समाजवादी पार्टी और बीजेपी की पूरी कोशिश है कि वोटों का ध्रुवीकरण हिंदू-मुस्लिम के तौर पर हो जाये। केजरीवाल इन्हें नहीं कहते, लेकिन मुझे तो लगता है कि बीजेपी-मुलायम ही सही मायने में मिले हुए हैं। अगर बीजेपी को यूपी में सबसे ज्यादा सीटें मिलीं, अगर नरेंद्र मोदी देश के अगले प्रधानमंत्री बन गये तो उन्हें समाजवादी पार्टी को शुक्रिया कहना भूलना नहीं चाहिए।

(देश मंथन, 26 अप्रैल 2014)

 

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