सोलह मई

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रवीश कुमार, वरिष्ठ टेलीविजन एंकर :

नतीजा आ गया। वैसा ही आया जैसा आने की बात बीजेपी कह रही थी। इस नतीजे का विश्लेषण नाना प्रकार से होगा, लेकिन जनता ने तो एक ही प्रकार से फ़ैसला सुना दिया है। उसने गुजरात का मॉडल भले न देखा हो मगर उस मॉडल के बहाने इतना तो पता है कि चौबीस घंटे बिजली मिलने में किसे एतराज है।

अच्छी सड़कों से किसे एतराज़ है। एक तरफ़ मतों का बिखराव है तो दूसरी तरफ़ ज़बरदस्त जुटान। बीजेपी के विरोध मत अलग अलग निष्ठाओं और समीकरणों में उलझे रहे और समर्थक मत की एक ही निष्ठा रही।

दुनिया जिस वक्त व्यक्तिवादी राजनीति के नाम पर आलोचना कर रही थी उसी वक्त जनता एक व्यक्ति में नेता ढूँढ रही थी। उसे एक ऐसी दिल्ली चाहिए थी जो शिथिल न लगे। काम करने वाली हो मगर पंचवर्षीय योजनाओं के हिसाब से नहीं। आकांक्षाओं का बखान करने वाले भी यह देखेंगे कि लोगों को अब गति चाहिए। वो किसी पुल को चार साल की जगह एक साल में बनते देखना चाहती है। नरेंद्र मोदी शायद उसी प्रबंधन और रफ्तार के प्रतीक के रूप में देखे गये हैं।

एक तरह से यह अच्छा है। विकास का मतलब पूरी दुनिया में अलग अलग तरीके से समझा गया है। जो इसके आलोचक हैं उनमें संवाद की ऐसी क्षमता नहीं है जिससे वे किसी विकल्प को स्थापित कर सकें। जो भी विकास का मॉडल चल रहा है उस पर सवाल उठाने वाली शक्तियों के साथ ये जनता नहीं है। वो किसी स्थानीय जगहों पर हो सकती है मगर व्यापक रूप से जीडीपी और सेंसेक्स वाले मॉडल को स्वीकार चुकी है। यह दुखद तो है मगर यही हमारी राजनीति और जनता के दक्षिणपंथी होने की सच्चाई भी है। दक्षिणपंथी के साथ हम सांप्रदायिकता को जोड़ते हैं मगर यह उसका एकमात्र मुखर पक्ष नहीं है। हमारी राजनीति दक्षिणपंथी हो चुकी है। इसके होने का चक्र पूरा हो गया है।

जिन भी दलों को लगता है कि वे नरेंद्र मोदी से मुक़ाबला करना चाहते हैं उन्हें अपनी सरकारों के कामकाज का तरीक़ा बदल देना होगा। अब वो प्रचार कर मोदी का विकल्प नहीं बन सकते। अगर जनता उन्हें लगातार काम करते देखेगी तभी प्रचार भी साथ देगा। इतना ही नहीं बिहार यूपी की बीजेपी विरोधी पार्टियों को अपना ढाँचा बदलना होगा। उनके पास विचार है न संगठन। बीजेपी के पास दोनों है। इनकी आलोचनाएँ हो सकती है मगर आज भी बीजेपी जिन नये युवाओं से भरी है वो इसकी हिन्दुत्व की विचारधारा में माँजे गये हैं जबकि सपा राजद या जेडीयू में या तो कोई युवा है नहीं और जो है उसे न तो अपनी विचारधारा का पता है न इसका कि हिन्दुत्व की आलोचना कैसे की जाती है। जब आलोचक इस बात में मगन थे कि मोदी बीजेपी को बर्बाद कर रहे हैं तभी मोदी बीजेपी को न सिर्फ युवाओं से भर रहे थे बल्कि अपनी सक्रियता और हमलों से उन्हें विचारों से लैस कर रहे थे।

फ़िलहाल बीजेपी ने अपने तमाम विरोधियों और आलोचकों को निहत्था कर दिया है। उनकी कमजोरियों को उजागर कर दिया है। अब उनके लिए यहाँ से उठना एक दिन का काम नहीं होगा बल्कि उठने में ज़माना लग जायेगा। बीजेपी आज पहले से कहीं संगठित है। उसके पास कई राज्य हैं जो कांग्रेस सिस्टम की तरह संघ सिस्टम में काम करते हैं। अब पहले की तरह उसकी सरकारें नहीं बिखरती हैं बल्कि सत्ता पर पकड़ बनाये रखने का गुर आ गया है। ऐसे मज़बूत माहौल में कांग्रेस के सहारे बीजेपी को टक्कर नहीं दिया जा सकता। अब बीजेपी को टक्कर कोई दक्षिणपंथी ही दे सकता है। कांग्रेस को अब भुला दिया जाना चाहिए। इसलिए नहीं कि वो आज हार गयी है या कमजोर हालत में है बल्कि कांग्रेस बदल भी जायेगी तो भी कुछ मामलों में वैसी ही रहेगी। शिथिल और विचारधारा के नाम पर विचार विहीन। फ़िलहाल कांग्रेस के पास जो भी राज्य हैं उन्हें कांग्रेस के ब्रांड एंबेसडर की तरह उच्च कोटी का काम करना होगा। कांग्रेसी कल्चर का वर्क कल्चर बदलना होगा जो संभव होता नहीं दिख रहा।

सोलह मई का दिन राजनीति को नये तरीके से देखने का दिन है। उसने कई संभावनाओं को जन्म दिया है। जो इन संभावनाओं के लिए लड़ेगा पंद्रह साल बाद बीजेपी बन पायेगा। बीजेपी भी कांग्रेस की तरह चलते बनते आज बीजेपी बनी है। नरेंद्र मोदी ने वो किया जो वाजपेयी नहीं कर पाये और राहुल गांधी ने वो वो कर दिया जो कांग्रेस में कोई ग़ैर गांधी परिवार वाला भी नहीं कर पाया। कांग्रेस के नाश में मनमोहन सिंह का कम योगदान नहीं है। इस नेता को ढो कर कांग्रेस ने अपनी पीठ पर घाव भर लिये हैं।

जो भी हो नया नतीजा आया है। उम्मीदों के साथ स्वागत किया जाना चाहिए। आशंकाओं से लदकर देखने का वक्त चला गया। सारी बहसों पर लंबे समय के लिए विराम लग गया है। सवाल हैं और रहेंगे लेकिन यह इस पर निर्भर करेगा कि संघर्ष कौन करेगा। तब तक के लिए सबको बधाई।

(देश मंथन, 17 मई 2014)

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